करवा चौथ क्यों मनाया जाता है? Karwa Chauth Kyu Manaya Jata Hai
दोस्तों क्या आप जानते हैं की करवा चौथ क्यों मनाया जाता है? Karwa Chauth Kyu Manaya Jata Hai यदि आप सुहागिनों के इस पर्व से अनजान हैं तो आज का यह article आपके लिए मददगार साबित होने वाला है. हिन्दू धर्म में “पति को परमेश्वर का दर्जा दिया गया है” और इसलिए पत्नी द्वारा पति की सेवा करना परम् कर्तव्य होता है! इसलिए सभी शादी-शुदा महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु की कामना के उद्देश्य से सच्चे दिल से भगवान की पूजा-अर्चना करती है!
भारतीय वैवाहिक रिश्तों में पति-पत्नी के बीच छोटी-मोटी नोक-झोंक रोजाना चलती रहती है. लेकिन एक पतिव्रता नारी के जीवन में हर साल एक विशेष दिन “करवा चौथ” क्या होता है? जिस दिन सभी सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती है.
भारत के करीब-करीब सभी राज्यों में “करवा चौथ” मनाया जाता है. चलिए पति-पत्नी के बीच प्यार को कायम रखने के लिए मनाये जाने वाले इस पावन पर्व के बारे में आप भी विस्तारपूर्वक जानकारी जानते हैं.
करवा चौथ क्या है?
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मुख्य रूप से यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं. यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है. पति के सौभाग्य एवं लंबी उम्र हेतु हिंदू समुदाय की महिलाओं द्वारा प्रति वर्ष एक दिन करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है.
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इस व्रत के दौरान महिलाओं को निर्जला व्रत रखना पड़ता है! अतः करवा चौथ पति-पत्नी के लिए साल का सबसे विशेष दिन होता है जिससे उनके एक दूसरे के प्रति लगाव एवं प्यार और अधिक बढ़ जाता है.
बदलते परिवेश के साथ न सिर्फ पर सुहागिन महिलाएं बल्कि कुंवारी कन्याएँ भी भविष्य में सुंदर, निरोगी सौभाग्य पति की कामना करने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. समय की बात करें तब यह व्रत सुबह सूर्योदय से लेकर रात को चांद निकलने तक रखा जाता है और रात को चांद के दीदार के साथ ही महिलाओं द्वारा चंद्रमा को अर्ध्य अर्पित कर पति के हाथों द्वारा जल ग्रहण कर इस व्रत को तोड़ा जाता है.
नाम | करवा चौथ |
अन्य नाम | – |
आरम्भ | कार्तिक मास में ढलते चंद्रमा पखवाड़े (कृष्ण पक्ष) का चौथा दिन |
तिथि | – |
उद्देश्य | विवाहित महिलाओं द्वारा उपवास |
अनुयायी | विवाहित हिंदू महिलाएं, कभी-कभी अविवाहित हिंदू महिलाएं |
करवा चौथ के दिन किस देवी देवता की पूजा की जाती है?
इस विशेष दिन में महिलाओं द्वारा भगवान श्री गणेश एवं माता चतुर्थी की पूजा अर्चना भी की जाती है.
करवा चौथ के इस पर्व को कब मनाया जाता है?
हिन्दू पंचांग (कैलेंडर) के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को प्रत्येक वर्ष करवा चौथ के रूप में मनाया जाता है. आपको बता दें कि वर्ष 2019 में करवा चौथ हमेशा की तरह दशहरे तथा दिवाली के बीच 17 अक्टूबर को मनाया गया था. जबकि साल 2020 में करवा चौथ को मनाने का विशेष दिन 4 नवम्बर बुधवार को मनाया गया था. वहीं साल 2021 में रविवार, 24 अक्तूबर और आगामी वर्ष 2022 में गुरुवार, 23 अक्टूबी 2022 को मनाया जाएगा.
हिंदू धर्म में किसी भी पर्व को मनाये जाने के पीछे विशेष वजह होती है, ठीक उसी तरह करवा चौथ को मनाने के कारण को जानने के लिए हमें पौराणिक कथा को पढ़ना होगा! तो आइए जानते हैं इसे विस्तार में. तो चलिए जानते है करवा चौथ माता की कहानी.
करवा चौथ की कहानी?
बहुत समय पहले की बात है वीरावती नामक एक राजकुमारी थी जिसके 7 भाई थे,सभी भाई अपनी इस इकलौती बहन का ख्याल रखते थे! वीरावती की उम्र बढ़ने के साथ ही एक राजघराने में राजकुमार से शादी कर दी जाती है.
शादी के बाद वीरावती अपने पति की लम्बी उम्र हेतु करवा चौथ का व्रत रखने हेतु अपने मायके जाती है, कमजोर स्वास्थ्य के साथ वीरावती ने करवा चौथ के इस व्रत को रखती है! और कमजोरी की वजह से रात को चाँद दिखने से पहले ही वीरावती भूख-प्यास से व्याकुल होने लगी. वीरावती की यह पीड़ा उनके भाई को सहन न हूई. और वीरावती के छोटे भाई ने इस व्रत को तोड़ना ही उचित समझा
परन्तु बिना चाँद को अर्ध्य अर्पित किए बगैर वह भोजन नहीं कर सकती थी. इस लिए छोटे भाई ने नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें प्रकाश को दिखाकर बताया कि बहन चाँद आ चुका है. अब चाँद को अर्ध्य देकर भोजन कर लो!
इस प्रकार इस धोखे को सच मानकर वीरावती सच मान लेती है, और अग्नि को अर्ध्य देकर भोजन कर लेती है. लेकिन भोजन का निवाला मुँह में रखने से पूर्व ही अशुभ संकेत मिलने लगे! पहले कौर में बाल निकला, जबकि दूसरे में उसे छींक आई, और तीसरे कौर में उसे खबर पहुँची की उसका पति मर चुका है.
पति के म्रत शरीर को देखकर वीरावती को अत्यंत दुख हुआ! और अपने इस कृत्य के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी उसका यह विलाप सुनकर देवी इंद्राणी इंद्र देव की पत्नी वहां पहुंची तथा वीरावती को सांत्वना देने लगी.
वीरावती ने जब देवी इंद्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उनके पति की मृत्यु क्यों हुई? तो इसके जवाब में देवी इंद्राणी ने कहा तुमने बिना चंद्रमा को अर्ध्य दिए बगैर ही अपने करवा चौथ के व्रत को तोड़ा है इस वजह से आपके पति की असामयिक मृत्यु हुई.
तथा देवी इंद्राणी ने वीरावती से कहा कि तुम करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ प्रत्येक माह की चौथ को भी व्रत रखना शुरू करो! ऐसा श्रद्धा पूर्वक करने से आपका पति पुनः जीवित हो जाएगा.
देवी इंद्राणी द्वारा कहे गए कथनों के अनुसार वीरावती ने करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे भक्तिभाव से प्रत्येक माह की चौथ को व्रत लिया, जिससे पुण्य के रूप में वीरावती को अपना पति पुनः जीवित मिल पाया.
करवा चौथ क्यों मनाई जाती है?
करवा चौथ व्रत को करने के पीछे का जो मुख्य कारण है वो ये की इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती हैं. हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता ये भी है कि जो भी सुहागिन स्त्रियां पूरे विधि-विधान और श्रद्धा-भाव से करवा चौथ का व्रत करती हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि, करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक होता है. करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है. इन्ही कारणों के लिए ही करवा चौथ मनाया जाता है.
करवा चौथ त्यौहार कैसे मनाया जाता है?
सभी सुहागन महिलाओं के लिए यह विशेष दिन होता है, इसलिए इस मौके पर वे अपने पति के लिए खूब सज-धज कर हाथों में मेहंदी रचा कर हाथों में चूड़ी पहन कर, खूब सोलह श्रृंगार करती हैं. और इस प्रकार सुहागन स्त्री पति की पूजा कर व्रत का परायण करती है
इस दिन उपवास रखने वाली महिलाएं प्रातः काल उठकर स्नान करती है, तथा चूंकि यह दिन महिलाओं के सजने सवरने का भी होता है. तो इस दिन वे अपने पसंदीदा परिधान पहनती है भारतीय परंपरा के मुताबिक अधिकतर महिलाएं इस पर्व पर साड़ी पहनना अधिक पसंद करती है, तथा पसंदीदा साड़ी के साथ Matching चूड़ी एवं गहने इत्यादि पहनकर सुंदर दिखती है.
इस दिन महिलाएं व्रत शुरू करने से पूर्व सरगी का सेवन करती हैं, सरगी में सेव अनार, केला, पपीता जैसे फल होते जिनका सेवन शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक होता हैं. यदि हम सरल शब्दों में सरगी को समझे तो उपवास के संकल्प से पूर्व किए जाने वाला नाश्ता सरगी कहलाता है.
अतः सूर्योदय से पूर्व सरगी व्यंजन को ग्रहण कर लेने के बाद पूरे दिन इस व्रत को रखने वाली महिलाओं के लिए पानी पीने की भी मनाही होती है.
तथा रात को आकाश में चंद्रमा के दिखाई देने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर अपने पति के चरण स्पर्श कर उनके हाथ से जलपान ग्रहण कर इस व्रत की समाप्ति की जाती है .
करवा चौथ की विधि
व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के पश्चात सबसे पहले मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये यह संकल्प लें!
करवा चौथ का महत्व
भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के बीच के प्यार के इस विशेष पर्व को सभी सुहागन महिलाओं द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाता है, यह त्यौहार दिल्ली पंजाब हरियाणा समेत भारत के अनेक राज्यों में मनाया जाता है.
पति की दीर्घायु तथा अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु इस पर्व को मनाने की परंपरा काफी पुरानी है और सबसे विशेष बात है कि इस त्यौहार को बिना भेदभाव के सभी आयु जाति वर्ण के बिना सभी स्त्रियों को व्रत रखने का अधिकार है.
यह व्रत सुहागन महिलाओं द्वारा 12 वर्ष से 16 वर्ष तक लगातार रखा जाता है हालांकि यह उनकी इच्छा है वे इस व्रत को लंबे समय तक रख सकती हैं, अन्यथा 12 या 16 वर्ष के बाद उद्यापन कर इस व्रत की समाप्ति कर सकती हैं.
पूरे आर्टिकल का सार यह है कि, एक सुहागिन महिला के लिए सबसे सौभाग्यदायक दिन करवा चौथ को माना जाता है, इसलिए प्रतिवर्ष करवा चौथ के इस विशेष पर्व की तैयारियां कई दिन पहले से महिलाओं द्वारा शुरू कर दी जाती है
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