विश्व नदी दिवस क्या हैं ?। World River Day नदियों का महत्व । Importance of rivers खतरों से जूझती नदियां । Rivers facing danger नदियों को संरक्षित करने के उपाय । Measures to conserve rivers
विश्व नदी दिवस हर साल सितंबर के अंतिम रविवार को मनाया जाता है। 27 सितंबर 2022 को भारत सहित पूरे विश्व में उत्साह से मनाया जाता है। नदियों की रक्षा को लेकर 2005 में इसे मनाने की शुरुआत की गई थी।
ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, भारत, पोलैंड, दक्षिण अफ्रिका, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया और बांग्लादेश में नदियों की रक्षा को लेकर कई कार्यक्रम का आयोजन होता है। भारत में अनादि काल से नदियों को देवीय महत्व दिया गया है। पूर्वाचल में पवित्र नदियों के किनारे छठ पर्व किया जाता है। छठ पर्व दीपोत्सव के छठे दिन मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं नदी के पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ देती है।
मालूम हो कि पृथ्वी के 71 प्रतिशत हिस्से में पानी है, जिसमें से 97.3 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं होकर खारा पानी है। शेष 2.7 प्रतिशत मीठा जल हमें नदियों, झीलों, तालाबों जैसे संसाधनों से प्राप्त होता है। इसलिए विश्व नदी दिवस मनाए जाने की शुरुआत की गई।
गलत नीतियों, मानव द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण और कई स्वार्थियों के कारण अनेक नदियां का अस्तिव समाप्त हो रहा है। प्रदूषित हो रही नदियों को संवारने के लिए संरक्षित करने की जरूरत है।
पुराणों में उल्लेख है कि विश्व की प्राचीन सभ्यतायें नदियों के किनारे ही विकसित हुई है। नदियां को स्वच्छ जल का संवाहक होती हैं। एशिया महाद्वीप का हिमालय पर्वत पुरातन समय से नदियों का उद्गम स्रोत रहा है। गंगा, यमुना, सिंधु, झेलम, चिनाव, रावी, सतलज, गोमती, घाघरा, राप्ती, कोसी, हुबली तथा ब्रहमपुत्र आदि सभी नदियों का उद्गम हिमालय से शुरू होकर हिन्द महासागर में जाकर अपनी गिरती है।
विश्व नदी दिवस भारत का कोई अलग से कार्यक्रम नहीं है। पुराने लोगों द्वारा कहा जाता है कि सालों पहले भारत की नदियां बारह मासी यानी 12 माह बहने वाली होती थी, लेकिन अंधाधुंध पेड़ों की कटाई के कारण नदियों ने अपना अस्तिव खो दिया। वर्तमान में हालात यह है कि ग्रीष ऋतु में भारत की सभी नदियों का जल सूख जाता है।
नदियों का महत्व । Importance of rivers
- नदियां बारहमासी रहती हैं
- बाढ़ की घटनाएं कम होती हैं
- सूखे से लड़ने में मदद मिलती है
- भूजल फिर से भरने लगता है
- वर्षा सामान्य होती है
- जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव कम होते हैं
- मिट्टी का कटाव रुकता है
- जल की गुणवत्ता में सुधार होता है
- मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होती है
- जैव-विविधता की सुरक्षा
खतरों से जूझती नदियां । Rivers facing danger
भारत के कई शहरों में उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ को रिसायल करके नदियों में मिला दिया जाता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में मौजूद चंबल नदी को ग्रेसिम उद्योग नागदा द्वारा प्रदूषित किया जा रहा है। नदी इस कदर प्रदूषण हो चुकी है पानी पीने योग्य नहीं बचा है। नदी के किनारे बसे गांव परमार खेड़ी में प्रति 10 घर में एक सदस्य विकलांग है। गांव की आबादी 900 है। गांव के सभी जलस्त्रोत प्रदूषित हो चुके है। प्रशासन ने जलस्त्रोतों को बंद कर खतरनाक घोषित कर दिया है।
सीपीसीबी की साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की जीनदायिनी कही जाने वाली ये नदियां खुद खतरे में हैं। 521 नदियों के पानी की मॉनिटरिंग करने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश की 198 नदियां ही स्वच्छ हैं। जो छोटी नदियां हैं। जबकि, बड़ी नदियों का पानी भीषण प्रदूषण की चपेट में है। 198 नदियां स्वच्छ पाई गईं, इनमें ज्यादातर दक्षिण-पूर्व भारत की हैं। महाराष्ट्र में सिर्फ 7 नदियां ही स्वच्छ हैं, जबकि 45 नदियों का पानी प्रदूषित है।
नदियों को संरक्षित करने के उपाय । Measures to conserve rivers
- नदियों को छिछली (उथली) होने से बचायें।
- नदियों के किनारों पर सघन वृक्षारोपण किया जाये जिससे किनारों पर कटाव ना हो।
- नदियों का पानी गन्दा होने से बचाये, मसलन पशुओं को नदी के पानी मे जाने से रोके। गांव व शहरों का घरेलू अनुपचारित पानी नदी में नही मिलने दे।
- पानी को यह सोच कर साफ रखने का प्रयास करें कि आगे जो भी गांव या शहर वाले इस पानी को उपयोग में लाने वाले हैं वो आपके ही भाई बहन या परिवार के लोग हैं।
- नगरपालिका और ग्राम पंचायत अपने स्तर पर घरेलू पानी ( दूषित) को साफ करने वाला सयंत्र लगाने के लिए प्रोत्साहित करें।
- उद्योगों का अनुपचारित पानी नदी के पानी मे नही मिलने दे।
- हो सके तो समय समय पर पानी की गुणवत्ता की जांच करवाते रहे।
- जलकुम्भी की सफाई समय समय पर करवाने का प्रयत्न करें।
इसे भी पढ़े :