Chhath Puja in hindi History And Important – लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का महत्व और इतिहास,
छठ पूजा (Chhath Puja in hindi ) सूर्य उपासना का एक विशेष पर्व है. पृथ्वी की हरियाली हो या फूलों की लाली, पत्तों की कोमलता हो या चन्द्रमा की शीतलता सभी कुछ भगवान सूर्य के कारण ही संभव होता है. जिसके बिना पेड़ पौधे, जीव-जन्तु, यहां तक की प्रकृति की कल्पना असंभव है. भारत वर्ष लोक आस्था और परम्पराओं का देश है. ऋषियों कि यह भूमि जहॉं उगते हुए सूर्य के साथ-साथ डूबते हुए सूर्य को भी नमन किया जाता है. पूरे भारत में मनाए जाने वाले मकर संक्रांति कि तरह छठ पूजा सूर्योपसना का एक पर्व है. यह त्योहार अव दुनियॉं के कई देशों में मनाया जाता है. दुनियॉं के किन-किन देशों में छठ पूजा मनाया जाता है. इस पर विषय पर चर्चा करने के पहले हम history of chhath puja in Hindi विस्तार पूर्वक जानते हैं.
लोकास्था का महापर्व छठ पूजा – About Chhath Puja In Hindi History And Important
Table of Contents
सूर्य उपासना का प्रचलन वैदिक काल से है. जिसका उल्लेख ऋग्वेद में पढ़ने को मिलता है. स्कंद पुराण में भी सूर्य उपासना का उल्लेख पढ़ने को मिलता है. छठ पूजा लोकआस्था का एक ऐसा महापर्व है, जो अपने आप में एकदम अनूठा है.
छठ पूजा एक ऐसी पूजा, जिसमें न मंदिर की जरूरत होती है और न ही मूर्ति पूजा आवश्यक है. वस्तुतः इसमें प्रकृति की पूजा खुले अम्बर के तले प्रकृति प्रदत चीजों से की जाती है.
छठ पूजा में किसी भी ब्राह्मण और पुरोहित की आवश्यकता नहीं पड़ती है और न ही किसी मंत्रोच्चार की. इस पूजा में भक्त और भगवान के बीच कोई मघ्यस्थ नहीं होता. यहाँ तक की इसमें बाहरी मिठाई तक चढ़ाने की परंपरा नहीं है. इस पूजा में घर पर ही निर्मित चावल का लड्डू एबं गेंहू आटे से बना ठेकुआ चढ़ाया जाता है. यह पूजा सादगीपूर्ण, आडम्बर रहित और संभवतः कर्मकांड से कोसो दूर हैं.इसका विधि-विधान बेहद ही रोचक और काफी सरल है.
प्राकृतिक चीजों से सूर्योपासना :-
लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा प्रकृति प्रदत चीजों व घर पर ही निर्मित विशेष पकवान से होती है. छठ पूजा में प्रसाद के रूप विभिन प्रकार के कंद-मूल, फल, ठेकुआ व् चावल लड्डू शामिल है. हिन्दू धर्म के असंख्य देवी-देवताओं में एक सूर्य देव ही है जो हमेशा आंखों के सामने हैं. जिसे हम इन खुले आखों से नित्य दर्शन कर पाते हैं. जो ऊर्जा का अक्षय भंडार है.
छठ पूजा लोकआस्था का महापर्व अब अंतर्राष्ट्रीय – (About Chhath Puja In Hindi):-
छठ पूजा जो पहले बिहार, पूर्बी उत्तरप्रदेश, झारखण्ड तथा नेपाल के दक्षिणी भुभाग तक सिमित था, लेकिन वर्तमान में यह पूरे देश -विदेश में प्रसिद्ध होता जा रहा हैं.
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भारत के कई महानगर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चंडीगढ़ में रहने वाले पूर्वांचलवासी इसे बहुत ही उत्साह के साथ करते है. लोकआस्था के महापर्व Chhath की महिमा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है. यह भारतीय महाद्वीप से निकल कर दूसरे द्वीप तक अपनी छाप छोड़ चुका है.
दुनिया के कई देशों से आती है छठ पूजा मनाने की खबर :-
अब तो दुनिया के कई देशों से लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा को वड़ी श्रद्धा के साथ मानाने की खबर मिलती है. इसमें फिजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद और टोबैगो, गुयाना, सूरीनाम, जमैका यू. के. एबं यू. एस. ए. का नाम प्रमुख है। जहाँ भारतीय मूल के लोग बहुत ही धूमधाम से छठपूजा मानते हैं. मालूम हो कि, छठ पूजा में आस्था रखने बाले भारतीय मूल के लोग दुनियाँ के किसी कोने में चाहे वे काम करने गए या बस गए हों. पूर्वांचलवासी अपनी संस्कृति व परम्परा को नहीं भूले. इन्हीं सब प्रवासी भारतीय के कारण छठ पूजा अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर का रूप ले चुका है. बिहार और उत्तर प्रदेश में इस दिन अवकाश होता है.
सूर्योपासना (छठ पूजा) वैदिक काल से प्रचलित है ? about chhath puja in hindi
वैदिक काल से सूर्य आराधना की परंपरा रही है. ऋग्वेद के अनुसार सूर्योपासना के द्वारा ऋषिगण अपनी ऊर्जा सीधे सूर्य से प्राप्त करते थे. यह एक अत्यंत प्राचीन हिन्दू त्योहारों में से एक है. Chhath puja लोकआस्था का महापर्व भी सूर्य आराधना का ही एक महापर्व है. इसे मानाने की परंपरा रामायण एबं महाभारत काल में भी मौजूद मानी जाती है. त्रेता युग में माँ सीता के द्बारा इस व्रत को पूरा करने की बात कही जाती है. वहीं द्वापर युग में द्रोपती के द्वारा छठव्रत करने का बर्णन मिलता है. किसी ऋषि मुनि की सलाह के बाद द्रोपती ने इस व्रत को पूरे विधि विधान से पूरा किया था. फलस्वरूप उन्हें उनका खोया हुए राजपाट दोबारा से वापस मिल गया.
छठ पूजा लोकआस्था का महापर्व की शुरुआत किसने की ? Chhath Puja History In Hindi
छठ पूजा की शुरुआत कब और कैसे हुई इस पर विद्वानों की अलग अलग राय है। इसके बारें में कई पौराणिक कथायें प्रचलित हैं. यहां हम आपके लिए उन बेहद ही प्रचलित तीन पौराणिक कथा के बारे में बता रहे हैं.
भगवान राम और सीता जी ने भी की थी छठ पूजा
पौराणिक किवंदति है कि, भगवान राम सूर्य वंशी थे. जब भगवान राम 14 वर्ष बनवास के बाद आयोध्या वापस लौटे. तब राज्यभिषेक के दौरान उन्होंने माँ सीता के साथ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्टी को सूर्योपासना की. जनश्रुुतियों के बीच आस्था हैं की उसी समय से प्रतिवर्ष छठ पूजा लोकआस्था का महापर्व को मानाने की परंपरा चली आ रही है. मां सीता ने जिस स्थान छठ पूजा सम्पन की थी. वह स्थान बिहार के मुंगेर जिला में सीता चरण के नाम से प्रसिद्ध है.
सूर्य के सबसे बड़े उपासक अंगराज कर्ण –Importance Of Chhath Puja In Hindi
एक दूसरी मान्यता के अनुसार छठ पूजा लोकआस्था का महापर्व की शरुआत अंगराज कर्ण के द्वारा किया गया है. बिहार में अवस्थित अंग देश के राजा सूर्य पुत्र कर्ण थे. महाभारत के महान योद्धा अंगराज कर्ण सूर्य के सबसे बड़े उपासक थे. वे प्रतिदिन सूर्योपासना के बाद जल में खड़े होकर सूर्य को अर्ध्य अर्पित किया करते थे. भगवान सूर्य के असीम कृपा पाकर वह महान योद्धा बने.
राजा प्रियवद द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु छठ व्रत :- Chhath Puja Story In Hindi
प्राचीन काल में प्रियवद नाम का एक राजा था. उसकी रानी मालिनी थी. निसंतान होने के कारण वे दोनो बहुत उदास रहते थे. इसके लिए महर्षि कश्यप की मदद से उन्होंने पुत्र प्राप्ति यज्ञ किया. यज्ञ के प्रभाव के कारण उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन वह मृत था. इस घटना से राजा बहुत दुखी हुये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने करने का निश्चय कर लिया.
कहा जाता है कि ठीक उसी समय ब्रम्हा जी की मानस कन्या प्रकट हुई. उन्होंने बताया कि मैं सृष्टि के छठे अंश से उत्पन्न देवी छठी हूं. जो लोग मेरी पूजा पूरी भक्ति भाव से करेगा उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी. प्राचीन किवदंति है कि, राजा ने पुत्र की पुन: प्राप्ति के लिए देवी छठी का व्रत किया. जिससे उन्हें एक सुन्दर संतान की प्राप्ति हुई. राजा ने दूसरों को भी इस व्रत के लिए प्रेरित किया. इस प्रकार Chhath puja की शुरुआत हुई.
साल में दो वार छठ पूजा मानाने की परंपरा (Chhath Puja History In Hindi) :-
Chhath pooja वर्ष में दो बार मानाया जाता है, पहला चैत्र मास में दुसरा कार्तिक मास में. चैत्र मास में मनाये जाने वाले छठ को चैती छठ के नाम से जाना है.
दूसरी बार यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती हैं जिसे कार्तिक छठ कहते हैं. कार्तिक मास मैं मनाये जाने वाला छठ पूजा अधिक लोकप्रिय है.
अधिकांश लोग कार्तिक मास बाले छठ पूजा मानते हैं. हिन्दू पंचांग के अनुसार छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है.
छठ व्रत को डाला छठ, सूर्य षष्ठी, छठ पूजा जैसे कई नामों से क्यों जाना जाता है
लोक आस्था का महापर्व Chhath एक प्राचीनतम हिन्दू त्योहार है. इसे छठ व्रत , डाला छठ, सूर्य षष्ठी, छठपूजा जैसे कई नामों से जाना जाता है.सूर्य आराधना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष चतुर्थी को शुरू होता है. सप्तमी को उगते हुए सूर्य को अर्ध अर्पण के साथ इस महापर्व का समापन होता है.
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी को डूबते हुए सूर्य को पहला अर्ध दिया जाता है. इस कारण ही इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इसमें छठी मइया और सूर्य की उपासना किया जाता है.
छठी मैया कौन है? – History Of Chhath Puja In Hindi
इस व्रत के द्वारा छठी मैया से परिवार के सुख-शांति एबं अच्छे स्वास्थ्य की कामना किया जाता है. छठपूजा में जिस देवी की पूजा की जाती है, उसे छठी मैया कहते हैं. Chhath pooja सूर्य भगवान और उनकी पत्नी (छठी मैया) को समर्पित है. लोगों के बीच मान्यता है कि, सूर्य देव की पत्नी छठी मैया को वेदों में देवी उषा के नाम से भी जाना जाता है. यद्यपि छठी मैया कौन है, इस पर विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत है.
छठ पूजा का महत्व (Importance Of Chhath Puja In Hindi)
भगबान भास्कर की आराधना का महापर्ब Chhath की बड़ी महिमा है. कहा जाता है सच्चे मन से जो इस व्रत को करता है, उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. निसंतान को संतान सुख की प्राप्ति होती है और उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. प्राणी को सभी प्रकार के दुखों और पापों से मुक्ति मिलती है.भगवान भास्कर जो अक्षय ऊर्जा के स्वामी हैं. उनकी आराधना के द्वारा अपने परिवार के सुख शांति एबं अच्छे स्वास्थ की कामना करते है.यही कारण है की सर्ब मनोकामना पूर्ण करने वाले इस पर्व में लोगों की गहरी आस्था है. इस महापर्व को महिला एबं पुरुष दोनों के द्वारा समान रूप से सम्पन किया जाता है.
प्रवासी भारतीय में भी इस पर्व के प्रति गहरी आस्था है. इस कारण Chhath pooja अब अंतर्राष्ट्रीय पर्व के रूप में दूसरे द्वीपों तक अपनी पहचान बनाता जा रहा है.
छठ पूजा एवं विज्ञान- Science And Chhath Puja In Hindi
छठ पर्व को लेकर वैज्ञानिकों का मत सुने तो Chhath pooja का अपना एक विशेष महत्व है. जिसका सीधा सम्बन्ध हमारे स्वाथ्य से जुड़ा है. सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान छठ पूजा किये जाने का अपना एक वैज्ञानिक पहलु भी है. इस अवधि के दौरान सूर्य से निकलने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों का स्तर बहुत ही कम होता है. इस दौरान मानव शरीर के लिए बिना किसी नुकसान के सौर ऊर्जा प्राप्ति संभव है.जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक है. सूर्य से हमें विटामिन डी की प्राप्ति होती है क्योकि सूर्य विटामिन डी का अक्षय भंडार है.इस प्रकार छठ पूजा के अनुष्ठान के द्वारा साधक के शरीर के शुद्धिकरण साथ उन्हें मानसिक शांति भी मिलती है.जिससे उनका शरीर पहले से ज्यादा और ऊर्जावान होता है.
छठ पूजा में काम आने वाली पूजन सामग्री 🙁Chhath Pooja Ki Pujan Samagri)
छठ पूजा में काम आने वाली पूजन सामग्री की लिस्ट तो बेहद ही लम्बी है. लेकिन मुख्य रूप से पूजा में काम आने वाले सामग्री निम्नलिखित हैं. इसमें बांस का बना सूप उपयोग किया जाता है. जो आधुनिकता के इस दौड़ में इस सूप की जगह पितल का सूप लेता जा रहा है. इसके साथ बांस से बने दौरा व डलिया कि भी जरूरत होती है.
इसमें जटा सहित पानी वाला नारियल, गन्ना पत्तो के साथ, सुथनी, शकरकंद, चढ़ाया जाता है. इसके आलावा इसमें हल्दी और अदरक का पौधा,शहद, पान सुपारी, सिंदूर, कपूर, कुमकुम,अक्षत, चन्दन से पूजा करते हैं.
इसके साथ-साथ इसके पूजन में ठेकुवा,चावल के लड्डू चढ़ाये जाते हैं. पूजन में फल के रूप में मखाना, बादाम, किशमिश, छुहारा,केला, संतरा, ना शपाती, अन्नानस, सिंघाड़ा, प्रमुख हैं.
चार दिन तक चलने बाला छठ पूजा (संक्षिप्त बर्णन) :-
चार दिन तक चलने वाले छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी से होता है. छठ पूजा को एक कठिनतम पर्व में से एक माना जाता है. कारण इसकी साधना बेहद ही कठिन है.इस महापर्व के लिए कुछ कड़े नियम का पालन करने होते हैं. जिसमे 36 घंटे का निर्जला उपवास, भूमि पर सोना, पवित्रता व शुद्धता का विशेष ध्यान रखना इत्यादि शामिल हैं. आइये पोस्ट के जरिए जानते हैं इस महापर्व के बारें में विस्तार से :-
पहला दिन की पूजा :-
Chhath pooja के पहले दिन की शुरुआत नहाय खाय से होती है. इस दिन वर्ती के द्वारा स्नान के बाद कद्दू, चना दाल के सब्जी और अरवा चाबल का प्रसाद ग्रहण किया जाता है. जिसके बाद परिवार के अन्य लोग भी प्रसाद के रूप में वही भोजन ग्रहण करते हैं. नहाय-खाय के दिन कद्दू का उपयोग जरुरी माना गया है.इस दिन कद्दू के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की कुछ जगह पर इस दिन की पूजा को कद्दू-भात के नाम से भी जाना जाता है.
दूसरे दिन की पूजा :-
नहाय खाय के दूसरे दिन मतलब शुक्ल पक्ष के पंचमी के दिन की पूजा को खरना कहा जाता है. पौराणिक मान्यता है की खरना पूजा के दौरान वातावरण शांत होना चाहिए. घर में किसी तरह के शोर-गुल न हो इसका खास ध्यान रखा जाता है. यही कारण है की खरना पूजा के समय कुछ देर के लिए घर में हर तरह के शोर से परहेज किया जाता है
जिससे वर्ती निर्विघन पूजा सम्पन कर सकें. इस दिन वर्ती पूरे दिन उपवास के बाद शाम को पूजा उपरांत गुड़ मिला हुआ खीर एबं रोटी का प्रसाद ग्रहण करती है.
तीसरे दिन की पूजा :-
तीसरे दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी को अस्तचलगामी भगवान भास्कर को अर्ध्य प्रदान किया जाता है.इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का निर्जला उपवास पर होते है. उपवास के दौरान पानी भी नहीं पीया जाता है. इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी के जलावन द्वारा छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है.
छठ के प्रसाद के रूप में ठेकुआ और चावल के लड्डू बनाये जाते हैं. ठेकुआ और चावल के लड्डू बनाने के लिए जिस चावल व गेहूं का इस्तेमाल किया जाता है उसे अलग से धोया, सुखाया और पिसवाया जाता है. चावल और गेहूं को धोकर सूखाने के दौरान पूरी सतर्कता वरती जाती है. जिससे कोई पशु-पक्षी इसे जूठा न कर दें. छठ पर्व के दौरान पवित्रता व् शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जाता है.
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य :-
शाम को ठेकुआ, चावल के लड्डू एबं विधिवत तरीके के फल से अर्ध्य का सूप सजाया जाता है. इस अर्ध्य के सुप को बांस की टोकरी (डाला ) में रखते हैं. जिसके बाद डाला लेकर नदी, तालाब या जलाशयों तक जाया जाता है. डाला के साथ परिवार के अन्य सदस्य भी अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देने चल पड़ते हैं.
जहां व्रती पानी में खरे होकर अस्ताचलगामी भगवान सूर्य की आराधना करते हैं. इसके साथ ही प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है. उसके बाद परिवार के अन्य सदस्य के द्वारा भी भगवान भास्कर को अर्ध्य दिया जाता है. अस्ताचलगामी भगवान सूर्य की आराधना के दौरान घाट पर अद्भुत नजारा देखने को मिलता है.
कुछ घंटे के लिए घाट पर मेले जैसा दृस्य उत्पन हो जाता है. सूर्यास्त के बाद डाला लेकर सभी लोग घर आ जाते हैं और सुबह का इंतजार किया जाता है.
चौथा दिन की पूजा :-
छठ पर्व के चौथे दिन अर्थात शुक्ल पक्ष सप्तमी को व्रत का अंतिम दिन होता है. इस दिन सुबह होने से पहले ही लोग फिर से उसी घाट पर पहुंच जाते हैं. एक बार फिर से शाम वाली क्रिया दोहराई जाती है. वर्ती महिला या पुरुष जल में खड़े होकर सूर्योदय का इंतजार करते हैं. इस प्रकार उगते हुए सूर्य को अर्ध्य अर्पित किया जाता है।
इसके बाद वर्ती के द्वारा पारण किया जाता है यानि प्रसाद खाकर व्रत को संपन्न किया जाता है. इस प्रकार चार दिन तक चलने वाले आस्था के महापर्व Chhath puja का समापन हो जाता है.
उपसंहार – Conclusion
सूर्योपासना क त्योहार छठ आस्था का महापर्व है. यदि आप essay on chhath puja in Hindi लेख के बारें में विस्तार से जानना चाहते हैं, तो यह जरूर उपयोगी साबित हो सकता है.
दोस्तों Chhath Puja in Hindi History And Important शीर्षक वाला यह लेख आपको कैसा लगा, अपने सुझाव से अवगत करायें. उत्तर देने में हमें बेहद ही खुशी होगी.
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