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सांप सीढ़ी का इतिहास और इससे जुड़ी रोचक जानकारी | Snakes and Ladders Game (Saap Sidi Ka Khel) History

सांप सीढ़ी का इतिहास और इससे जुडी रोचक जानकारी | Snakes and Ladders Game (Saap Sidi Ka Khel) History and Interesting Facts in Hindi

दोस्तों गर्मियों की छुटि्टयों में हम सभी ने सांप सीढ़ी गेम लूडो बोर्ड पर जरुर खेला है. यह सिर्फ एक खेल ही नहीं है बल्कि बहुत से लोगों की यादें इस खेल से जुड़ी होती है. 90 के दशक में लोगों के पास मोबाइल नहीं होता था तो लोग टाईमपास करने के लिए कोई न कोई खेल खेला करते थे. उनमे से सबसे लोकप्रिय और चर्चित खेल लूड़ो था. जिसमे सांप सीधी के खेल का रोमांच ही कुछ और होता है. इस खेल का खुमार लोगों के ऊपर कुछ इस कदर है कि डिजिटल युग में भी यह अपनी अमिट पहचान को सिरमोर बनाएं हुए है. तकनीकी युग में भी 90 के दशक के लोग इसे अपने फ़ोन में ही खेलते हुए दिख जाएंगे.

तो आइये, लेख के जरिए जानते हैं सांप-सीढ़ी खेल का रोचक इतिहास की कैसे यह खेल भारत से उत्पन्न होकर विश्व तक पहुंचा –

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ज्ञानबाजी

ज्ञान चौपड़ और मोक्षपट जैसे अनेक नामों से भी मशहूर  

सांप-सीढ़ी खेल की उत्पत्ति प्राचीन भारत से हुई है. प्राचीन काल में इसे मोक्षपट या मोक्षपटामु नाम से पुकारा जाता था. इसके अलावा, भारत के महाराष्ट्र प्रांत में कई स्थानों पर इसे ‘लीला’ नाम से भी जाना जाता था. ‘लीला’ नाम होने के पीछे इसका मुख्य कारण था की  मनुष्य का धरती पर तब तक जन्म लेते रहना, जब तक वह अपने बुरे कर्मों को छोड़ नहीं देता. जैसा की सांप-सीढ़ी वाले खेल में देखने को मिलता है. 70 के दशक में इसे ‘ज्ञान चौपड़’ नाम से भी पहचानते थे. इसका मतलब है कि, ‘ज्ञान का खेल’. सनातन धर्म में ऋषियों द्वारा एक लोक युक्ति प्रसिद्ध है जिसमें बताया गया है कि ज्ञान चौपड़ मोक्ष का रास्ता दिखाता था. इतना ही नहीं चौपड़ मनुष्य योनी में बार-बार जन्म लेने की प्रक्रिया से मोक्ष दिलाता था.

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कैलाशा पटम

सांप सीढ़ी का इतिहास- Saap Sidi Ka Itihas (Snakes and Ladders History)

विश्व के प्राचीन खेलों में से एक 

सांप सीढ़ी खेल की शुरुआत कब और किसने की इसके बारे में आज तक किसी प्रकार के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सके है. लेकिन, लोक कथाओं की मानें तोयह दूसरी सदी बीसी से ही खेला जाता रहा है. जो इस बात की पुष्टि करता है कि,सांप सीढ़ी विश्व के सबसे प्राचीन खेलों में से एक हैं. दूसरी ओर कुछ इतिहासकारों का मानना है की सांप-सीढ़ी का आविष्कार 13वीं शताब्दी में संत ज्ञानदेव ने किया था. इस खेल को आविष्कार करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य बच्चों को जीवन के नैतिक मूल्यों को सिखाना था.

अच्छाई और बुराई का संदेश देता है  ‘ये’ खेल

यदि सांप सीढ़ी के खेल का गहन अध्ययन किया जाएं तो, इसमें चौखाने (वर्ग) होते हैं. जिसमें कई रूपांतर भी होते हैं. सभी रूपान्तरों में अलग-अलग खंड होते थे. प्रत्येक वर्ग खेलने वाले व्यक्ति के ‘गुण’ या ‘अवगुण’ को प्रर्दशित करता हैं. जैसे- जिस खंड में सीढ़ी होती वह ‘गुण’ को दर्शाता है जो आपको आगे जाने का रास्ता देता है. जबकि जिस वर्ग में सांप का फन होता है वह बुराइयों की ओर ईशारा करता हैं. सांप वाले खंड में पहुंचने पर आपकों नीचे की ओर ऊतरना पड़ता है.

हिंदू धर्म में यह बच्चों के शिक्षा का एक अभिन्न हिस्सा था, कारण इसमें वह अच्छे और बुरे कर्मो के बीच फर्क करना बेहद ही आसानी से सीखा करते थे. सांप-सीढ़ी में मौजूद सीढ़ियां अच्छे गुणों जैसे  दया, विश्वास और विनम्रता को दर्शाती हैं. वहीं दूसरी ओर सांप बुरी किस्मत, गुस्सा और हत्या आदि को दर्शाता है.

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सांप सीढ़ी का इतिहास और इससे जुडी रोचक जानकारी

मित्रों सांप सीढ़ी खेल का पूरा सार यदि शुद्ध हिंदी में समझा जाएं तो इसका अर्थ है यह अच्छे कर्म करने के बाद ही व्यक्ति को मोक्ष का रास्ता दिखाता है. दूसरी ओर बुरे कर्म करने वाले लोगों मोक्ष तक पहुंचने के लिए सांप की यातनाएं भोगना पड़ती है. एक उदाहरण के तौर पर समझे तो- जीवन की राह में सांप रूपी कोई बुराई लोगों को ऊपर बढ़ने नहीं देती है  और एक बार फिर उन्हें नए जीवन की शुरुआत करनी पड़ती है.

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सांप सीढ़ी का इतिहास और इससे जुडी रोचक जानकारी

दोस्तों आपकों जानना जरूरी है कि, कई स्कॉलर इस खेल की उत्पत्ति को प्राचीन जैन मंडलों से भी जोड़कर देखते हैं. इतिहास चाहे कुछ भी हो हर धर्म में इस खेल का करीब-करीब वहीं अर्थ है कि इंसान जीवन में बुरे कर्म करना छोड़ दें.

19वीं शताब्दी के दौरान, भारत में उपनिवेशकाल के समय ही सांप-सीढ़ी का खेल इंग्लैंड में जा पहुंचा था. ब्रिटिश हुकूमत अपने साथ यह प्राचीन भारती खेल मोक्षपट भी अपने देश लेकर गए. अंग्रेजों ने इसमें अपने अनुसार कुछ फेरबदल कर दिए. सांप और सीढ़ी का खेल अंग्रेजी में और ‘स्नेक एंड लैडरर्स’ के नाम से विश्व प्रसिद्ध है. अंग्रेजों ने अब इसके पीछे के नैतिक और धार्मिक रूप से जुड़े हुए सनातनी हिंदू विचार को हटा दिया था. अब इस खेल में सांप और सीढ़ियों की संख्या भी बराबर हो चुकी थी. जितने सांप उतनी ही सीढियां मौजूद है.

इंग्लैंड के बाद यह खेल अब संयुक्त राज्य अमेरिका में भी जा पहुंचा. साल 1943 में अमेरिकी लोगों के बीच यह खेल काफी प्रचलन में आया. अमेरिका को इस सांप-सीढ़ी के खेल से मिल्टन ब्रेडले ने परिचय करवाया. वहां इस खेल का नाम  ‘शूट (chute) एंड लैडरर्स’ रखा गया.

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सांप सीढ़ी का इतिहास और इससे जुडी रोचक जानकारी

किस्मत का है ये खेल

दोस्तों सांप और सीढ़ी के खेल की रोचक बात यह है कि इसमें आप अपना कपटी दिमाग नहीं लगा सकते हैं. यह पूर्ण रूप से किस्मत पर निर्भर खेल है. यदि आपकी गोटी 98 नंबर तक पहुंच चुकी है. बस दो अंको की और जरूरत है और आप खेल को किस्मत के भरोसे जीत सकते हैं. लेकिन, अक्सर होता यह है कि, 99 अंक पर मौजूद खेल का सबसे बड़ा सांप आपको डस कर एक अंक पर सबसे नीचे भेज देता है. जिसके बाद आपकों दोबारा खेल शुरू करना पड़ता है. दूसरे नजरिए से देखा जाएं तो यह खेल एक प्रकार से दोबारा जन्म लेने की प्रक्रिया को दिखाता है. इस खेल में मौजूद 100 नंबर की संख्या ‘मोक्ष’ को दर्शाता है. इस खेल का उद्देश्य होता सांप- सीढ़ियों को पार करते हुए 100 नंबर की संख्या तक पहुंचना.

आज भी उतना ही लोकप्रिय 

खैर समय में साथ खेल में बहुत से बदलाव होते गए. सांप-सीढ़ी का यह खेल आज भी इतना मजेदार होता है की बचपन में जिसने भी यह खेल खेला होगा,वो शायद ही इसे भूले होंगे. भारतीय प्राचीन खेल की सादगी और आसान रूल्स इसे हर किसी को खेलने के लिए मजबूर कर देती है. भले ही आज बोर्ड हर जगह ले जाना संभव नहीं है लेकिन यह खेल अब स्मार्टफोन पर भी उपलब्ध है.

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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