वट सावित्री व्रत 2024? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व, और कथा, वट सावित्री व्रत 2024(Vat Savitri Vrat 2024)
महत्वपूर्ण जानकारी
Table of Contents
- वट सावित्री व्रत 2024
- शुक्रवार, 21 जून 2024
- पूर्णिमा तिथि शुरू: 20 जून 2024 को रात 09:42 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 21 जून 2024 अपराह्न 09:22 बजे
वट सावित्री व्रत 2024 (Vat Savitri Vrat 2024) ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को किया जाता है. यह व्रत सुहागिन महिलायें अखंड सौभाग्य और संतान की प्राप्ति के लिए रखती है. हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण होता है.
पौराणिक हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलायें अपने पति की दीघु आयु की कामना के लिए रखती हैं. इतना ही नहीं महिलाएं यह व्रत अखंड सौभाग्य एवं संतान प्राप्ति के लिए रखती है. वट सावित्री व्रत, हर साल ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है. पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुहागिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है.
इस साल वट सावित्री का व्रत 19 मई 2024 को पड़ रहा है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन सावित्री ने अपने पति सत्भामा के प्राण यमराज से वापस ले आई थी.
प्राचीन किवदंति है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती है. इस दिन सुहागिन महिलाएं बरगद के वृक्ष के चारों ओर घूमकर इस पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं.
वट सावित्रि शुभ मुहूर्त : Vat Savitri Vrat 2024
इस साल वट सावित्री व्रत 21 जून 2023 को रखा जाएगा. इस दिन ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पड़ रही है.
- वट सावित्री व्रत 2024
- शुक्रवार, 21 जून 2024
- पूर्णिमा तिथि शुरू: 20 जून 2024 को रात 09:42 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 21 जून 2024 अपराह्न 09:22 बजे
वट सावित्रि व्रत पूजा सामग्री :
- सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, बांस की टोकरी, बांस का पंखा, लाल कलावा, धूप, दीप, घी, फल, फूल, रोली, सुहाग का सामान, पूडियां, बरगद का फल, जल से भरा कलश
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि : Vat Savitri Vrat
वट सावित्री व्रत के दिन पर अलसुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद घर में पूजा स्थल पर दीप प्रज्वलित करें और व्रत का संकल्प लें. जिसके बाद पूजा की थाल में समस्त पूजन सामग्री के साथ सावित्री और सत्यवान की मूर्ति लेकर, वट वृक्ष की पूजाके लिए जाएं. वहां वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की मूर्ति को स्थापित कर मूर्ति और वृक्ष पर जल अर्पित करें. अब सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं. अब लाल कलावा को वृक्ष में सात बार परिक्रमा करते हुए बांधे. उके बाद व्रत कथा सुनें. आरती करके हाथ जोड़कर प्रणाम करें.
वट सावित्री व्रत की कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था. राजा अश्वपति के कोई संतान न थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं. करीब 18 वर्षों तक वह ऐसा करते रहे. इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी. सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने के कारण से कन्या का नाम सावित्री रखा गया. कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान हुई. योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे. उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा.
सावित्री तपोवन में भटकने लगी. वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था. उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया. ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! यह क्या कर रहे हैं आप? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं. एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी.
ऋषिराज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति घोर चिंता में डूब गए. सावित्री ने उनसे कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं. तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए.
इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है. सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी. राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया.
सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी. समय बीतता चला गया. नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था. वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं. उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया. नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया.
हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं. जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये. तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये. सावित्री अपना भविष्य समझ गईं.
सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है. लेकिन सावित्री नहीं मानी.
सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो. तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो. सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें. यमराज ने कहा ऐसा ही होगा. जाओ अब लौट जाओ. लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं.
यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ. सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा. सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें. यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ, लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं.
यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा. इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा. यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया.सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है. यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े. यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था.
सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े. दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है. इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे.
वट सावित्री व्रत का महत्व :
पति के लिए किया जाने वाला यह व्रत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन सावित्री ने सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे. तभी से ये व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाने लगा. इस व्रत में वट वृक्ष का महत्व बहुत होता है. इस दिन सुहागिन स्त्रियां वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का पूजन करती है और उसकी परिक्रमा लगाती हैं. बरगद के पेड़ की 7,11,21,51 या 101 परिक्रमा लगाई जाती है. पेड़ पर सात बार कच्चा सूत लपेटा जाता है.
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