तुलसी विवाह : कार्तिक एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। इस दिन, तुलसी का विवाह सालिगराम (भगवान विष्णु का प्रतीक) के साथ संपन्न किया जाता है। यह विवाह हिंदू भगवान विष्णु या उनके अवतार कृष्ण के साथ तुलसी (पवित्र तुलसी) के पौधे का औपचारिक विवाह है। यह कार्तिक मास (अक्टूबर/नवंबर) में होता है और इसके साथ ही हिंदू विवाह सीजन की शुरुआत होती है। इस अनुष्ठान में विस्तृत पूजा विधि होती है, जिसमें तुलसी का पौधा आंगन या किसी पवित्र स्थल पर स्थापित किया जाता है, और पूजा एवं प्रसाद अर्पण के बाद विवाह की रस्में निभाई जाती हैं। इस परंपरा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, क्योंकि यह दिव्य और सांसारिक के मिलन का प्रतीक है।
तुलसी के पौधे को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है और इसे महालक्ष्मी का अवतार माना जाता है, जो वृंदा के रूप में जन्मी थीं। एक मान्यता के अनुसार, तुलसी का विवाह राक्षस राजा जलंधर से हुआ था। उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की थी कि कोई देवता उसके पति को हानि न पहुंचा सके। अन्य देवताओं के निवेदन पर भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और तुलसी के साथ रहने लगे। जब जलंधर की मृत्यु के बाद सत्य उजागर हुआ, तो वृंदा ने विष्णु को श्राप देकर उन्हें पत्थर (शालिग्राम) में परिवर्तित कर दिया, और वहीं से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। इसी कारण से विष्णु की पूजा बिना तुलसी पत्र के अधूरी मानी जाती है।
हिंदू परंपरा में तुलसी विवाह के कई अर्थ और महत्व हैं:
- भगवान विष्णु/कृष्ण के साथ तुलसी का विवाह: तुलसी का भगवान विष्णु या कृष्ण के साथ विवाह भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। यह एकता श्रद्धा और प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
- शादी के मौसम की शुरुआत: तुलसी विवाह हिंदू समाज में विवाह के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है, और इस समय के बाद शादी का मुहूर्त शुभ माना जाता है।
- आध्यात्मिक लाभ: ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह में भाग लेने से या इसके दर्शन करने से आध्यात्मिक लाभ और आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे एक महत्वपूर्ण और पुण्यदायी अवसर माना गया है।
- पवित्रता और उर्वरता का प्रतीक: तुलसी पवित्रता और उर्वरता की प्रतीक मानी जाती है। भगवान विष्णु/कृष्ण के साथ उनका विवाह एक सुखद और समृद्ध जीवन का प्रतीक है।
- सांस्कृतिक और सामुदायिक उत्सव: तुलसी विवाह का आयोजन समुदाय के लोगों को एकत्रित करने, सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने और समर्पण भाव को मजबूत करने का अवसर होता है।
तुलसी विवाह की कहानी हिंदू पौराणिक कथाओं और पुराणों में निहित है। संक्षेप में, वृंदा (जो तुलसी के रूप में जानी जाती हैं) ने भगवान विष्णु से अगले जन्म में उनके साथ विवाह का वरदान पाया था। राक्षस जलंधर, वृंदा के सतीत्व की शक्ति के कारण अजेय था, जिससे देवता त्रस्त थे। भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण करके वृंदा के पास पहुंचे और उनकी पवित्रता को भंग कर दिया। इससे जलंधर कमजोर पड़ गया और युद्ध में भगवान शिव द्वारा पराजित हुआ।