श्री दुर्गा सप्तशती पाठ कैसे करें : नवरात्र में माता के उपासक शक्ति की आराधना करते हैं, पूजन के लिए घट स्थापना करते हैं। सनातन संस्कृति के अनुसार नवरात्र के 9 दिन आदि शक्ति की उपासना के दिन होते हैं, शक्ति की उपासना करने वाले उपासकों की कोशिश यही रहती है कि, पूजन के द्वारा माँ को प्रसन्न कर अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी करवा सके। तो ऐसे में जप का बहुत अधिक महत्व होता है। नवरात्र के दिनों में श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का विशेष महत्व है। पोस्ट के जरिए हम जानेंगे श्री दुर्गा सप्तशती पाठ कैसे करें जाने संपूर्ण जानकारी
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ कैसे करें | दुर्गा सप्तशती पाठ नियम
Table of Contents
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ माता के आराधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता हैं। यह पाठ बेहद ही शक्तिशाली होता है। तो चैत्र और शारदीय नवरात्रों में दुर्गा सप्तशती का पाठ आप कैसे करेंगे इससे संबंधित पूरी जानकारी आपको हम लेख के जरिए देने जा रहे है। उस के क्या नियम है? हमें किस तरीके से पाठ करना चाहिए? कैसे हमें विभक्त करना चाहिए? कैसे हमे इन तेरा अध्याय को बांटना चाहिए। पाठ हमें रोज़ कैसे करना चाहिए। कैसे हमें मंत्रों से संपूर्ण करना चाहिए? श्री दुर्गा सप्तशती पाठ को शापोद्धार विधि क्या होगी? कैसे हम श्री दुर्गा सप्तशती पाठ को इन नवरात्रों में खत्म करें? आइये जानते है।
दुर्गा सप्तशती पढ़ने से क्या होता है?
श्री दुर्गा सप्तशती चार वेदों की तरह ही अनादि ग्रंथ माना गया है, जिसमें आदि शक्ति दुर्गा के अद्भुत चरित्र की गाथा कही गई है। यदि नौ दिनों तक माता के उपासक श्रद्धा पूर्वक शुद्ध चित्त होकर। नियमों का पालन करते हुए, श्री दुर्गा सप्तशती पाठ करते हैं, तो ऐसा माना गया है, कि भीषण से भीषण संकट भी माँ अपने भक्तों के दूर कर देती है।
सप्तशती में कितने अध्याय होते हैं?
बताते चलें कि, श्री दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय हैं, दुर्गा सप्तशती ग्रंथ में कुल 700 श्लोक हैं। तीन भाग में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती नाम से ही तीन चरित्रों का वर्णन है।
प्रथम चरित्र में केवल पहला अध्याय, मध्यम चरित्र में दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय आता है, जबकि बाकी के सभी अध्याय को उत्तम चरित्र में रखा गया है।
दुर्गा सप्तशती पाठ की सरल विधि
सबसे पहले अगर घर में आपने कलश स्थापना की हुई है, तो वहाँ पर आपने गणेश पूजन भी किया होगा। गणेश पूजन कीजिये फिर कलश पूजन, फिर नवगृह पूजन और फिर ज्योति पूजन। इसके बाद श्री दुर्गा सप्तशती ग्रंथ को शुद्ध आसन पर एक लाल कपड़ा बिछाकर रखना चाहिए।
इसके बाद आपको अपने माथे पर भस्म, चंदन, रोली, जिस चीज़ का भी आप टीका लगाते हो, वो तिलक लगाकर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठ जाना चाहिए। ग्रंथ पढ़ने के पहले शुद्धि के लिए तत्व शुद्धि की जाती है। इसके लिए चार बार आचमन करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती शापित क्यों है?
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ से पहले शापोद्धार करना जरूरी माना गया है। ऐसा माना जाता है, के श्री दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र ब्रह्मा, वशिष्ठ, विश्वामित्र के द्वारा शापित है, इसलिए शापोद्धार के बिना पाठ का फल नहीं मिलता है। अगर आप 1 दिन में पाठ पूरा ना कर सके, तो इसके लिए 1 दिन में केवल मध्यम चरित्र का, या दूसरे दिन शेष चरित्र का पाठ करें, ऐसा आप संकल्प करें।
दुर्गा सप्तशती का बीज मंत्र क्या है?
एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात के श्री दुर्गा सप्तशती पाठ से पहले और बाद में नवान्न मंत्र, जो की एक छोटा सा मंत्र है और अति सिद्ध मंत्र है।
इसका पाठ करना अनिवार्य माना गया है तो आप नवार्ण मंत्र, ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे। यह नवाक्षर मंत्र है,आप इसका उच्चारण जरूर करें।
कम से कम 108 बार इसका उच्चारण करे। अगर संस्कृत में श्री दुर्गा सप्तशती आप नहीं पढ़ पा रहे है तो हिंदी में पाठ कर सकते है। लेकिन पाठ का उच्चारण आपको एकदम ही शुद्धता से करना है।
ऐसा बिलकुल न हो कि पाठ आप किसी भी तरीके से पढ़े, बहुत ज़ोर से पढ़ें, जल्दी-जल्दी पढ़ें। ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए। बिल्कुल शुद्ध मन से शुद्ध भाव से एकदम भाव विभोर होकर, जैसे माता आपके सामने साक्षात बैठी है, और वैसे ही उतने ही भाव विभोर होकर आपको श्री दुर्गा सप्तशती पाठ करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती का पाठ कितने दिन में पूरा करना चाहिए?
अभी आप 13 अध्याय को किस तरह बाटेंगे? पाठ आप 7 दिन तक करेंगे, अगर आप एक दिन में इन 13 अध्याय यानी तीनो चरित्रों का पाठ नहीं कर पाते हैं, तो आपको प्रथम दिन प्रथम अध्याय करना है।
दूसरे दिन दो, पाठ, द्वितीय और तृतीय अध्याय करना चाहिए। तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थी अध्याय का कीजिए। चौथे दिन आपको पंचम, षष्टम, सप्तम और अष्टम अध्याय के चार पाठ करने होंगे।
पांचवें दिन दो अध्याय नवम और दशम अध्याय का पाठ कीजिए। छठे दिन आपको सिर्फ ग्यारहवां अध्याय करना है, और सातवें और आखिरी दिन आपको दो पाठ द्वादश और फिर ओदश अध्याय का पाठ करना है। यानी की 12 वां और 13 वां अध्याय। इसके बाद एक आवृति सप्तशती की पूरी हो जाती है।
तो इस तरीके से आप 7 दिन में जो 13 अध्याय है, वो विधिपूर्वक कर सकते हैं। उसके बाद आठवें दिन कन्या पूजन जरूरी बताया गया है। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ, कवच, अर्गला और किलक तीन रहस्यों को भी सम्मिलित इसमें करना चाहिए। श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के बाद आपको हर दिन क्षमा प्रार्थना जरूर करनी चाहिए।
दुर्गा सप्तशती का कौन सा पाठ करना चाहिए?
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के प्रथम, मध्यम और उत्तर चरित्र का क्रम से पाठ करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं माँ दुर्गा पूर्ण करती है। इसे महाविद्या क्रम भी कहा गया है। श्री दुर्गा सप्तशती के उत्तर, प्रथम और मध्य चरित्र के क्रमानुसार आप आठ करते हैं, तो इससे शत्रु नाश और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसे महातंत्री क्रम कहते हैं।
देवी पुराण में प्रात काल पूजन और प्रातः में विसर्जन करने को कहा गया है। रात्रि में घटस्थापना वर्जित होती है। तो अगर आप सिर्फ श्री दुर्गा सप्तशती पाठ कर रहे हैं, तो इसी तरीके से करेंगे प्रात काल ही पूजन करेंगे और आखिरी दिन आप प्रात काल की ही पूजा करने के बाद कन्या भोजन कराएंगे।
दुर्गा सप्तशती का पाठ कैसे पढ़ें?
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ करने का अलग-अलग विधान है। कुछ अध्याय में उच्च स्वर, कुछ मे मंद और कुछ में शांत मुद्रा से बैठकर पाठ करना श्रेष्ठकर माना गया है। बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है।
ध्यान से आप सुनिए, जैसे की कीलक मंत्र को शांत मुद्रा में बैठकर, मानसिक पाठ करना श्रेष्ठ है, देवी कवच उच्चस्वर में और श्री अर्गला का प्रारंभ उच्च स्वर में और उसका समापन शांत मुद्रा से करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती पाठ की संपूर्ण विधि
दोस्तों संपूर्ण पाठ विधि जो होती है, कि आप एक मंत्र को विशेष मंत्र जो आप करना चाहते हैं किसी विशेष प्रयोजन के लिए उससे आगे और पीछे लगाकर संपूर्ण करें। इससे क्या होता है, समय बहुत ज्यादा लगता है।
दुर्गा सप्तशती किताब में बहुत सारे मंत्र दिए हुए हैं। आप वहाँ से ले सकते हैं। अगर आप चाहे तो अगर आपको ज्यादा मंत्र नहीं कर सकते, तो जो एक बीज मंत्र है, माँ का जैसे ॐ दुं दुर्गाय नम:। या ॐ दुर्गाये नम: इन छोटे-छोटे मंत्रों से आप पाठ संपूर्ण कर सकते हैं।
घट स्थापना विधि आपको बताई, अगर आप घटस्थापना नहीं करते हैं, और आप चाहते हैं, कि आप इन नवरात्रों में सिर्फ और सिर्फ श्री दुर्गा सप्तशती का ही पाठ करें, तो इसके लिए भी आपको एक कलश की स्थापना कर लेनी चाहिए।
आपको दीप प्रज्वलन जरूर करना चाहिए। आप अखंड ज्योत जलाये या ना जलाये। जब तक आप पाठ कर रहे हो, तब तक एक दीप प्रज्वलित कर जरूर रखें।
उसके बाद माँ का ध्यान करें और किसी भी ध्यान में अपने गुरु अपने आचार्य का ध्यान करना अति आवश्यक है। उसके बाद गणपति का ध्यान करें, भगवान शंकर का ध्यान करें, भगवान विष्णु और हनुमानजी, नवग्रह देवताओं का ध्यान करके आप श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रारंभ करें।
पांच विधि में आपको संकल्प लेना चाहिए। दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले गणपति और तमाम देवी देवताओं का संकल्प कीजिए।
हाथ में जौ, चावल, जो भी दक्षिणा रखना है, वो रखकर आपको माता का ध्यान करना चाहिए। संकल्प लेना चाहिए, संकल्प में आप माता से कह सकते हैं, कि हे! भगवती आप जिस गोत्र की है, उस गोत्र का नाम लीजिए, अपना नाम लीजिए, स्थान का नाम दीजिए।
आप ये कहें – कि पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ मैं आपकी भक्ति और ध्यान में हूँ। आप हमारे घर में पधारे और जो भी हमारी मनोकामना है, उसको आप मन ही मन बोलकर आप उस जल को जमीन पर छोड़ सकते हैं।
इसके बाद आपको श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। आप यह संकल्प लें कि आप 13 अध्याय का सात दिनों में पाठ करेंगे, या आप हर दिन पूरा पाठ करेंगे।
जो भी आपको संकल्प लेना है, वो मन में आप पहले दिन ही ले लीजिए और संकल्प करने के बाद माँ की धूप, दीप, नैवेद्य आदि के साथ आप पूजा प्रारंभ करें।
संबंधित लेख :