हरिराम बाबा मैरवा धाम की कहानी । Mairwa Dham Siwan । Mairwa Hariram Baba ki Kahani (श्री हरिराम ब्रह्म स्थान, मैरवा सीवान)
यदि आप भूत-प्रेत की पीढ़ा से परेशान हैं तो आपकों एक बार बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे श्री हरिराम ब्रह्म स्थान, मैरवा सीवान पर जाकर एक बार दर्शन अवश्य करना चाहिए. कारण मंदिर भूत-प्रेत से मुक्ति दिलवाए जाने के लिए पूरे विश्व में विख्यात है. मंदिर की कहानी के गर्भ में जाकर देखें तो आपकों आश्चर्य चकित कर देने वाले तथ्य और बातें पता चलेगी. बिहार राज्य के सीवान जिले से करीब 16 किलोमीटर दूर स्थित मैरवा धाम बिहार और उत्तर प्रदेशवासियों की आस्था का केंद्र है. यहां लोग श्री हरिराम ब्रह्म से अपनी पीढ़ा बताते है और बाबा कुछ ही समय में उन्हें परेशानियों से मुक्त कर देते हैं. चलिए पोस्ट के जरिए हम हरिराम बाबा मैरवा धाम की कहानी को जानें…………
हरिराम बाबा मैरवा धाम की कहानी । Marwa Hariram Baba ki Kahani
मैरवा एक ऐसा प्राचीन नगर है, जो वर्तमान समय में ‘हरिराम ब्रम्ह धाम’ मंदिर के नाम से जाना जाता है. प्राचीन किवदंती है कि, हरिराम ब्रम्हा भगवान शिव का अवतार थे. वह एक बेहद ही चमत्कारी ब्राम्हणदेवता थे. हरिराम ब्रम्ह का जन्म 1671 तथा मृत्यु 1909 के बीच माना जाता है. वह चरवाहे के रूप में मैरवा में विचरण करते थे.
यह वह समय था जब मैरवा में राजा कनक शाही का राज्य हुआ करता था. लोगों के बीच मान्यता है कि, हरिराम ब्रम्हा के पास एक दुधारू भैंस और दो श्वान (कुत्ता) थे. वह असीमित मात्रा में दूध देती थी. खास बात यह थी कि, दूध चीनी से भी मीठा था. हरिराम के भैंस की खबर एक दिन राजमहल में पहुंची, तो राजा के मंत्रियों ने उस दुधारू भैंस को बलपूर्वक राजा के महल मे लाकर बांध दिया.
हरिराम ब्रम्हा उसी भैंस का दूध पीते थे और अन्य प्रकार का भोजन ग्रहण नहीं करते थे. जब भैंस महल परिसर मे आ गई तब हरिराम ब्रम्हा ने क्रोध में आकर एक यज्ञ किया. इस दौरान हरिराम के दोनों श्वान भी उनके साथ यज्ञ कुंड के समीप बैठे रहे. करीब 21 दिनों तक चले यज्ञ के दौरान हरिराम ने अन्न-जल त्याग दिया. जिससे उनकी हालात बहुत ही खराब हो गई.
हरिराम की मृत्यु निकट आते देख दोनों श्वान अग्निकुंड में कूद गए, जिससे उनकी मृत्यु हो गई. कुछ ही समय बाद हरिराम ने भी प्राण त्याग दिए. जिसके बाद बाबा की आत्मा काशी विश्वनाथ पहुंची. जहां पर हरिराम ने काशीविश्वनाथ की कई दिनों तक सेवा की. हरिराम की भक्ति से प्रसन्न होकर काशी विश्वनाथ ने उन्हें उनका अंश बना लिया. काशी से लौटकर हरिराम मैरवा धाम पहुंचे, जहां पर उनका मंदिर बनवाया गया, जिसके बाद वह सीवन पहुंचे. कहा जाता है कि, हरिराम पूरे बिहार के ब्रह्मगणों के देव है. उनकी अनुमती के बिना कोई ब्रह्म किसी भी प्रकार का कोई कदम नहीं उठा सकता.
एक अन्य कथा की मानें तो कहते हैं कि वह भैंस चमत्कारी थी. उसके दूध से बाबा नगरवासियों का इलाज भी करते थे. चारों तरफ बाबा के निराजल रहने से हाहाकार मच गया. बात राजमहल तक पहुंची. तो राजा कनक शाही की पत्नी रात्रि में लोटे में उसी भैंस का दूध लेकर वह हरिराम ब्रम्ह के पास पहुंचीं, और बाबा के चरणों में गिर गईं और बाबा से दूध ग्रहण करने का आग्रह करने लगीं.
बाबा हरिराम ब्रम्ह का हृदय पिघल गया. उन्होंने रानी से कहा कि पुत्री मेरी देह इतनी निष्क्रिय हो चुकी है कि अब मेरे प्राण यही निकल जाएंगे. मेरे देह त्याग करते ही इस स्थान ब्रम्हाग्नि लगेगी जिसमे सबकुछ जलकर भस्म हो जाएगा. तुम अपने परिवार को लेकर यहा से कहीं दूर चली जाओ.
रानी रक्षा के लिए बाबा से गुहार करने लगीं. बाबा हरिराम ब्रम्ह ने कहा कि रानी तुमने मेरे प्राणों की रक्षा का प्रयास किया. इसलिए तुम लोग यहां से चले जाओ. बाद में इसी स्थान पर मेरा समाधि स्थल बनवा देना. मैं सदा तेरे परिवार की रक्षा करता रहूंगा.
कहा जाता है कि उन दिनों राजा कनक शाही के बडे़ पुत्र बलवन्त शाही की पत्नी गर्भवती थीं. उनको मायके भेज दिया गया. बाद में पूरे महल परिसर में आग लग गई जो धीरे धीरे बढ़कर आस-पास के क्षेत्र में फैल गई. इस बात के पुख्ता प्रमाण तो ज्ञात नहीं है कि राजा कनक शाही एवं उनकी पत्नी की मृत्यु किस प्रकार हुई, लेकिन लोक मान्यता के अनुसार राजा कनक शाही मैरवा के अंतिम राजा रहे तथा ब्रम्हाग्नि में किला ध्वस्त हो गया. मंदिर की स्थापना सन् 1728 में हुई थी.
झरही में मौजूद है नौ कुंड
विजय प्रताप शाही, मैरवा की पुत्री ऋतुजा सिंह बघेल द्वारा ब्लॉग के जरिए दी गई जानकारी की मानें तो मंदिर परिसर के सामने एक कुंड है. कुंड का निर्माण राजा कनक शाही ने करवाया था. कुंड के विषय में ऋतुजा सिंह बघेल परदादा श्री रामलोचन शाही द्वारा उन्हें बताया गया है कि, कुंड में कुएं हैं.
उक्त 9 कुएं पास ही बहती हुई झरही नदी से जुडे़ हुए हैं जिससे इस कुंड में कभी पानी समाप्त नहीं होता है.आज भी शाही परिवार के प्रत्येक शुभ कार्य के लिए हरिराम ब्रम्ह स्थान का आशीष सबसे पहले लिया जाता है. एक विशेष बात यह है कि मैरवा राज के शाही परिवार का कोई भी पुरूष तथा विवाहिता इस प्रसाद को ग्रहण नहीं करती हैं. केवल विवाहित लड़कियां ही ग्रहण करती हैं. भस्म ग्रहण करने की परंपरा है.
शाही परिवार में होने वाला मुंडन संस्कार मंदिर परिसर में संपन्न होता है. मुंडन करवाए जाने के बाद कुंड में स्नान करने की परंपरा है. मंदिर में सेवा एवं पूजन करने वाले पंडा लोगों को शाही परिवार का संरक्षण प्राप्त है. वहां के माली, प्रसाद बेचने वाले आदि सभी शाही परिवार के संरक्षण में हैं.
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