History of Muzaffarpur Bihar : मुजफ्फरपुर तिरहुत प्रमंडल का प्रमुख जिला है। पहचान की बात करें तो उत्तर बिहार की व्यावसायिक राजधानी के नाम से शासकीय दस्तावेजों में अंकित है। शाही लीची ने Muzaffarpur को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है। राजनीतिक गलियारों में भी यह जिला काफी मशहुर है।
दशकों से Muzaffarpur जिले की विशेष पहचान रही है। उभरती प्रतिभाओं ने अपने दम पर कई क्षेत्रों में जिले काे खास मुकाम तक पहुंचाया है। किसानों ने यहां की शाही लीची का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान बढ़ाया है। यही कारण हैं, न केवल देश वरन विदेश में शाही लीची की मांग होती है। जिले के हुनर की बात करें तो कारीगरों ने अपने खास कौशल के दम पर लाह की चूड़ियां यानी लहठी को यहां की पहचान से जोड़ दिया। बूढ़ी गंडक नदी के तट पर बसे इस जिले ने श्रीकृष्ण मेडिकल कालेज एवं अस्पताल यानी एसकेएमसीएच, इंजीनियरिंग कालेज यानी एमआइटी, बीआरए बिहार यूनिवर्सिटी, एलएस कालेज, आरबीटीएस होम्योपैथिक कालेज के दम पर शिक्षा के क्षेत्र में भी खास मुकाम हासिल किया है।
मुजफ्फर खान के नाम पर कहलाया मुजफ्फरपुर | Muzaffarpur was called after Muzaffar Khan
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Muzaffarpur बिहार के प्राचीनतम जिलों में से एक है। आजादी के पूर्व से ही जिला अस्तित्व में आ गया था। सन् 1875 में तिरहुत जिले से तोड़कर मुजफ्फरपुर बनाया गया था। जहां तक इसके नामाकरण की बात है तो कहा जाता है कि ब्रिटिश शासनकाल में उसके एक राजस्व अधिकारी मुजफ्फर खान के नाम पर इसका नामाकरण किया गया। यहां भोजपुरी व मैथिली दोनों ही सुनने को मिलती है। जिले के उत्तर में पूर्वी चंपारण और सीतामढ़ी, दक्षिण में वैशाली और सारण, पूर्व में दरभंगा और समस्तीपुर तथा पश्चिम में सारण और गोपालगंज जिला मौजूद है।
मुजफ्फरपुर का इतिहास | History of Muzaffarpur
दोस्तों यदि Muzaffarpur के शुरुआती इतिहास से धुल हटाएं तो, पता कर पाना संभव नहीं है, लेकिन टुकड़ों में इसकी जानकारी मिलती है। हम प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण की बात करें तो उस समय इसे राजर्षि जनक विदेह से जोड़ा जाता है। बाद में राजनीतिक सत्ता मिथिला से वैशाली में स्थानांतरित हो गया। ह्वेनसांग की यात्रा से पाल वंश के उदय तक, मुजफ्फरपुर उत्तर भारत के एक शक्तिशाली शासक महाराजा हर्षवर्धन के नियंत्रण में था। 647 ईस्वी के बाद जिला स्थानीय प्रमुखों के अधीन हाे गया। 8 वीं शताब्दी ईस्वी में पाल राजाओं ने 1019 ईस्वी तक तिरहुत पर अपना कब्जा कायम रखा। मध्य भारत के चेदी राजाओं ने भी तिरहुत पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। मुगलकाल में 1323 में गयासुद्दीन तुगलक ने जिले पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
आजादी की लड़ाई में दिया खास योगदान | Gave special contribution in the freedom struggle
14वीं शताब्दी के बाद से इसके शासक बदलते रहे। 1764 में बक्सर की लड़ाई में जीत हासिल कर ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार में कर लिया। आजादी की लड़ाई में भी यह जिला काफी सक्रिय रहा। मुजफ्फरपुर में ही 1908 में युवा बंगाली क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने बम फेंका था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश में राजनीतिक जागृति ने मुजफ्फरपुर में भी राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रेरित किया। दिसंबर 1920 में महात्मा गांधी ने Muzaffarpur जिले की यात्रा की। इस जिले ने देश की आजादी के संघर्ष में अपना अहम योगदान दिया है।
गरीबस्थान उत्तर बिहार का देवघर | Deoghar, the poor place in North Bihar
Muzaffarpur में औराई, बंदरा, बोचहां, गायघाट, कांटी, कटरा, कुढ़नी, मड़वन, मीनापुर, मोतीपुर, मुरौल, मुशहरी, साहेबगंज, सकरा, पारू और सरैया यानी कुल 16 प्रखंड हैं। जिले की पहचान धार्मिक रूप से भी है। बाबा गरीबस्थान को उत्तर बिहार का देवघर कहा जाता है। इसी तरह से दाता कंबल शाह मजार से भी बहुत से लोगों का जुड़ाव है।
पर्यटक स्थल कोल्हुआ | tourist place kolhua
कोल्हुआ Muzaffarpur जिले में है। यह पटना के उत्तर-पश्चिम में करीब-करीब 65 किलोमीटर की दूरी पर मौजदू हैं। यहां मौर्य सम्राट अशोक का बलुआ पत्थर का स्तंभ देखने योग्य है। इसमें उत्तर दिशा की ओर मुख कर रहे सिंह की आकृति है। कोल्हुआ के आसपास कई अन्य पुरातात्विक स्थल हैं। जिसमें राजा बीसल का गढ़ (प्राचीन वैशाली), अवशेष स्तूप, खरौना पोखर (अभिषेक पुष्करणी), चक्रमदास और लालपुरा आदि शामिल हैं। यह स्थान भगवान बुद्ध के एक चमत्कार से भी जोड़कर देखा जाता है!
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