मुस्लिम धर्म द्वारा मनाए जाने वाली बकरीद त्योहार के बारे में हम सभी ने जरूर सुना हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं बकरीद क्यों मनाया जाता है -Bakrid Kyu Manaya Jata Hai? मुस्लिम धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह पर्व त्याग एवं बलिदान का संदेश देता है। जिसे मुस्लिम भाईयों द्वारा पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। मुस्लिम धर्म द्वारा हजारों दशकों से मनाए जाने वाले इस पारंपरिक त्योहार के दिन मस्जिदों में नमाज अदा करने का रिवाज हैं। नमाज पढ़ने के बाद खुदा की इबादत के रुप में बकरे की बलि दी जाती है। मुस्लिम धर्म द्वारा इस पर्व को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाना जाता है।
लेकिन क्या आपकों पता हैं असल में बकरीद क्यों मनाई जाती है? इस मुस्लिम पर्व का धार्मिक महत्व क्या है? बकरीद कैसे मनाई जाती है? तथा बकरीद पर बकरों की कुर्बानी दिए जाने के पीछे क्या वजह है! उक्त तमाम प्रश्नों के जवाब मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य धर्मों के लोगों के पास ना के बराबर होती है। अतः इस पोस्ट में आपको बकरीद का त्यौहार के विषय पर सभी महत्वपूर्ण जानकारियां दी जा रही है तो आइए इस लेख कि शुरुआत करते हैं। तो फिर जानते हैं बकरीद मनाए जाने के पीछे का मुख्य कारण क्या है?
बकरीद क्या है?
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बकरीद जिसे बड़ी ईद के नाम से भी जाना जाता है। मुस्लिम धर्म द्वारा विश्व भर में कुर्बानी के इस पर्व को उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। ईद-उल-अज़हा (बकरीद) (अरबी में عید الاضحیٰ जिसका मतलब क़ुरबानी की ईद) इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक बहुत ही प्रमुख त्यौहार है।
इस दिन मस्जिदों में बड़ी संख्या में मुस्लिमजन एकत्रित होते हैं। लाखों की संख्या में मुस्लिमों द्वारा सफेद कुर्ते में ईद की नमाज अदा करने का यह दृश्य बेहद ही सुखद होता है। नमाज अदा करने के पश्चात (के बाद) चौपाया जानवरों जैसे- ऊंट, बकरे, भैंस, भेड़ इत्यादि की कुर्बानी दी जाती है।
इस्लामिक मान्यताओं में तर्क है कि, जानवरों की कुर्बानी अल्लाह की रजा के लिए करते हैं, अर्थात कुर्बानी के इस त्यौहार को मनाने के पीछे विशेष वजह है, चलिए पोस्ट के जरिए विस्तार पूर्वक जानते हैं-
बकरीद क्यों मनाते हैं?
इस्लामिक धर्म की मान्यता के अनुसार हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उसके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है। मुस्लिम समुदाय में बकरीद के इस पर्व को मनाने का विशेष कारण है। यह पर्व हजरथ इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है।
बकरीद के पर्व पर कुर्बानी दिए जाने के पीछे की परंपरा वर्षों पुरानी है! आइये हज़ारो वर्षों से चली आ रही उस परम्परा के पीछे के छिपे कारणों को जानते हैं।
बकरीद की कहानी
एक बार की बात है जब हजरत इब्राहिम पूरा नाम (हजरत इब्राहिम अलैय सलाम) कोई भी संतान न होने की वजह से बेहद दुखी थे। आखिरकार कई मिन्नतों के बाद अल्लाह की दुआ से उन्हें संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई।
उन्होंने अपने इस बेटे का नाम इस्माइल रखा। हजरत इब्राहिम अपनी इस इकलौती सन्तान से बेहद प्रेम करते थे। और एक दिन अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी प्रिय चीज की कुर्बानी देने को कहा।
अब चूंकि पूरे विश्व में हजरत इब्राहिम को सबसे अधिक लगाव, प्रेम अपने पुत्र से ही था। उन्होंने निश्चय किया कि वह अल्लाह के लिए अपने पुत्र की कुर्बानी देने को तैयार होंगे। अतः जब हजरत इब्राहिम अपने पुत्र की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। अतः जब हजरत इब्राहिम पुत्र की कुर्बानी देने जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक शैतान मिला। जो उन्हें रोकने की कोशिश करता है परंतु हजरत इब्राहिम उस शैतान का सामना करती हुई आगे बढ़ जाते हैं।
जब कुर्बानी का समय आया तो उन्होंने अपनी आंखों में पट्टी बांध ली। ताकि पुत्र की मृत्यु को अपनी आंखों से ना देख सके।
तो जैसे ही हजरत इब्राहिम छूरी (चाकू) चलाने लगे और उन्होंने अल्लाह का नाम लिया, इसी बीच छूरी चलाने के दौरान एक फरिश्ते ने आकर छूरी के सामने इस्माइल के स्थान पर भेड़ की गर्दन को लगा दिया। जिससे भेड़ का सर धड़ से अलग हो गया और इस तरह इस्माइल की जान बच गई।
कहां जाता है कि अल्लाह द्वारा हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने ऐसा किया! परंतु इस परीक्षा में हजरत इब्राहिम सफल हो गए। और तभी से कुर्बानी के लिए चौपाया जानवरों की कुर्बानी दी जाती है।
बकरीद 2024 कब है?
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसर प्रतिवर्ष रमजान के पवित्र माह के खत्म होने के करीब 70 दिन बाद इस्लामिक कैलेंडर के जु-अल-हज्जा महीने के दसवें दिन मनाए जाने वाले बकरीद के त्योहार का इस्लाम धर्म में विशेष महत्व है।
इस वर्ष 2024 में बकरीद पर्व को 16 जून या 17 जून 2024 को मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जायेगा।
बकरी ईद कैसे मनाई जाती है?
बकरीद पर्व पर खुदा की इबादत के बाद चार पैर वाले जानवरों की बलि दी जाती है। जानवरों की बलि दिए जाने के बाद उस गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं जिसमें से पहला हिस्सा गरीबों में बांट दिया जाता है, जबकि दूसरा हिस्सा अपने रिश्तेदारों एवं करीबी दोस्तों लोगों के बीच खुशी-खुशी वितरीत किया जाता है जबकि गोश्त का आखिरी हिस्सा अपने लिए रखा जाता है।
इस्लाम धर्म में पौराणिक मान्यता है कि बकरीद में कुर्बानी के लिए उन जानवरों को चुना जाता है, जिनकी सेहत तंदुरुस्त होती है मतलब जो पूर्णरूप से स्वस्थ होते हैं। कारण कुर्बानी के लिए किसी बीमार जानवर का उपयोग करने से अल्लाह राजी नहीं होती। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उस प्रत्येक मुसलमान के लिए कुर्बानी देना अनिवार्य है, जिसकी हैसियत होती है।
बकरीद का पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज को भी मान्यता देता है। बकरीद के दिन मुस्लिम बकरा, भेड़, ऊंट जैसे किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं। बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए.
शैतान को मारे जाते हैं पत्थर
इस्माइल की कुर्बानी के दौरान रास्ते में हजरत इब्राहिम को रोकने वाले शैतान को हज यात्रा के आखिरी दिन सजा दी जाती है। इस दिन रमीजमारात पहुँचकर शैतान के प्रतीक खंभों पर पत्थर फेंके जाते हैं। पत्थर फेंकने के बाद वहां से भागा जाता है।
बकरीद का महत्व
मुस्लिम समुदाय में सभी लोगों के लिए बकरीद एक विशेष महत्व रखने वाला पर्व है, इस दिन सभी मुसलमानों द्वारा समीप की मस्जिद में जाकर नमाज अदा की जाती है तथा नमाज के उपरांत चार पैर वाले जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। जिसके पीछे त्याग और बलिदान का संदेश छिपा होता है। यही है बकरीद का अर्थ।
बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है
जैसा कि हम सभी को विधित हैं कि, बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती हैं। दूसरी ओर मुस्लिम समाज में बकरे को पाला जाता हैं। अपनी हेसियत यानी आर्थिक स्थिति के अनुसार उसकी देख रेख की जाती हैं और जब वो बड़ा हो जाता हैं उसे बकरीद के दिन अल्लाह के लिए कुर्बान कर दिया जाता हैं जिसे फर्ज-ए-कुर्बान कहा जाता हैं।
इसलिए भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में मुसलमान बकरीद त्योहार को उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। एक दूसरे से गले मिलते हैं उन्हें बधाईयां देते हैं तथा खुशी से इस पर्व को मनाते हैं।
बकरीद में क़ुर्बानी का महत्त्व क्यूँ ज़्यादा होता है?
क़ुर्बानी का महत्त्व यह है कि इन्सान ईश्वर या अल्लाह से असीम लगाव व प्रेम का इज़हार करे और उसके प्रेम को दुनिया की वस्तु या इन्सान से ऊपर रखे। इसके लिए वह अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु को क़ुर्बान करने की भावना रखे।
बकरीद का अन्य नाम क्या है ?
ईद-उल-अज़हा, ईद उल ज़ुहा, कुर्बानी
बकरीद का दिन कैसा दिन होता है ?
फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है।
आज आपने क्या सीखा
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