अमरता का अर्थ क्या है | आत्मा की अमरता का सिद्धांत | Amarta Ka Matlab Kya Hai
मृतकों का अंतिम संस्कार किए जाने का रिवाज सभी प्रमुख धर्मों जैसे हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म, मुस्लिम, यहूदी, पारसी आदि में आवश्यक तौर पर है। सभी धर्मों में अंत्येष्टि संस्कार किए जाने का मूल उद्देश्य यह है कि, भले ही इंसान का शरीर पंच तत्व में विलिन में हुआ दिखाई दें, बावजूद मृत अदृश्य रूप में जीवित है। किसी भी व्यक्ति का भौतिक यानी दिखाई देने वाला शरीर नष्ट होता हुआ प्रतीत होता है, बावजूद वह अदृश्य रूप में इस ब्रह्माण में जीवंत है, सीधे शब्दों में कहा जाए तो इंसान की आत्मा में कई प्रकार की चेतना, इच्छाएं या जरूरतें होती हैं। इस पोस्ट के जरिए हम, अमरता का अर्थ क्या है और आत्मा की अमरता का सिद्धांत क्या कहता हैं। ही जानेंगे अमरता का अर्थ क्या है | आत्मा की अमरता का सिद्धांत | Amarta Ka Matlab Kya Hai.
अमरता का अर्थ क्या है | आत्मा की अमरता का सिद्धांत | Amarta Ka Matlab Kya Hai
अमरता वह अवस्था या स्थिति है, जिसमें मनुष्य सदा के लिए जीवित रहता है- जैसे मानव एक वस्त्र को उतार कर दूसरे को पहन लेता है, ठीक उसी प्रकार आत्मा एक शरीर को त्यागकर दूसरे शरीर को धारण करती है। मानव का शरीर मर जाता है, परन्तु आत्मा नहीं मरती, सनातन संस्कृति में उल्लेख है कि, यह धारणा अनादि काल से ही सभी समाज और धर्मों में मौजूद है। लेकिन, आज भी भारत और दुनिया में जड़वादी, भौतिकवादी दार्शनिक, राजनीतिक दल और सत्ता, आत्मा के स्वतंत्र अस्तित्व और अमरता में विश्वास नहीं करते हैं।
आत्मा की अमरता का सिद्धांत
मानव शरीर से भिन्न परन्तु शरीर में रहकर, जो उसके द्वारा समस्त जीवन-व्यवहार करती है, शरीर या इन्द्रियों को एक उपकरण के रूप में उपयोग करती है और अनुपयोगी होने पर उन्हें त्याग देती है, जीवात्मा नश्वर और अमर्त्य है, इसे ‘अमरता का सिद्धांत’ कहा जाता है।
मोटे तौर पर अमरता को दो प्रकार से परिभाषित किया गया है। ईसाई या इस्लामी धर्म में धारणा है कि, ईश्वर मानव आत्मा को बनाता है जो अमर है, जब तक कि ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं किया जाता है, आत्मा मौजूद नहीं है और कोई पुनर्जन्म नहीं है।
सनातन संस्कृति की मानें तो, आत्मा अनिर्मित, शाश्वत है और जन्म और मृत्यु के चक्र से तब तक चलती है जब तक कि वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती। अन्य ओर मत की मानें तो, अमरता आत्मा का स्वाभाविक धर्म है, उसी प्रकार एक मत है कि आत्मा या मनुष्य अमरता प्राप्त करना चाहता है, यह एक उपलब्धि है और इसे प्राप्त किया जा सकता है।
अमरता का अर्थ
अमरता के सनातनी विचार के अनुसार देवलोक में ‘अमृत’ नामक एक पेय है। इसे पीने से देवताओं को अमरत्व प्राप्त होता है। योग शास्त्र में उल्लेख मिलता है कि, योग से मानव शरीर भी अमर हो जाता है। मतलब कि, प्रतिदिन योग से कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होती है। उस शक्ति के योग से योग्य मनुष्य का शरीर अमर हो जाता है।
साथ ही माधवाचार्य ने ‘सर्वदर्शनसंग्रह’ के ‘रसेश्वरदर्शन’ अध्याय में कहा है कि धर्मी की परंपरा में पारे के अभ्यास से मानव शरीर अमर हो जाता है, कम से कम शरीर को लंबे समय तक जवां रखा जा सकता है। पारद का मतलब पारा होता है। आयुर्वेद में पारे के औषधीय उपयोगों को कई तरह से समझाया गया है।
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आत्मा की अमरता एक विशेष प्रकार की धारणा है। इसके पीछे का कारण यह है कि ऐसी अमरता का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। लेकिन यह सिर्फ एक अंधविश्वास नहीं है, कारण अमरता में विश्वास कुछ विशेष प्रकार की विचार प्रणालियों पर आधारित है और इसलिए मनुष्य मन पर इसका बहुत प्रभाव है।
अपने बौद्धिक और नैतिक मामलों की व्याख्या करने के लिए, हमें शरीर से अलग आत्मा की कल्पना करनी होगी और मानसिक शक्तियों और नैतिक गुणों जैसे चेतना, स्मृति, बुद्धि आदि को धारण करना होगा। यह आत्मा, जो भौतिक सृष्टि से परे है, अमर होनी चाहिए।
दार्शनिक स्पिनोज़ा (1632-77) आत्मा की अमरता पर कढ़ाई से विश्वास रखते हैं, लेकिन वह यह नहीं मानते कि जीवात्मा का अर्थ, व्यक्ति का अमर होना है। उनके अनुसार, संपूर्ण ब्रह्मांड सचेत है और व्यक्ति की मृत्यु के बाद, उसकी सीमित चेतना अमर ब्रह्मांडीय चेतना में विलीन हो जाती है।
प्राचीन भारतीय हिंदू, जैन और बौद्ध दर्शन मानते हैं कि व्यक्ति की आत्मा अमर है। उनमें अद्वैत वेदान्त की भाँति केवल इतना ही अन्तर है कि मोक्ष की अवस्था में जीवात्मा शुद्ध दैवी रूप बन जाता है और उसकी जीवन शक्ति या व्यक्तित्व नष्ट हो जाता है। क्योंकि वह जीवत्व मिथ्या है। हालाँकि, भारतीय हिंदू संस्कृति कर्म के सिद्धांतों के आधार पर आत्मा की अमरता को स्वीकार करती है।
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