निर्जला एकादशी 2023 व्रत, जानें तिथि, मुहूर्त, व्रत विधि और महत्व
महत्वपूर्ण जानकारी
Table of Contents
- निर्जला एकादशी
- बुधवार, 31 मई 2023
- एकादशी तिथि शुरू: 30 मई 2023 दोपहर 01:07 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 31 मई 2023 दोपहर 01:45 बजे
हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार व्रत और धार्मिक तिथियों में एकादशी के व्रत को सभी व्रतों का राजा माना जाता है. पूरे वर्ष में 24 एकादशी के व्रत आते है लेकिन सभी चौबीस एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी है. इसके पीछे का कारण यह है कि, इस एकादशी के उपवास से अन्य सभी एकादशी के उपवास का फल प्राप्त हो जाता है. निर्जला एकादशी 2023 (Nirjala Ekadashi 2023) व्रत ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है. इस साल निर्जला एकादशी 10 जून 2022 को पड़ रही है.
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हिंदू धर्म के पौराणिक शास्त्रों उल्लेख मिलता है कि इसे भीमसेन एकादशी 2023 (Bhimseni Ekadashi 2023), पांडव एकादशी 2023 और भीम एकादशी 2023 के नाम से भी जाना जाता है. जैसा कि नाम से ही आभास हो रहा है कि निर्जला एकादशी व्रत निर्जल रखा जाता है. इस व्रत में जल की एक बूंद भी ग्रहण करना वर्जित माना गया है. व्रत के पूर्ण हो जाने के बाद ही जल ग्रहण करने का विधान है. ज्येष्ठ माह में बिना जल के रहना बहुत बड़ी बात होती है. निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है. व्रत के इन्ही कठोर नियमों की वजह से सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत को सबसे कठिन माना जाता है.
व्रत एक दिन पहले क्यों :
निर्जला एकादशी व्रत को करते समय कई श्रद्धालु निर्जला व्रत तिथि के एक दिन पहले से ही भोजन त्याग देते है ताकि व्रत शुरू होने के समय उनके शरीर में किसी भी प्रकार का अन्न नहीं रहे. पौराणिक मान्यता है कि जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत को रखता है उसे सालभर में पड़ने वाली समस्त एकादशी व्रत के समान पुण्यफल प्राप्त होता है. इस व्रत करने वालों को जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह व्रत एकादशी तिथि के रखा जाता है और अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के दिन व्रत पारण विधि-विधान से किया जाता है.
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निर्जला एकादशी व्रत विधि :
- सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म के बाद स्नान करें और व्रत का संकल्प लें.
- इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान और पूजा करनी चाहिए.
- पूरे दिन भगवान स्मरण-ध्यान व जाप करना चाहिए.
- पूरे दिन और एक रात व्रत रखने के बाद अगली सुबह सूर्योदय के बाद सुबह नहा धोकर तैयार हो जाएं.
- पूजा करके गरीबों, ब्रह्मणों को दान या भोजन कराना चाहिए.
- इसके बाद खुद भी भगवान का भोग लगाकर प्रसाद लेना चाहिए.
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निर्जला एकादशी व्रत कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा- हे परम आदरणीय मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं और मुझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं. लेकिन मैं भूखा नहीं रह सकता हूं अत: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है. भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा- पुत्र! तुम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निर्जल व्रत करो.
इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है. जो भी मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीये रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे साल में जितनी एकादशी आती हैं उन सब एकादशी का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है. तब भीम ने व्यास जी की आज्ञा का पालन कर निर्जला एकादशी का व्रत किया था.
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व :
धार्मिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन के साथ इस व्रत को करता है उसे समस्त एकादशी व्रत में मिलने वाला पुण्य प्राप्त होता है. वह सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है. व्रत के साथ-साथ इस दिन दान कार्य भी किया जाता है। दान करने वाले व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है. कलश दान करना बेहद ही शुभ माना जाता है। इससे व्यक्ति को सुखी जीवन और दीर्घायु प्राप्त होती है.
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