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सिवान दरौंदा प्रखंड के भीखाबांध ‘भैया-बहिनी मंदिर’ का इतिहास, जानें यहां

सिवान दरौंदा प्रखंड के भीखाबांध ‘भैया-बहिनी मंदिर’ का इतिहास । History of Bhikhabandh-Bhaiya Bahini Mandir of Siwan Daronda Block

बिहार के सीवान में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्वता वाला ‘भइया-बहनी’ का मंदिर है. मंदिर को भाई-बहन के अटूट प्रेम एवं विश्वास के रुप में पूजा जाता है. असल में यहां पर बरगद का एक विशालकाय वृक्ष है जिसकी इतिहास के पन्नों में अछूती कहानी है. मुगल शासनकाल में बना भाई-बहन के अटूट प्रेम व बलिदान के तौर पर है यह बिहार का एकमात्र मंदिर है जो भाई-बहन के रोचक कहानी पर आधारित है.

महाराजगंज अनुमडंल मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूरी पर भीखाबांध में दो वट वृक्ष है. चार बीघा के बड़े क्षेत्र में फैले हुए दोनों वट वृक्ष ऐसे हैं, जैसे एक दूसरे से लिपट कर एक दूसरे की रक्षा कर रहे हैं. रक्षाबंधन के दिन यहां भाई- बहनों का जमावड़ा लगता है. सावन पूर्णिमा के एक दिन पहले इनकी पूजा अर्चना की जाती है.

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इतिहास के जानकार बताते हैं कि, सन 1707 ई से पहले यानि आज से तीन सौ से पूर्व जब भारत में मुगलों का शासन था. एक भाई रक्षा बंधन से दो दिन पूर्व अपनी बहन को उसके ससुराल से विदा कराकर डोली से घर ले जा रहा था. इसी दौरान दरौंदा थाना क्षेत्र के रामगढा पंचायत के भीखाबांध गांव के समीप मुगल सैनिकों की नजर उन भाई बहनों की डोली पर पड़ गई.

मुगल सिपाहियों ने डोली को रोककर भाई सहित बहन को बंदी बना लिए. सैनिकों ने बहन के साथ दुर्व्यवहार किया और बहन की रक्षा करने की कोशिश की. लेकिन, अधिक संख्या में सिपाही होने के कारण भाई – बहन को असहाय महसूस करने लगे. तभी बहन भगवान से अपनी आबरू बचाने के लिए विनति करने लगी.

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पौराणिक मान्यता है कि, बहन की करूणामयी पुकार सुनकर अचनाक धरती फटी और बहन- भाई उसी में समा गए. डोली ढो रहे कुम्हारों ने भी बगल में स्थित एक कुएं में कूद कर जान दे दी. कुछ दिनों बाद उसी जगह दो बट वृक्ष उगे. देखते ही देखते कुछ ही वर्षो में कई बीघा में वट वृक्ष फैल गए. वे एक दूसरे को ऐसे दिखाई पड़ते हैं, जैसे भाई – बहन एक दूसरे का रक्षा कर रहे हैं

स्थानीय लोगों के सहयोग से यहां भाई बहन के पिंड के रूप में मंदिर का निर्माण किया गया. भाई-बहन के इस बलिदान स्‍थल के प्रति लोगों में बड़ा ही असीम आस्था जुड़ा हुआ है. रक्षा बंधन के दिन यहां पेड़ में भी राखी बांधी जाती है और भाई-बहन की बनी स्मृति पर राखी चढ़ा र भाइयों की कलाई में बांधते हैं. ये परम्परा आज भी कायम है.

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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