भारत वर्ष के हिंदू धार्मिक ग्रंथों एवं शास्त्रों में शरीर एवं मन का संतुलन कायम रखने के उद्देश्य से व्रत एवं उपवास करने का विधान बनाया गया है. सनातन धर्म की प्राचीन मान्यताओं के अनुसार अनेक धार्मिक अवसरों पर व्रत एवं उपवास रखे जाते हैं.
हिंदू पंचांग की 11वीं तिथि को एकादशी के नाम से जाना जाता है. सभी व्रत और उपवासों में एकादशी का महत्व सर्वाधिक है. एकादशी प्रत्येक माह में दो बार आती है – पूर्णिमा के बाद एवं अमावस्या के बाद. पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है.
इस प्रकार 365 दिनों में करीब 24 एकादशी होती हैं. प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना अलग महत्व होता है। प्रत्येक एकादशी विभिन्न नाम से जानी जाती है. जैसे- रमा एकादशी, आमलकी एकादशी, पाप मोचनी एकादशी, रंगभरी एकादशी, षटतिला एकादशी इत्यादि. आइये लेख के जरिए जानते हैं एकादशी व्रत की संपूर्ण विधि (Ekadashi Vart Vidhi)
एकादशी व्रत का महत्व:
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एकादशी के संबंध में प्रचलित लोक मान्यता है कि यह यज्ञ एवं अनेक वैदिक कर्मकांडों से कई गुना अधिक फलदाई होती है. इसे लेकर एक अन्य मत की मानें तो इस उपवास को रखने से पूर्वजों अथवा पितरों को कुयोनि से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है. यह व्रत पूरे नियम एवं निष्ठा से करने वाले मनुष्य के सभी पापों का अंत हो जाता है और मृत्यु के बाद वह इंसान मोक्ष को प्राप्त करता है.
इस व्रत की महिमा मात्र मनुष्य ही नहीं, वरन देवता भी मानते हैं. यह व्रत अनादि काल से लेकर वर्तमान में भी अति शुभ फलदाई है. अतः इस उपवास को रखने से पहले इसके आवश्यक नियमों के विषय में जानकारी होना अनिवार्य है.
एकादशी व्रत विधि
दशमी के दिन भगवान विष्णु को स्मरण करते हुए एकादशी उपवास का संकल्प करें। दशमी के दिन से मांस, मछली, शहद, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल जैसी निषिद्ध वस्तुओं का सेवन ना करें।
एकादशी तिथि को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि के उपरांत भगवान विष्णु जी की उपासना करें. विष्णु के चित्र या मूर्ति के समक्ष घी का दीपक एवं धूप जलाएं. भगवान को नैवेद्य, फूल, फल अर्पण करें.
एकादशी के दिन गीता का पाठ करना बेहद ही शुभफलदायी होता है. इस दिन द्वादश मंत्र “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” जपें. कृष्ण, नारायण, राम आदि विष्णु के सहस्त्र नामों को बोलते हुए उनका स्मरण करें.
इस व्रत में अन्न एवं जल का सेवन वर्जित है. यदि आप निराहारी एवं बिना जल के व्रत नहीं कर सकते तो सात्विक फलाहार करें.
शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत धारी नारियल, चीनी, मेवा, कूटू, अदरक, चीनी, दूध, साबूदाना, काली मिर्च, सेंधा नमक, आलू, शकरकंद आदि का सेवन कर सकते हैं.
एकादशी व्रत का समापन:
द्वादशी के दिन अल सुबह उठ नित्यकर्म करने के बाद स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा कर सामान्य भोजन ग्रहण कर उपवास को पूरा करें. इस दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा, मिठाई श्रद्धापूर्वक दें.
एकादशी उपवास के कुछ नियम:
- एकादशी के दिन क्रोध से बचें.
- इस पावन दिन किसी को भी अपशब्द कहने से बचें, न ही किसी की आलोचना अथवा निंदा करें। इससे उपवास का फल नहीं मिलता.
- इस दिन यथा सामर्थ्य दरिद्रों को दान करें.
- एकादशी को रात्रि जागरण करने का बेहद महत्व माना जाता है। रात को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए भजन कीर्तन करें एवं एकादशी महात्मय पढ़ें.
- इस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें. भोग विलास की वस्तुओं से दूरी बनाएं.
- प्रत्येक खाद्य पदार्थ को भगवान का भोग लगाकर एवं उसमें तुलसी के पत्ते डालकर ग्रहण करें.
- इस दिन किसी अन्य द्वारा दिया गया अन्न ग्रहण न करें.
- इस दिन केला, अंगूर, आम, जैसे अमृत फलों और पिस्ता, बादाम आदि का सेवन करें.
- एकादशी के दिन गाजर, गोभी, पालक, शलजम का सेवन नहीं करें.
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