अनंत चतुर्दशी तिथि, महत्त्व, कथा, पूजा विधि |
Anant Chaturdashi 2022 Significance, Date, Puja Vidhi and Story in Hindi
अनंत चतुर्दशी भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष चतुर्दशी को कहा जाता है. अनंत चतुर्दशी सनातन धर्म और जैनियों का प्रमुख पर्व त्यौहार है. इस दिन गणेश भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत रखते हैं. हिंदू धर्म की लोक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के अनंत का पूजन किया जाता है. अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्म के लोगों के लिए सबसे पावन तिथि होती है. यह पर्युषण पर्व का अंतिम दिन होता है. हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का विसर्जन भी इसी दिन होता है. हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय भगवान गणेश होते हैं. किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने के पूर्व विघ्नहर्ता भगवान गणेश को पूजा जाता है. आसान शब्दों में कहा जाए तो किसी भी कार्य के शुरुआत और अंत की जिम्मेदारी भगवान गणेश को दी जाती है. गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की प्रतिमा को श्रद्धानुसार अपने घर में स्थापित किया जाता है जिसके बाद शुभ मुहूर्त के अनुसार 9 या 10 दिन बाद गणपति बप्पा का खूब धूम धाम से विसर्जन किया जाता है. आजादी के पूर्व तक गणेश उत्सव का पर्व केवल महाराष्ट्र तक सीमित था, लेकिन बढ़ती लोकप्रियता के कारण आज संपूर्ण विश्व में गणेश उत्सव का पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है. मान्यता के साथ कि वे माता पार्वती के पास वापस लौट गए. इस दिन अनंत सूत्र बांधा जाता है। माना जाता है कि अनंत सूत्र बांधने से घर के सभी दुख और परेशानियां दूर होती हैं
अनंत चतुर्दशी कब हैं ? (Anant Chaturdashi 2022)
Table of Contents
हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक अनंत चतुर्दशी भादों मास के शुक्लपक्ष के चौदस को मनाई जाती है. इस साल अनंत चतुर्दशी 9 सितम्बर 2022 को शुक्रवार के दिन पड़ रही है.
तारीख (Date) | 9 सितम्बर 2022 |
वार (Day) | शुक्रवार |
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ | 8 सितंबर रात 9:02 से |
चतुर्दशी तिथि समाप्त | 9 सितंबर को शाम 6:07 बजे तक |
पूजा शुभ मुहूर्त | 9 सितंबर सुबह 5:55 से शाम 6.07 बजे तक |
अवधि | 12 घंटे 13 मिनट |
अनंत चतुर्दशी का महत्व (Anant Chaturdashi Significance)
अनंत चतुर्दशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. गणेश भक्त इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करते हैं. विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत व पूजन किये जाते हैं. लोक मान्यता है कि, अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से पारिवारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है. वहीं भगवान विष्णु साधकों की पीड़ा हर लेते हैं. इस दिन भगवान की पूजा के बाद अनंत सूत्र बांधा जाता है. यह सूत्र रेशम या सूत का होता है, इसे बांधते वक़्त 14 गांठे लगाई जाती हैं. सनातन संस्कृति की मान्यता के अनुसार भगवान ने 14 लोक बनाए हैं :-
सत्य, तप, जन, मह, स्वर्ग, भुवः, भू ,अतल, वितल, सुतल,तलातल, महातल,रसातल और पाताल. कहा जाता है कि अपने बनाये हर लोक की रक्षा करने के लिए भगवान ने 14 अवतार लिए थे.
इस दिन भगवान की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं तो पूरी होती ही हैं साथ ही साथ सच्चे मन से विष्णु जी का सहस्त्रनाम स्त्रोत करने से धन-धान्य,उन्नति,खुशहाली और संतान की प्राप्ति भी होती है. इसी दिन गणेश जी की मूरत को भी विसर्जित करते हैं और इसी के साथ पर्युषण पर्व का भी अंतिम दिन होता है, इसलिए इसे देश के हर कोने में बड़ी धूम धाम से मनाते हैं. यह दिन भक्ति ,एकता और सौहार्द्र का प्रतीक है.
पूजा विधि
- व्रत करने वाले उपासक को सुबह जल्दी उठना चाहिए, जिसके बाद स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए. मन्दिर में कलश स्थापित करना चाहिए.
- कलश के ऊपर अष्ट दलों वाला कमल रखें और कुषा का सूत्र चढ़ाएं या भगवान विष्णु की तस्वीर की पूजा भी कर सकते हैं साथ ही अनंत धागे को भी रखें.
- धागा सूत्र रेशम या सूत का हो सकताहै, इसे सिंदूरी लाल रंग, केसर और हल्दी में भिगो कर रखें.
- सूत्र में 14 गांठे लगा कर भगवान विष्णु को अर्पित करें और फिर भगवान का ध्यान करें और अनंत व्रत की कथा पढ़ें या सुनें.
- पूजन में रोली, चंदन, अगर, धूप, दीप और नैवेद्य का होना जरूरी है. इन चीजों को भगवान को समर्पित करते हुए ‘ॐ अनंताय नमः’ मंत्र का जाप करें.
- पूजन संपन्न करने के बाद अनंत सूत्र को अपने हाथों में बांध लें और उसके बाद प्रसाद ग्रहण करें.
- व्रत के दिन दान- पुण्य करना चाहिए. उपासक इस दिन आटे की रोटियां या पूड़ी बनाते हैं, जिसका आधा भाग वे किसी ब्राह्मण को दान करते हैं और आधा हिस्सा वे स्वयं ग्रहण करते हैं.
व्रत कथा (Vrat Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में सुमंत नाम के एक ऋषि थे. उनकी पत्नी का नाम था दीक्षा. कुछ समय के बाद दीक्षा ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया. उस बच्ची का नाम सुशीला रखा गया. लेकिन सुशीला की मां दीक्षा का किसी कारणवश देहांत हो गया और बच्ची के पालन पोषण के लिए ऋषि ने तय किया कि वह दूसरी शादी करेंगे और बच्ची के पालन पोषण लिए दूसरी मां लेकर आएंगे.
ऋषि की दूसरी शादी हो गयी. ऋषि की जिस महिला से शादी हुई वह स्वभाव से कर्कश थी. सुशीला बड़ी हो गई और उसके पिता ने कौण्डिनय नामक ऋषि के साथ उसका विवाह सम्पन्न कर दिया. ससुराल में भी सुशीला को सुख नहीं था. कौण्डिन्य के घर में बहुत गरीबी थी.
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एक दिन सुशीला और उसके पति ने देखा कि लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं. पूजन के बाद वे अपने हाथ पर अनंत रक्षासूूूत्र बांध रहे हैं. सुशीला ने यह देखकर व्रत के महत्व और पूजन के बारे में पूछा. इसके बाद सुशीला ने भी व्रत करना शुरू
कर दिया.सुशीला के दिन फिरने लगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा. लेकिन सुशीला के पति कौण्डिन्य को लगा कि सब कुछ सिर्फ उनकी मेहनत का फल है
एक बार अनंत चतुर्दशी के दिन जब सुशीला अनंत पूजा कर घर लौटी तक उसके हाथ में रक्षा सूत्र बंधा देखकर उसके पति ने इस बारे में पूछा. सुशीला ने विस्तारपूर्वक व्रत के बारे में बताया और कहा कि हमारे जीवन में जो कुछ भी सुधार हो रहा है, वह अनंत चतुर्दशी व्रत का ही नतीजा है. कौण्डिन्य ऋषि ने कहा कि यह सब सिर्फ मेरी मेहनत से हुआ है और तुम इसका पूरा श्रेय भगवान विष्णु को देना चाहती हो. ऐसा कहकर उसने सुशीला के हाथ से धागा उतरवा दिया. भगवान इससे नाराज हो गए और कौणिन्य पुन: दरिद्र हो गया.
फिर एक दिन एक ऋषि ने कौण्डिन्य को बताया कि उसने कितनी बड़ी गलती की है. कौण्डिन्य ने उनसे उपाय
पूछा. ऋषि ने बताया कि लगातार 14 वर्षों तक यह व्रत करने के बाद ही भगवान विष्णु तुम पर प्रसन्न होंगे. कौण्डिन्य ने ऋषिवर के बताए मार्ग का अनुसरण किया और सुशीला व पूरे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर गई.
ऐसा कहा जाता है कि वनवास जाने के बाद पांडवों ने भी अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi 2022) का व्रत रखा था, जिसके बाद उनके सभी कष्ट मिट गए थे और उन्हें कौरवों पर विजय प्राप्त हुई थी. यह व्रत करने के बाद सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी सुधर गए थे.
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