Newsपड़ताल

‘काला पानी’ की सज़ा क्या है, इस सज़ा से क्यों कांपते थे क़ैदी?

‘काला पानी’ की सज़ा क्या है, इस सज़ा से क्यों कांपते थे क़ैदी? ये कब और क्यों शुरू की गई थी?  What is the punishment of ‘black water’, why did the prisoners tremble with this punishment? When and why was it launched?

भारत में आज भी जब किसी अपराधी को कठोर से कठोरतम सज़ा देने की बात निकलती है तो आमतौर पर ‘कला पानी की सजा’ का ज़िक्र शुरू हो जाता है. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ‘काला पानी की सजा’ बेहद ख़तरनाक मानी जाती थी. आज भी ये शब्द भारत में सबसे बड़ी और डरावनी सजा के तौर पर मुहावरा बना हुआ है. इस सजा में आख़िर ऐसा क्या था, जो आज तक इसकी चर्चा की जाती है, क्यों इसे सजा की सबसे  क्रूरतम श्रेणी में गिना जाता है?

what-is-the-punishment-of-kala-pani-why-did-the-prisoners-tremble-with-this-punishment
Kalapani History in Hindi

चलिए विस्तार से जानते हैं…  

दरअसल भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर बनी ‘सेल्युलर जेल’ आज भी अपने में ‘कला पानी की सजा’ की कई दर्दनाक किस्सों को जेल की चाहरदीवारी में समेटे हुए है. वर्तमान में भले ही जेल को ‘राष्ट्रीय स्मारक’ में तब्दील कर दिया गया हो, लेकिन बटुकेश्वर दत्त, डॉ. दीवान सिंह, योगेंद्र शुक्ल, भाई परमानंद, सोहन सिंह, वामन राव जोशी और नंद गोपाल जैसे आजादी के दीवानें भी इसी जेल में क़ैद रहे थे. इन सैनानियों की कहानी आज भी ये जेल हमें सुनाती है. सेल्युलर जेल भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय भी है.

बात हिंदुस्तान के ‘स्वाधीनता आंदोलन’ के दौर की है, जब हमारा भारत देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था. इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर कहर परपा रही थी. आज़ादी का बिगुल फूंकने वाले हज़ारों सेनानियों को फांसी दे दी गई, इतना ही नहीं आजाद भारत का सपना देखने वाले क्रांतिकारी वीरों को तोपों के मुंह पर बांधकर उन्हें उड़ा दिया गया. उन्हें तड़पा तड़पकर मौत के घाट उतारा जाता था. इस दौरान अंग्रेज़ों के पास ‘सेल्युलर जेल’ नाम का एक विनाशकारी का अस्त्र हुआ करता था.

what-is-the-punishment-of-kala-pani-why-did-the-prisoners-tremble-with-this-punishment
Kalapani History in Hindi

अंडमान के पोर्ट ब्लेयर सिटी में स्थित ‘सेल्यूलर जेल’ का निर्माण 1896 में शुरू हुआ और 1906 यह पूरी तरह से बनकर तैयार हुई. इसका मुख्य किला लाल ईंटों से बना है. ये ईंटें बर्मा (म्यांमार) से जेल बनवाने के लिए विशेष तौर से लाई गई थी. इस भवन की 7 शाखाएं थीं और इसके बीचों-बीच एक टावर बनाया गया था. इसी टावर पर चढ़कर अंग्रेज सैनिक क़ैदियों पर नजर रखते थे. टावर के ऊपर एक बहुत बड़ा घंटा लगा था, जो किसी भी तरह का संभावित ख़तरा होने पर बजाया जाता था.

इसे ‘सेल्युलर जेल’ क्यों कहा जाता था? 

अब आपके जेहन में भी सवाल उठ रहा होग कि इसे जेल को ‘सेल्युलर’ क्यों कहा जाता है, क्योंकि यहां पर एक क़ैदी को दूसरे से बिलकुल अलग सेल में रखा जाता था. हर कैंदी को दूसरे से दूर रखा जाता था,  यही अकेलापन क़ैदी के लिए बेहद ही भयावह अनुभव होता था. इस जेल में सैकड़ों भारतीयों फांसी की सजा दी गई और कितने मारे गए इसका कोई  अधिकारिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. लेकिन आज भी जीवित स्वतंत्रता सेनानियो के जेहन में कालापानी शब्द भयावह जगह के रूप में बसा है.

what-is-the-punishment-of-kala-pani-why-did-the-prisoners-tremble-with-this-punishment
Kalapani History in Hindi

क्यों कहा जाता था इसे ‘काला पानी की सजा’? 

7 शाखाओं वाली इस 3 मंज़िला जेल में सोने के लिए कमरे मौजूद नहीं है, बल्कि 698 कोठरियाें का निर्माण किया गया था. प्रत्येक कोठरी 15×8 फीट की थी, जिसमें 3 मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान हुआ करती थी. इस दौरान एक कोठरी का क़ैदी दूसरी कोठरी के क़ैदी से किसी प्रकार का कोई संपर्क नहीं रख पाता था. इसकी चाहरदीवारी इतनी छोटी थी कि इसे आसानी से पार किया जा सकता है, लेकिन ये जगह चारों ओर से गहरे समुद्र से घिरी हुई है. सैकड़ों योजन दूर तक फ़ैले समंदर के अलावा यहां कुछ भी नजर नहीं आता है. जो कैदियों के लिए बेहद ही बुरा अनुभव था.

what-is-the-punishment-of-kala-pani-why-did-the-prisoners-tremble-with-this-punishment
Kalapani History in Hindi

इतिहास के पन्ने को उलट कर देखें तो 19वीं शताब्दी में जब स्वतंत्रता आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा, तब यहां क़ैदियों की संख्या अधिक हो गई. बढ़ती संख्या को देखते हुए जेल में बंद ‘स्वतंत्रता संग्राम’ सेनानियों को बेड़ियों से जकड़कर रखा जाता था. कोल्हू से तेल पेरने का काम सेनानियों से करवाया जाता था. इस दौरान हर क़ैदी को 30 पाउंड नारियल और सरसों को पेरना होता था. यदि कैदी ऐसा करने में सक्षम नहीं हो पाता था तो, उन्हें बुरी तरह से पीटा जाता था और बेडियों से जकड़ दिया जाता था.

ब्रिटिश हुकूमत से बगावत करने वालों को सजा देने के लिए ये द्वीप एक बेहद ही अनुकूल जगह मानी जाती थी. जेलर डेविड बेरी और मेजर जेम्स पैटीसन वॉकर की सुरक्षा में सबसे पहले 200 क्रांतिकारियों को यहां लाया गया. ऐसा सिर्फ समाज के लोगों से उनके संवाद को खत्म करने के लिए किया गया था. यहां पहुंचने वाले कैदियों से जेल निर्माण, भवन निर्माण, बंदरगाह निर्माण आदि के काम भी लिए जाते थे.

किसे दी जाती थी ‘काला पानी की सजा’? 

‘काला पानी’ की सजा अधिकांश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भुगतते थे. इनमें प्रमुख रूप से बटुकेश्वर दत्त, विनायक दामोदर सावरकर, डॉ. दीवन सिंह, मौलाना फ़ज़ल-ए-हक़ खैराबादी, योगेंद्र शुक्ला, मौलाना अहमदउल्ला, मौवली अब्दुल रहीम सादिकपुरी, बाबूराव सावरकर, भाई परमानंद, शदन चंद्र चटर्जी, सोहन सिंह, वमन राव जोशी, नंद गोपाल आदि थे.

इतिहास के पन्नों में पढ़ने को मिलता है कि सन् 1930 में भगत सिंह के सहयोगी रहे महावीर सिंह ने अत्याचार के ख़िलाफ़ इसी जेल में भूख हड़ताल का आगाज किया था. जेल में मौजूद ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें जबरन दूध पिलाया. दूध जैसे ही पेट के अंदर गया उनकी अकाल मृत्यु हो गई. इसके बाद उनके शव में एक पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक दिया गया था. अंग्रेज़ों के इस अमानवीय अत्याचार के बाद जेल के अन्य क़ैदियों ने भी भूख हड़ताल शुरू कर दी. कैदियों की परेशानियों को देखते हुए महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसमें हस्तक्षेप किया था.

सन् 1942 में जापानियों ने अंडमान पर अंग्रेज़ी हुकूमत को हराकर  ‘सेल्युलर जेल’ पर कब्ज़ा किया. हमले में जापानियों ने 7 में से 2 शाखाओं को तबाह कर दिया था. बंधक बनाए गए अंग्रेज़ क़ैदियों को सेल्युलर जेल में बंद कर दिया गया था. तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी जेल का दौरा किया था. ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ ख़त्म होने के बाद 1945 में अंग्रेज़ों ने फिर से यहां अपना कब्ज़ा जमा लिया.

what-is-the-punishment-of-kala-pani-why-did-the-prisoners-tremble-with-this-punishment
Kalapani History in Hindi

आपकों जानकर हैरानी होग कि ‘सेल्युलर जेल’ में केवल भारत के ही नहीं, बल्कि बर्मा तक के विद्रोहियों को भी क़ैद में रखा गया था. एक बार यहां 238 कैदियों ने भागने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया. पकड़े एक क़ैदी ने तो आत्महत्या कर ली और बाकी पकड़े गए. इसके बाद जेल अधीक्षक वाकर ने 87 लोगों को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया था.

आज़ादी के बाद ‘सेल्युलर जेल’ की 2 अन्य शाखाओं को भी बंद कर दिया गया. शेष बची 3 शाखाएं और मुख्य टावर को 1969 में ‘राष्ट्रीय स्मारक’ के रुप में घोषित कर आम लोगों के लिए खोल दिया गया. साल 1963 में यहां गोविन्द वल्लभ पंत अस्पताल खोला गया. वर्तमान में ये 500 बिस्तरों वाला अस्पताल है और 40 डॉक्टर यहां के निवासियों की सेवा कर रहे हैं.

इसे भी पढ़े :

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

Related Articles

DMCA.com Protection Status
पान का इतिहास | History of Paan महा शिवरात्रि शायरी स्टेटस | Maha Shivratri Shayari सवाल जवाब शायरी- पढ़िए सीकर की पायल ने जीता बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड सफल लोगों की अच्छी आदतें, जानें आलस क्यों आता हैं, जानिएं इसका कारण आम खाने के जबरदस्त फायदे Best Aansoo Shayari – पढ़िए शायरी