सावन में सुहागन महिलायें क्यों पहनती हैं हरी चूड़ियां ? जानें कारण । Benefits Of Wearing Green Bangles
Benefits Of Wearing Green Bangles : सावन माह को प्रकृति से जोड़कर देखा जाता है. इन दिनों चहु ओर हरियाली छाई जाती है, दूसरे शब्दों में कहा जाएं तो प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़ दुल्हन बन जाती है. सावन माह में प्रतिदिन हम भगवान शिव को जल अर्पित कर खुद को प्रकृति से जोड़ते हैं.
कहते हैं सावन में हरा रंग पहनकर न सिर्फ हम प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं बल्कि यह रंग हमारे भाग्य को भी प्रभावित करता है. ख़ास तौर पर विवाहिता महिलाओं को हरी हरी चूड़ियां पहने देखा जाता है. कई औरतें सिर्फ हरी चूड़ियां ही नहीं बल्कि हरे रंग की साड़ी या फिर हरे रंग का अन्य वस्त्र पहने भी दिखाई देंगी. चलिए पोस्ट के जरिए जानते हैं कि, सावन में सुहागन महिलायें क्यों पहनती हैं हरी चूड़ियां ? जानें कारण । Benefits Of Wearing Green Bangles
शादी से जुड़ा है हरा रंग :
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हिंदू धर्म में हरा रंग शादी से जुड़ा हुआ है जिस तरह लाल रंग एक सुहागन औरत के जीवन में खुशियां और सौभाग्य लाता है ठीक उसी प्रकार हरा रंग भी सुहागनों के लिए बहुत खास महत्व रखता है. इसी कारण सावन माह में औरतें हरी चूड़ियां और वस्त्र पहनती हैं ताकि उन्हें शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त हो जिससे उनके पति की आयु लंबी हो और उनके शादीशुदा जीवन में खुशहाली आए.
हरा रंग सौभाग्य के लिए :
पुराणों के अनुसार हम प्रकृति की पूजा कई रूपों में करते हैं. हिंदू धार्मिक महत्वता वाले तुलसी, पीपल, केले आदि के पेड़ पूजनीय माने जाते हैं. सूर्य देवता जिन्हें हम एक दिव्य शक्ति मानते हैं, उन्हें हम जल अर्पित करते हैं उनसे प्रार्थना करते हैं इससे भी हम प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं. पौराणिक मान्यता है कि जो भी यह रंग धारण करता है उससे प्रकृति का आशीर्वाद मिलता है.
करियर के लिए हरा रंग :
बुध ग्रह किसी भी व्यक्ति के करियर और व्यवसाय से जुड़ा होता है। इस ग्रह को नवग्रहों का राजकुमार भी कहा जाता है. बुध को हरा रंग बहुत ही प्रिय है इसलिए इस रंग को धारण करने से मनुष्य को उसके कार्यक्षेत्र में सफलता हासिल होती है. भगवान शिव एक योगी थे और उन्हें प्रकृति की सुंदरता के बीच ध्यान में बैठना बहुत ही पसंद था. हरा रंग पहनने से भी महादेव प्रसन्न होते हैं इसलिए महिलाएं सावन के महीने में सिर्फ एक नहीं बल्कि कई कारणों से हरा रंग पहनती हैं.
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सावन और प्रकृति की पूजा :
सावन महीने की कहानी उस समय से शुरू हुई जब देवी लक्ष्मी रुष्ट होकर चली गयीं थीं और समस्त संसार में हाहाकार मच गया था. इस समस्या का समाधान करने के लिए सभी देवताओं ने असुरों के साथ मिलकर क्षीर सागर में मंथन किया था जिससे माता वापस आयी थीं.
लेकिन इससे पहले कि देवी लक्ष्मी बाहर निकलतीं उस समुद्र में से एक विष से भरा हुआ मटका निकला. यह बहुत ही घातक हलाहल नामक विष था. तब सभी को तबाही से बचाने के लिए शिव जी ने इसे अपने कंठ में ही रोक लिया था तभी से भोलेनाथ को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है.
तब इस विष के ताप को कम करने के लिए महादेव को गंगाजल अर्पित किया गया था इसलिए गंगा नदी को अमृत की नदी कहा जाता है. यह एक अन्य कारण है कि हिंदू धर्म में प्रकृति की पूजा को विशेष महत्त्व दिया जाता है. जब यह घटना घटित हुई तब सावन का महीना था इसलिए यह महीना शिव जी को अर्पित किया गया है.
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