पूर्णिमा व्रत कथा | Purnima Vrat Katha
Purnima Vrat Katha : एकादशी की भांति ही पूरे वर्ष में 12 पूर्णिमा व्रत आते है। एक माह में एक बार पूर्णिमा और एक बार अमावस्या आती है। यह दोनों तिथि 15 दिन के अंतराल के बीच आती है। पूर्णिमा व्रत का हिंदू धर्म में बेहद ही खास महत्व होता है। यदि आप कोई भी शुभ कार्य करने की सोच रहे हैं, तो बिना किसी मुहूर्त के पूर्णिमा तिथि के दिन उस कार्य को कर सकते है। पूर्णिमा के दिन आसमान में पूरा चांद दिखाई देता है। पोस्ट के जरिए आज हम आपके लिए पूर्णिमा व्रत कथा | Purnima Vrat Katha जिसे पढ़कर और सुनकर आप अपने व्रत को पूर्ण कर सकते हैं।
पूर्णिमा व्रत कथा | Purnima Vrat Katha
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द्वापर युग में यशोदा माँ ने श्री कृष्ण से कहा हे कृष्ण तुम सरे संसार के उत्पनकर्ता,पालनहारी और संहारकर्ता हो आज मुझे कोई ऐसा व्रत बताओ जिसको करने से मृत्यलोक में भी स्त्रियों को विधवा होने का भय न रहे तथा यह व्रत सभी मनुष्यो की मनोकामना पूर्ण करने वाला हो श्री कृष्ण कहने लगे हे माता तुमने अति सुन्दर प्रश्न किया है मैं तुम्हे ऐसे एक व्रत के बारे में विस्तार से बताता हूँ|
सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को बत्तीस पूर्णिमा व्रत करना चाहिए इस व्रत को करने से स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है यह व्रत अत्यंत सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति भक्ति को बढ़ाने वाला है
यशोदा जी कहने लगी हे कृष्ण प्रथम इस व्रत को मृत्युलोक में किसने किया था इसके विषय में विस्तार से मुझे बताओ श्री कृष्ण कहने लगे इस भूमण्डल पर अनेक प्रकार के रत्नो से परिपूर्ण कातिका नाम की एक नगरी थी वहाँ
चन्द्रहास नामक राजा राज्य करता था
उसी नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण था और उसकी स्त्री अति सुशीला रूपवती थी दोनों ही उस नगरी में बड़े प्रेम से रहते थे घर में धन धन्य आदि की कोई कमी नहीं थी परन्तु उनको बहुत बड़ा दुःख था की उनकी कोई संतान नहीं है एक समय एक बड़ा योगी उस नगरी में आया वह योगी उस ब्राह्मण के घर को छोड़कर अन्य सभी घरो से भिक्षा लेकर भोजन किया करता था वह रूपवती से कभी भिक्षा नहीं लेता था एक दिन वह योगी रूपवती से भिक्षा न लेकर किसी अन्य घर से भिक्षा लेकर गंगा किनारे जाकर भीक्षण को प्रेमपूर्वक ग्रहण करने लगा की धनेश्वर ने योगी का यह सब कार्य देख लिया अपनी भिक्षा के अनादर से दुखी होकर धनेश्वर योगी से बोला हे महात्मन आप सब घरो से भिक्षा लेते है परन्तु आप मेरे घर की भिक्षा कभी नहीं लेते इसका क्या कारण है|
योगी ने कहा निसंतान के घर की भीख पतितो के अन्न के तुल्य होती है और जो पतितो का अन्न खता है वह भी पतित हो जाता है क्यूंकि तुम निसंतान हो इसलिए पतित हो जाने के भय से मैं तुम्हारे घर की भिक्षा नहीं लेता धनेश्वर योगी की यह बात सुनकर बहुत दुखी हुआ और हाथ जोड़कर योगी के पैरो में गिर गया और कहने लगा हे महाराज यदि ऐसा है तो आप पुत्र प्राप्ति का उपाय बताइये आप सर्वज्ञानी है मुझपर कृपा कीजिये
हे भगवन मेरे घर में धन की कोई कमी नहीं है परन्तु मैं पुत्र न होने के कारण अत्यंत दुखी हो आप मेरे इस दुःख का हरण करे आप सामर्थ्यवान है यह सुनकर योगी कहने लगे हे ब्राह्मण तुम चंडी की आराधना करो घर आकर उसने अपनी पत्नी से सब वेदांत कहा और स्वयं तप करने के लिए वन में चला गया वन में जाकर उसने चंडी की उपासना की और उपवास किये चंडी ने सोल्वे दिन उसको स्वपन में दर्शन दिया और कहा हे धनेश्वर जा तेरे घर पुत्र होगा परन्तु वह सोलह वर्ष की आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा यदि तुम दोनों पति पत्नी बत्तीस पूरनमाशियो का व्रत विधि पूर्वक करोगे तो वह दीर्घायु हो जायेगा जितनी तुम्हारी सामर्थ्य हो आटे के दीये बनाकर शिवजी भगवान का पूजन करना परन्तु पूरनमाशी के व्रत बत्तीस होने चाहिए
प्रातकाल होने पर इस स्थान के समीप तुम्हे आम का वृक्ष दिखाई देगा उसपर चढ़ कर तुम एक फल तोड़ कर शीघ्र ही अपने घर चले जाना और अपनी पत्नी से सब वेदांत कहना ऋतू स्नान के पश्चात वह स्वच्छ होकर श्री शंकर भगवान का ध्यान करके उस फल को खा लेगी शंकर भगवान की कृपा से उसको गर्भ हो जायेगा जब वह भ्रामण प्रातकाल उठा तोह उसने एक स्थान के पास ही आम का वृक्ष देखा जिस पर एक अत्यंत सुन्दर आम का फल लगा हुआ था उस ब्राह्मण ने उस आम के वृक्ष पर चढ़कर फल को तोड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वृक्ष पर कई बार प्रयत्न करने पर भी वह चढ़ नहीं पाया
तब उस ब्राह्मण को बहुत चिंता हुई तब विघ्न विनाशन श्री गणेश भगवान की वंदना करने लगा हे दयानिधे अपने भक्तो के विघ्नो का नाश करके उनके मंगल कार्य को करने वाले दुष्टो का नाश करने वाले रिद्धि सीधी प्रदान करने वाले आप मुझपर कृपा करके इतना बल दे की मैं अपने मनोरथ को पूरा कर सकू इस प्रकार गणेश जी की प्राथना करने पर उनकी कृपा से धनेश्वर वृक्ष पर चढ़ गया और उसने सुन्दर आम के फल को तोड़ लिया और घनेश्वर ने सोचा जो वरदान से फल मिला था वो यही है और कोई फल तो दिखाई नहीं दे रहा उस घनेश्वर ब्राह्मण ने जल्दी से घर जाकर अपनी पत्नी को वह फल दे दिया और उसकी पत्नी ने अपने पति के कहे अनुसार उस फल को खा लिया और वह गर्भवती हो गयी देवी जी की असीम कृपा से उसे एक अत्यंत सुन्दर पुत्र उत्पन हुआ|
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जिसका नाम उन्होंने देवीदास रखा माता पिता के हर्ष और शोक के साथ वह बालक शुकल पक्ष के चन्द्रमा के भांति वह बालक अपने पिता के घर में बड़ा होने लगा भवानी की कृपा से वह बालक बहुत हिसुन्दर सुशील विद्या पढ़ने में बहुत ही निपुण हो गया
दुर्गा जी की आज्ञा अनुसार उसकी मिटाने बत्तीस पूरनमाशी का व्रत रखना आरम्भ कर दिया जिस से उसका पुत्र बड़ी आयु वाला हो जाये सोल्वा वर्ष लगते ही देवीदास के माता पिता को बड़ी चिंता हो गयी की कही उनके पुत्र की इस वर्ष मृत्यु न हो जाये इसलिए उन्होंने अपने मन में विचार किया की यदि यह दुर्घटना उनके सामने हो गयी तो वो कैसे सेहन करेंगे इसलिए उन्होंने देवीदास के मां को बुलाया और कहा हमारी एक बहुत बड़ी इच्छा है की देवीदास एक वर्ष तक काशी में जाकर विद्या अध्यन करे और उसको अकेला भी नहीं छोड़ना चाहिए इसलिए साथ में तुम चले जाओ और एक वर्ष के पश्चात् इसको वापस ले आना सब प्रभंद करके उसके माता पिता ने काशी जाने के लिए देवीदास को एक घोड़े पर बिठा कर उसके मामा के साथ भेज दिया
परन्तु यह बात उसके मामा या किसी और से नहीं बताई धनेश्वर तथा उसकी पत्नी ने अपने पुत्र की मंगल कामना तथा दीर्घायु के लिए भगवती दुर्गा की आराधना और पूरनमाशियो का व्रत करना आरम्भ कर दिया इस प्रकार बराबर बत्तीस पूरनमाशी के व्रत को उन्होंने पूरा किया कुछ समय पश्चात् एक दिन वह मामा और भांजा मार्ग में रात बिताने के लिए किसी गांव में ठहरे हुए थे
उस दिन उस गांव में ब्राह्मण की अत्यंत सुन्दर सुशीला और गुणवती कन्या का विवाह होने वाला था जिस धर्मशाला के अंदर वर और उसकी बारात ठहरी हुई थी उसी धर्मशाला में देवीदास और उसके मामा भी ठहरे हुए थे संयोगवश कन्या को तेल आदि चढ़ाकर मंडप आदि का कार्य किया गया तो लगन के समय वर को धनुर्वात हो गया
इसलिए वर के पिता ने अपने कटुम्बियों से विमर्श करके निश्चय किया की यह देवीदास मेरे पुत्र जैसा ही सुन्दर है मैं इसके साथ ही लगन करवादु और बाद में विवाह के अन्य कार्य मेरे लड़के के साथ हो जायेंगे ऐसा सोचकर देवीदास के मामा से जाकर बोला की तुम थोड़ी देर के लिए अपना भांजा हमें दे दो जिस से विवाह के लगन का सब कार्य सुचारु रूप से हो सके तब देवीदास का मामा कहने लगा जो कुछ भी वधु पक्ष से कन्यादान के समय वर को मिले वह सब हमें दे दिया जाये तो मेरा भांजा इस बारात का दूल्हा बन जायेगा
यह बात वर के पिता ने स्वीकार कर लेने पर उसने अपना भांजा वर बनने के लिए भेज दिया और उसके साथ सब विवाह कार्य विधिपूर्वक सम्पन हो गए पत्नी के साथ वह भोजन करने लगा तो अपने मन में सोचने लगा की न जाने यह किसकी स्त्री होगी वह एकांत में यही सोच सोचकर अपने करम श्वास छोड़ने लगा और उसकी आँखों में आंसू भी आ गए तब लड़की ने पूछा क्या बात है आप इतने उदासीन व दुखी क्यों हो रहे है तब उसने सब बातें जोवर के पिता और उसके मामा में हुई थी लड़कीको बता दी तब कन्या कहने लगी यह ब्रह्म विवाह के विपरीत कैसे हो सकता है देव ब्राह्मण और अग्नि के सामने मैंने आपको ही अपना पति माना है इसलिए आप ही मेरे पति है मैं आपकी ही पत्नी रहूंगी अन्य किसीकी कदापि नहीं देवीदास ने कहा ऐसा मत करिये क्यूंकि मेरी आयु बहुत काम है
मेरे पश्चात आपकी क्या गति होगी इन बातो को अछि तरह विचार कर लो परन्तु वह दृढ़ विचारो वाली लड़की थी वह बोली जो आपकी गति होगी वही मेरी गति होगी हे स्वामी आप उठिये और भोजन कीजिये आप निश्चय ही भूखे होंगे तब देवीदास और उसकी पत्नी ने भोजन किया तथा शेष रात्रि वह सोते रहे प्रातकाल देवीदास ने अपनी पत्नी को तीन नागो से जड़ी हुई एक अंगूठी दी एक रुमाल दिया और बोला हे प्रिय इसे लो और संकेत समझ कर स्थिरचित हो जाओ मेरा मरण और जीवन जानने के लिए एक पुष्पवाटिका बना लो
उसमे सुगंदी वाली एक नवमल्लिका लगाओ और उसको प्रतिदिन जल से सींचा करो और आनंद के साथ खेलो कूदो और उत्सव मनाओ जिस समय और जिस दिन मेरा प्रणात होगा यह फूल सुख जायेंगे और जब यह फिर से हरे हो जाये तो समझ लेना मैं जीवित हूँ यह बात निश्चय करके समझ लेना
इसमें कोई भी संशय नहीं है इतना कहकर देवीदास वहाँ से चला गया प्रातकाल होते ही वहाँ पर गाजे बजे बजने लगे और जिस समय विवाह कार्य समाप्त करने के लिए वर तथा सब बाराती मंडप में आये तो कन्या ने वर को भली प्रकार से देखकर अपने पिता से कहा यह मेरा पति नहीं है
मेरा पति वही है जिसके साथ रात्रि में मेरा पानी ग्रहण हुआ था इसके साथ मेरा विवाह नहीं हुआ यदि यह वही पुरुष है तो बताये की मैंने इसको क्या दिया वधु पक्ष और कन्या पक्ष कन्यादान के समय जो आभूषण आदि दीये गए थे वो दिखाए तथा रात में क्या गुप्त बातें मैंने इनसे कही वह सब सुनाये पिता ने उसके कहे अनुसार वर को बुलाया कन्या की यह सब बाते सुनकर वह कहने लगे मैं कुछ भी नहीं जानता
इसके पश्चात लज्जित होकर वह अपना सा मुँह लेकर चला गया और सारी बारात भी अपमानित होकर वहाँ से लौट गयी भगवान श्रीकृष्ण बोले हे माता इस प्रकार देवीदास काशी विद्यार्थान के लिए चला गया जब कुछ समय बीत गया तो काल से प्रेरित होकर एक सर्प रात्रि के समय उसको डसने के लिए वहाँ पर आया
उस विषधर के प्रभाव से उसके शयन का स्थान चारो और से विष की जवाला से विषैला हो गया परन्तु व्रत के प्रभाव से उसको काट नहीं पाया क्यूंकि पहले ही उसकी माता ने बत्तीस पूरनमासी का व्रत रखा था इसके बाद माध्ययन के समय स्वयं काल वहाँ आया और उसके शरीर से प्राणो को निकालने का प्रयत्न करने लगा
जिस से वह मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर गया उसी समय माता पारवती के साथ भगवान शंकर वहाँ आ गए उसको मूर्छित दशा में देखकर माता पारवती जी ने शंकर जी से प्राथना की हे महाराज इस बालक की माता ने पहले ही बत्तीस पूर्णिमा काव्रत पूरा किया था जिसके प्रभाव से आप इसको प्राणदान दे भवानी के कहने पर भक्त वत्सल भगवान शिव जी ने उसको प्राण दान दे दिया इस व्रत के प्रभाव से काल को भी पीछे हटना पड़ा और देवी दास स्वस्थ होकर बैठ गया
उधर उसकी पत्नी उसके काल की परीक्षा किया करती थी जब उसने देखा उस पुष्प वाटिका में पुष्प कुछ भी नहीं रहे तो उसको अत्यंत आशचर्य हुआ लेकिन जब वह जैसे ही हरी भरी हो गयी तो वह जान गयी की अब उसका पति ठीक ठाक है वह जीवित हो गया है यह देखकर वह बहुत प्रसन हो उठी अपने पिता से कहने लगी पिता जी मेरे पति जीवित है आप उनको ढूंढिए जब सोल्वा वर्ष व्यतीत हो गया
तो देवीदास भी अपने मामा के साथ काशी से चल दिया इधर उसके ससुर उसको ढूंढने के लिए अपने घर से जाने वाले ही थे की वह दोनों मामा भांजा वहाँ पर आ गए उनका आया हुआ देख कर उनके ससुर को बहुत प्रसन्ता हुई और वह उन्हें अपने घर ले गए उस समय नगर के निवासी भी वहाँ इकठे हो गए और सबने निश्चय किया की अवश्य ही इसी बालक के साथ कन्या का विवाह हुआ था
उस बालक को कन्या ने जब देखा तो पहचान लिया की यह तो वही है जो संकेत करके गया था तब उपरांत सब कहने लगे भला हुआ यह आ गया है और सब नगर वासियो ने आनंद मनाया कुछ दिन बाद देवीदास ने अपनी पत्नी और मामा के साथ अपने ससुर के घर से बहुत सारे उपहार लेकर अपने माता पिता की घर तरफ प्रस्थान किया जब वह अपने गांव के निकट पहुँच गए तो कही लोगो ने उसे देखकर उसके माता पिता को पहले ही खबर दे दी की तुम्हारा पुत्र देवीदास अपनी पत्नी और मामा के सहित आ रहा है
ऐसा समाचार सुनकर माता पिता को विश्वास नहीं हुआ परन्तु जब और लोगो ने भी आकर यही बात उन्हें बताई तो उनको बड़ा आशर्य हुआ लेकिन थोड़ी देर में देवीदास ने आकर अपने माता पिता के चरणों में अपना सर रख कर प्रणाम किया और उसकी पत्नी ने अपने सास ससुर के चरणों को स्पर्श किया तो माता पिता ने अपने पुत्र और पुत्र वधु को ह्रदय से लगा लिया और दोनों की आँखों में प्रेम अश्रु बह चले अपने पुत्र और पुत्र वधु के आने की ख़ुशी में धनेश्वर ने बड़ा ही भरी उत्सव किया
और ब्राह्मणो को दान दक्षणा देकर प्रसन किया श्री कृष्ण भगवान कहने लगे इस प्रकार धनेश्वर बत्तीस पूरनमाशियो के व्रत के प्रभाव से पुत्रवान हो गया जो भी स्त्रियाँ बत्तीस पूरनमाशी के व्रत को करती है वे जनम जमांतर में वैध्वय का दुःख नहीं भोगती और सदैव सौभाग्यवती रहती है
पूर्णिमा व्रत के लाभ
- किसी भी उपासक द्वारा पूर्णिमा व्रत करने से भगवान श्री विष्णु प्रसन होते है।
- पूर्णिमा व्रत करने वाले उपासक को जल्द ही संतान प्राप्ति होती है और संतान को दीर्घायु प्राप्त होता है।
- पूरी श्रद्धा से पूर्णिमा का व्रत करने से गृह कलेश दूर होते है।
- पूर्णिमा व्रत करने से स्त्रियाँ सौभाग्यवती का वर प्राप्त होता है।
- इस व्रत को करने से मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर होता है।
- पूर्णिमा व्रत करने से मनुष्य की सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है।
- जो भी उपासक पूर्णिमा का व्रत रखता है उस पर भगवान विष्णु और चंद्रमा की विशेष कृपा सदैव बनी होती है।
- यह व्रत करने से आर्थिक परेशानी भी दूर होती है।
पूर्णिमा व्रत की विधि
- पूर्णिमा के दिन सुबह नहाकर स्वच्छ कपडे पहने।
- जिसके बाद घर के मंदिर को अच्छे से साफ कर कर गंगा जल छिड़काव करें।
- भगवान श्री विष्णु की मूर्ति पर हल्दी का तिलक लगाना चाहिए।
- भगवान श्री विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का पूजन आवश्यक तौर पर करना चाहिए।
- भगवान श्री विष्णु के समक्ष घी का दीपक जलाए पुष्प चढ़ाए।
- रात को चंद्र उदय होने के बाद चंद्रमा पर जल अर्पित करें।
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FAQ’S
पूर्णिमा व्रत में किसकी पूजा करनी चाहिए?
पूर्णिमा व्रत में विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए।
पूर्णिमा के व्रत कितने करने चाहिए?
पूर्णिमा के बत्तीस व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।
पूर्णिमा के दिन क्या नहीं खाना चाहिए?
पूर्णिमा के दिन प्याज़ और लहसुन नहीं खाना चाहिए।