महाराणा प्रताप का जीवन परिचय | Maharana Pratap Biography, Age, Height, Weight, Family (Family, Father, Son), Sword, Death In Hindi
राजस्थान ने हमें सैकड़ों वीर योद्धा दिए है. हम आज इस पोस्ट के जरिए बात करने वाले है उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश के Maharana Pratap की. राजपूत जाति के लोग इन्हे वीरता और दृढ़ता की एक मिसाल के रुप में देखते है. प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता को ठुकरा दिया. मुगलों के शासन से आज़ादी पाने के लिए उन्होंने जीवन के अंत तक संघर्ष की लड़ाई की. महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया. चलिए जानते है महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-
बिंदु (Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | प्रताप सिंह |
प्रसिद्ध नाम | महाराणा प्रताप |
जन्म (Date of Birth) | 9 मई 1540 |
आयु | 56 वर्ष |
लम्बाई लगभग(Height) | 7 फीट 5 इंच |
वजन (Weight) | 80 किग्रा |
जन्म स्थान (Birth Place) | कुम्भलगढ़ दुर्ग, राजस्थान |
पिता का नाम (Father Name) | उदय सिंह |
माता का नाम (Mother Name) | जैवंता बाई |
पत्नी का नाम (Wife Name) | महारानी अजबदे के अलावा 9 रानियाँ |
पेशा (Occupation ) | मेवाड़ के राजा |
बच्चे (Children) | कुल 17 बच्चे, जिनमे अमर सिंह, भगवान दास शामिल है. |
मृत्यु (Death) | 19 जनवरी 1597 |
मृत्यु स्थान (Death Place) | चावंड, राजस्थान |
भाई-बहन (Siblings) | 3 भाई (विक्रम सिंह, शक्ति सिंह, जगमाल सिंह), 2 बहने सौतेली (चाँद कँवर, मन कँवर) |
महाराणा प्रताप का बचपन | Maharana Pratap Childhood
Table of Contents
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुम्भलगढ़ दुर्ग, राजस्थान में हुआ. इनके पिताजी का नाम महाराणा उदयसिंह तथा माता का नाम रानी जयवंता बाई था. Maharana Pratap बचपन से ही कर्तृत्ववान और प्रतिभाशाली थे. Maharana Pratap का बचपन भील समुदाय के साथ बीता. भील अपने पुत्र को कीका कहकर पुकारते है इसलिए महाराणा को कीका नाम से भी जाना जाता है. महाराणा प्रताप जी भीलों के साथ ही युद्ध के कौशल और रणनीतियों को सीखते थे. लेखक विजय नाहर की पुस्तक हिन्दुवा सूर्य के अनुसार, जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ उस समय उनके पिताजी उदय सिंह युद्ध और असुरक्षा से घिरे हुए थे. हिन्दुवा सूर्य के अनुसार उस समय कुंभलगढ़ सुरक्षित नहीं था. उस समय जोधपुर का राजा मालदेव था और वह उत्तर भारत में सबसे शक्ति सम्पन्न था.
महाराणा प्रताप जीवन सफ़र | Maharana Pratap Life Story (Biography)
राणा उदयसिंह की दूसरी रानी धीरबाई जो रानी भटियाणी के नाम से विख्यात है वह अपने पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी. Maharana Pratap जब मेवाड़ के उत्तराधिकारी बन गए उस समय कुंवर जगमाल ने इनके विरोध में मुग़लों से मित्रता कर ली. महाराणा प्रताप का प्रथम राज्याभिषेक में 28 फरवरी, 1572 में गोगुंदा में हुआ था, लेकिन विधि विधान स्वरूप Maharana Pratap का द्वितीय राज्याभिषेक 1572 ई. में ही कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ.
आपकों जानकर हैरानी होगी कि, कई पड़ोसी राज्यों ने अकबर के साथ मित्रता कर ली थी. महाराणा प्रताप का राज्य मेवाड़ उस समय भी स्वतंत्र था. मुग़ल सम्राट मेवाड़ राज्य अपने अधीन करना चाहता था. लेकिन Maharana Pratap ने मुगलों की अधीनता को मरते दम तक स्वीकार नहीं किया, जिसके फलस्वरूप हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ. प्रताप की सेना के मुकाबले अकबर की सेना के पास अपार बल था, फिर भी Maharana Pratap ने मुकाबला करने का निर्णय नहीं बदला. उन्हें किसी भी हालत में स्वतंत्रता चाहिए थी.
मालूम हो कि, हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के बीच लड़ा गया था. युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था. Maharana Pratap की सहायता के लिए आस-पास की पहाड़ियों से भील आदिवासी भी युद्ध में शामिल हुए थे. युद्ध का स्थल राजस्थान के गोगुंदा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी दर्रा था. महाराणा प्रताप की ओर से करीब 3,000 घुड़सवार और 400 भील धनुर्धारी मैदान में उतरे. मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था. लेकिन दुर्भाग्य से युद्ध के अंत में मुगल सेना का विजय हुआ. मुगल सेना के प्रकोप से बचने के लिए झलासिंह ने Maharana Pratap की युद्ध से भाग निकलने में मदद की थी.
महाराणा प्रताप उपलब्धियाँ | Maharana Pratap Achievements
पू. 1579 से 1585 के कार्यकाल में Maharana Pratap एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे. इसके कारण मुग़लो का दबाव मेवाड़ में काम होता जा रहा था. इस समय का लाभ उठाने के लिए महाराणा प्रताप ने अपने प्रत्यत्नों को और तेज़ कर दिया. बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका. अकबर साम्राज्य का अंत 1585 ई. में हुआ. ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप कुल 360 किलो वजन ढोते थे, जिसमें 80 किलो का भाला, 208 किलो वजन की दो तलवारें और उनका कवच लगभग 72 किलो भारी था.
महाराणा प्रताप की मृत्यु | Maharana Pratap Death
अकबर साम्राज्य के अंत के ग्यारह वर्ष के बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई. महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत ही दुख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक था. Maharana Pratap का नाम भारत के इतिहास में सदा अमर रहेगा.
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