News

महाभारत काल में राजा जन्मेजय ने किया था सर्प यज्ञ

  • प्राचीन समय में हुआ था चंबल किनारे नाग जाति का दहन
  • महाभारत काल में राजा जन्मेजय ने किया था सर्प यज्ञ, तब से शहर का नाम पड़ा नागदा
  • King Janmejaya performed snake yajna during the Mahabharata period.

नागदा। नागदा शहर को बसाने का श्रेय नाग को जाता है। नागदा शहर में चंबल नदी किनारे पर प्राचीन समय (महाभारत काल)में लगभग 4 हजार साल पहले एक बहुत बड़ा यज्ञ (नागदाह) हुआ था। उस यज्ञ में नाग जाति का दहन किया गया था।

इस टेकरी पर आज भी नागों के अवशेष मिलते है। यह बात वैज्ञानिक व प्रशासन भी स्वीकार कर चुका है। उस यज्ञ से ही इस शहर व आसपास के गांव का नामकरण हुआ था। उक्त टेकरी की जांच के लिए कई बार उज्जैन, भोपाल, इंदौर, गोरखपुर (उप्र)से पुरातत्व विभाग की टीम आकर जांच कर चुकी है।

नागदा टेकरी – फाइल फाेटो

स्थानीय प्रशासन ने भी यह स्वीकार किया है। हालांकि में राजस्व विभाग द्वारा कि गई टेकरी की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है। लेकिन यह टेकरी अब देखरेख व जनप्रतिनिधियों की लापरवाही से अस्तिव खो रही है। टेकरी के आसपास अतिक्रमण व नदी की बाढ़ से धीरे-धीरे आकार छोटा होता जा रहा है। इस टेकरी को धरोहर व पर्यटक स्थल बनाए जाने के लिए चंद्रवंशी बागरी समाज व पाड़ल्या में स्थित नवकली नाग महाराज वीर तेजाजी महाराज मंदिर समिति के लोग लड़ाई लड़ रहे है।

क्या है नागदा टेकरी का इतिहास

नाग पंचमी के दिन जहां पूरे देश में नाग की पूजा कि जाती है। वहीं द्वापर युग में ऋषि मतंग द्वारा यथोचित सम्मान न दिए जाने से नाराज भारतवर्ष के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट राजा परिक्षित ने मदांघ होकर प्रभु भक्ति कर रहे महर्षि शमीक के गले में मृत साप डाल दिया था।

इस कृत्य से नाराज होकर ऋषि पुत्र ने राजा को श्राप दिया था कि सात दिन में उक्त सांप जीवित होकर राजा को डंसेगा और उसकी मौत हो जाएगी। ऋषि का यह श्राप सही हुआ और सात दिन बार राजा परिक्षित की सर्पदंश से मौत हो गई। अपने पिता की मृत्यु से अक्रोशित होकर सम्राट जन्मजेय ने पिता की मृत्यु का बदला लेने का संकल्प लिया और नागवंश के सर्वनाश के लिए ब्राहम्णों द्वारा चंबल नदी के किनारे पर स्थ्तिा टेंकरी पर नागदाह यज्ञ यानी सर्प यज्ञ कराया।

प्रतिकात्मक तस्वीर

जिससे असंख्य सांपों की आहूति स्वयं ही गिरने लगी। यज्ञ के दौरान नागों की नौ में से आठ कलियां नष्ट हो गई थी और नौवीं कली को भगवान विष्णु व शिव ने बचा लिया था। उसके बाद पाड़ल्या कला में जमीन से यह कलियां प्रकट हुई। तभी से कलियां आज भी मंदिर में स्थापित है। यह पर प्रतिदिन पूजा-पाठ भी होती है। नाग पंचमी व तेजा दशमी पर्व पर मेला भी लगता है। तब से इस शहर का नाम नागदा पड़ा। नागों की आहुति से यहां पर 150 फीट ऊंचा राख का टीला बन गया था।

आसपास गांव भी है यज्ञ के गवाह

यज्ञ के दौरान राजा जन्मेजय ने समस्त ब्रहाम्णों, साधु-संत, राजा व महाराजाओं को आमंत्रित किया था। यज्ञ के दौरान हाथियों की पालकी भी निकली थी। यह पालकी नागदा से 8 किमी दूर से निकली थी। इस कारण उस गांव का नाम हताई पालकी पड़ा।

यह गांव उज्जैन रोड पर स्थित है। यज्ञ के समय राजा ने साधु, संत व महंत के विश्राम के लिए जो स्थान बनाया था वह आज मेहतवास के नाम से जाना जाता है। जो शहर के बाहर की और चंबल नदी किनारे पर बिरलाग्राम क्षेत्र में है। यज्ञ को देखेने के लिए नदी के उस पार भक्तों के बैठने की व्यवस्था कि गई थी। उस स्थान का नाम आज गांव भगतपुरी है।

प्रशासन ने भी स्वीकार किया है

वर्तमान समय में टेकरी अपना अस्तिव खो रही है। टेकरी के आसपास बड़ी संख्या में ईट-भट्टे संचालित होते है। जिनके द्वारा मिट्टी के लिए खनन किया जा रहा है। नदी में प्रति बाढ़ आने से भी टेकरी का कटाव हो रहा है। वर्तमान में यह टेकरी अब महज 70 फीट की रह गई है।

जबकि यज्ञ से यह 150 फीट का टीला बन गया था। वर्ष 1955 से 1957 के मध्य तीन बार पुरात्व विभाग के अधिकारी एनआर बनर्जी के नेत्तृव में टेकरी की खुदाई में नाग के अवशेष तलााशे थे। वर्ष 1995 में भी डॉ वाकरणकर ने नेत्तृव में एक दल भोपाल से आया था।

नपा ने 8 अगस्त 2012 में तात्कालीन नपा शोभा यादव ने टेकरी को पर्यटन स्थल घोषित करने का प्रस्ताव पारित किया था। जिसके बाद 30 अगस्त 2012 को उज्जैन से वास्तुविद राजेश उस्मानी ने नागदा टेकरी पर पहुंचकर जांच की थी। पुरात्व विभाग भोपाल के आदेश 15 मई 2017 को इंदौर से विभाग के सहायक संग्रहालय अधिकारी धनश्याम बाधम व राहुल सांखल ने नागदा पहुंचे थे और नाग के अवशेष के लेकर गए थे।

27 अगस्त 2018 को भी उप्र कि गोरखपुर यूनिवर्सिटी से एक छात्रों का दल महेंद्र गुप्त के नेत्तृव में आया था। दल ने टेकरी का निरीक्षण अवशेष ले गया था। टेकरी के अस्तिव को बचाने व उसे पर्यटन स्थल बनाने वर्तमान में एतिहासिक धरोहर बचाव आंदोलन समिति संघर्ष कर रही है।

इसे भी पढ़े :

 

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

DMCA.com Protection Status
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2024 Amarnath Yatra Start and End Date 2024 बाइक शायरी – Bike Shayari Tribal leader Mohan Majhi to be Odisha’s first BJP CM iOS 18 makes iPhone more personal, capable, and intelligent than ever चुनाव पर सुविचार | Election Quotes in Hindi स्टार्टअप पर सुविचार | Startup Quotes in Hindi पान का इतिहास | History of Paan महा शिवरात्रि शायरी स्टेटस | Maha Shivratri Shayari सवाल जवाब शायरी- पढ़िए