Hal Shashthi 2022 date: हलषष्ठी व्रत प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है. इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े बलराम की जयंती भी मनाई जाती है. हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी तिथि को राजा जनक की पुत्री भगवान श्रीराम की पत्नी माता सीता का जन्म भी हुआ था. मूसल बलराम जी का मुख्य शस्त्र है. इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है.इस पर्व का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है. हल छठ, ऊब छठ पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहते हैं. साल 2022 में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 17 अगस्त दिन बुधवार को किया जाएगा. आइये पोस्ट के जरिए जानें हलषष्ठी व्रत 2022 में कब हैं – Hal Shashthi 2022 Mein Kab Hai या बलराम जयंती पूजा के लिए शुभ समय, पूजा विधि और महत्व.
हलषष्ठी व्रत 2022 में कब हैं – Hal Shashthi 2022 Mein Kab Hai
हिंदू कैलेंडर के अनुसार 2022 में हलषष्ठी व्रत 17 अगस्त 2022, दिन बुधवार षष्ठी को किया जाएगा. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीघार्यु और कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की कामना के उद्देश्य से पूरा दिन खड़े रहकर व्रत करती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने वाली उपासक पूरा दिन निर्जला व्रत रखती है. वहीं रात्रि को चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करती है. मध्य प्रदेश के मालवा प्रांत में व्रत करने वाली कन्याओं को उनके मामा द्वारा जल ग्रहण करवाकर व्रत तुड़वाया जाता है.
हलषष्ठी व्रत 2022 का शुभ मुहूर्त – Hal Shashthi 2022 ka Shubh Muhurat
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 17 अगस्त 2022 दिन बुधवार को शाम 6.50 बजे लगेगी. यह तिथि अगले दिन यानी 18 अगस्त को रात्रि 8.55 बजे तक रहेगी. हल षष्ठी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं व कन्याओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है. इस व्रत में हल से जोते हुए बागों या खेतों के फल और अन्न खाना वर्जित माना गया है. इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है.
हलषष्ठी व्रत पूजन विधि
- हलषष्ठी व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता.
- इस व्रत में वही चीजें खाई जाती हैं जो तालाब या मैदान में पैदा होती हैं. जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल खाकर आदि.
- इस व्रत में गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
- हलषष्ठी व्रत में भैंस का दूध, दही और घी का प्रयोग किया जाता है.
- इस व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवाल पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं.
- जिसके बाद गणेश और माता गौरा की पूजा करते हैं.
- महिलाएं घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं और हल षष्ठी की कथा सुनती हैं. उसके बाद प्रणाम करके पूजा समाप्त करती हैं.
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