रक्षाबंधन 2025: जानें सही तारीख, शुभ मुहूर्त, भद्रा काल और संपूर्ण पूजा विधि (A to Z गाइड)

रक्षाबंधन 2025: जानें सही तारीख, शुभ मुहूर्त, भद्रा काल और संपूर्ण पूजा विधि (A to Z गाइड)
रक्षाबंधन 2025 (Raksha Bandhan 2025), भारतीय संस्कृति का एक ऐसा महापर्व है जो केवल एक धागे का त्योहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के अटूट, पवित्र और अनमोल रिश्ते का जीवंत उत्सव है। यह पर्व हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को पूरे भारतवर्ष में और दुनिया भर में बसे भारतीयों द्वारा बड़े ही स्नेह, श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा का सूत्र, यानी ‘राखी’ बांधकर उनकी दीर्घायु, स्वास्थ्य और सफलता की कामना करती हैं। इसके बदले में भाई अपनी बहन को जीवन भर हर सुख-दुःख में साथ देने और उसकी रक्षा करने का वचन देता है। यह सिर्फ एक वचन नहीं, बल्कि एक भाई का अपनी बहन के प्रति प्रेम और कर्तव्य का संकल्प होता है।
हालांकि, इस पवित्र त्योहार की शुभता और मुहूर्त पर अक्सर ‘भद्रा’ नामक एक अशुभ ज्योतिषीय अवधि का साया पड़ जाता है। हिंदू पंचांग और शास्त्रों में भद्रा काल को किसी भी मांगलिक कार्य के लिए अत्यंत अशुभ माना गया है, और यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों से रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने के सही समय को लेकर लोगों में काफी भ्रम और चिंता की स्थिति बनी रही है।
यही सवाल इस वर्ष, रक्षाबंधन 2025 के लिए भी लोगों के मन में प्रमुखता से उठ रहा है। क्या इस बार भी भद्रा का विघ्न होगा? राखी बांधने का सबसे शुभ और सटीक समय क्या होगा? पूजा की सही और संपूर्ण विधि क्या है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानना अत्यंत आवश्यक है ताकि यह त्योहार अपनी पूरी पारंपरिक पवित्रता और शुभता के साथ मनाया जा सके।
आइए, इस विस्तृत लेख में हम रक्षाबंधन 2025 से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी, जैसे सही तारीख, शुभ मुहूर्त, भद्रा काल का विस्तृत विश्लेषण, संपूर्ण पूजा विधि, ऐतिहासिक महत्व, पौराणिक कथाएं और आधुनिक युग में इस पर्व के बदलते स्वरूप को गहराई से समझते हैं।
रक्षाबंधन 2025 की सही तारीख और समय (Raksha Bandhan 2025 Date and Time)
सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर – साल 2025 में रक्षाबंधन का पवित्र पर्व 09 अगस्त, 2025, दिन शनिवार को मनाया जाएगा।
हिंदू पंचांग की गणना के अनुसार, श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि का आरंभ और समापन का समय इस प्रकार रहेगा:
- पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: 08 अगस्त, 2025 (शुक्रवार) को दोपहर 02 बजकर 12 मिनट से।
- पूर्णिमा तिथि का समापन: 09 अगस्त, 2025 (शनिवार) को दोपहर 01 बजकर 24 मिनट तक।
हिंदू धर्म में अधिकांश त्योहार सूर्योदय के समय विद्यमान तिथि, यानी उदया तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं। चूँकि 09 अगस्त को सूर्योदय के समय पूर्णिमा तिथि रहेगी, इसलिए रक्षाबंधन 2025 का पर्व इसी दिन मनाना शास्त्रसम्मत, शुभ और फलदायी होगा।
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क्या रक्षाबंधन 2025 पर भद्रा का साया है? (Bhadra Kaal on Rakhi 2025)
लोगों के मन में सबसे बड़ा संशय और सवाल भद्रा को लेकर है। इसका सीधा और स्पष्ट उत्तर है – हाँ, भद्रा लग रही है, लेकिन 2025 में यह रक्षाबंधन के उत्सव में कोई बाधा नहीं डालेगी। यह इस साल का सबसे शुभ संयोग है।
पंचांग के अनुसार, भद्रा काल का समय इस प्रकार है:
- भद्रा का प्रारंभ: 08 अगस्त, 2025 (शुक्रवार) को दोपहर 02 बजकर 12 मिनट से (जैसे ही पूर्णिमा तिथि शुरू होगी)।
- भद्रा का समापन: 09 अगस्त, 2025 (शनिवार) को सुबह 01 बजकर 52 मिनट पर।
यह एक बहुत बड़ी खुशखबरी है! इसका अर्थ है कि जिस दिन रक्षाबंधन 2025 का मुख्य पर्व मनाया जाएगा, यानी 09 अगस्त को, उस दिन भद्रा का अशुभ साया सूर्योदय होने से कई घंटे पहले ही समाप्त हो चुका होगा। बहनें पूरे दिन बिना किसी ज्योतिषीय चिंता या मुहूर्त के भ्रम के, अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांध सकेंगी।
भद्रा कौन है और इसमें राखी क्यों नहीं बांधनी चाहिए?
शास्त्रों में भद्रा को सूर्य देव की पुत्री और शनि देव की बहन माना गया है। उनका स्वभाव अत्यंत उग्र, क्रोधी और विघ्नकारी माना जाता है। ब्रह्मा जी ने उन्हें कालगणना के एक प्रमुख अंग के रूप में स्थान दिया है, लेकिन उनके अशुभ स्वभाव के कारण भद्रा काल में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन और रक्षाबंधन करना वर्जित माना गया है।
इसके पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा भी है। कहा जाता है कि लंकापति रावण की बहन शूर्पणखा ने अपने भाई को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी। इसी के परिणामस्वरूप, एक वर्ष के भीतर ही रावण के पूरे कुल का भगवान श्री राम के हाथों विनाश हो गया। इसी मान्यता के कारण, बहनें भद्रा काल में अपने भाई को राखी बांधने से बचती हैं, ताकि उनके भाई के जीवन पर कोई भी अमंगलकारी प्रभाव न पड़े।
तुलना तालिका: रक्षाबंधन 2025 के महत्वपूर्ण मुहूर्त (समय दिल्ली के अनुसार)
मुहूर्त (Muhurat) | दिनांक (Date) | समय (Time) | अवधि (Duration) | महत्व (Significance) |
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त | 09 अगस्त 2025 | सुबह 05:47 से दोपहर 01:24 तक | 7 घंटे 37 मिनट | राखी बांधने के लिए सर्वश्रेष्ठ और भद्रा रहित समय। |
ब्रह्म मुहूर्त | 09 अगस्त 2025 | सुबह 04:22 से सुबह 05:04 तक | 42 मिनट | दिन की शुरुआत और पूजा-पाठ के लिए अत्यंत पवित्र समय। |
विजय मुहूर्त | 09 अगस्त 2025 | दोपहर 02:40 से दोपहर 03:33 तक | 53 मिनट | किसी भी कार्य में विजय प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है। |
गोधूलि मुहूर्त | 09 अगस्त 2025 | शाम 07:06 से शाम 07:27 तक | 21 मिनट | दिन और रात के मिलन का शुभ समय, पूजा के लिए उत्तम। |
निशिता मुहूर्त | 09 अगस्त 2025 | रात 12:05 से रात 12:48 तक | 43 मिनट | मध्यरात्रि का समय, तांत्रिक और विशेष साधनाओं के लिए। |
राहुकाल (अशुभ समय) | 09 अगस्त 2025 | सुबह 09:07 से सुबह 10:47 तक | 1 घंटा 40 मिनट | इस अवधि में राखी बांधने से बचना चाहिए। |
रक्षाबंधन 2025: राखी बांधने का सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त
09 अगस्त, 2025 (शनिवार) को बहनें अपने भाइयों को सुबह से लेकर दोपहर तक राखी बांध सकती हैं।
- सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त: सुबह 05 बजकर 47 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 24 मिनट तक।
- कुल अवधि: 7 घंटे 37 मिनट।
यह समय राखी बांधने के लिए अत्यंत शुभ और शास्त्रसम्मत है क्योंकि इस पूरी अवधि में पूर्णिमा तिथि विद्यमान है और भद्रा का कोई दोष नहीं है।
राहुकाल से करें विशेष परहेज
ज्योतिष में राहुकाल को किसी भी शुभ कार्य के लिए अत्यंत अशुभ माना जाता है। इस अवधि में किए गए कार्यों में बाधा आने की आशंका रहती है। रक्षाबंधन 2025 के दिन, 09 अगस्त को राहुकाल का समय सुबह 09:07 बजे से 10:47 बजे तक रहेगा। बहनों को यह सलाह दी जाती है कि वे इस 1 घंटे 40 मिनट की अवधि को छोड़कर ही अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधें, ताकि यह पवित्र त्योहार पूर्ण रूप से फलदायी और मंगलकारी रहे।
रक्षाबंधन की संपूर्ण और विस्तृत पूजा विधि (Raksha Bandhan Puja Vidhi)
रक्षाबंधन केवल एक धागा बांधने की रस्म नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण पूजा विधि है जिसे श्रद्धा और विधि-विधान से करने पर इसका आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
HowTo: रक्षाबंधन की पूजा विधि चरण-दर-चरण
चरण 1: पर्व की तैयारी (Preparation for the Festival)
- घर की सफाई: रक्षाबंधन के एक दिन पहले ही पूरे घर की अच्छी तरह से सफाई कर लें। मुख्य द्वार पर आम के पत्तों का तोरण बांधें।
- आत्म-शुद्धि: पर्व के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ, सुंदर वस्त्र धारण करें। पूरे दिन सात्विक आचरण का पालन करें।
- पूजा स्थल की शुद्धि: घर के मंदिर को साफ करके गंगाजल का छिड़काव करें और उसे फूलों से सजाएं।
चरण 2: पूजा की थाली तैयार करना (Preparing the Puja Thali)
यह इस पूजा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक चांदी, पीतल या तांबे की थाली लें। यदि यह उपलब्ध न हो तो कोई भी साफ थाली ले सकते हैं। इस थाली में निम्नलिखित नौ वस्तुएं श्रद्धापूर्वक सजाएं, जिनका अपना विशेष महत्व है:

- राखी: प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक रक्षासूत्र।
- कुमकुम (रोली): मंगल और सौभाग्य का प्रतीक।
- अक्षत: अखंडता और पूर्णता का प्रतीक (बिना टूटे चावल के दाने)।
- घी का दीपक: अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक।
- चंदन: शीतलता और पवित्रता का प्रतीक।
- मिठाई: रिश्तों में मिठास घोलने का प्रतीक।
- नारियल: इसे श्रीफल भी कहते हैं, यह भाई के प्रति बहन की शुभकामनाओं का प्रतीक है।
- कलश: पूजा की थाली में एक छोटा सा जल से भरा कलश रखना भी शुभ माना जाता है।
- फूल: देवी-देवताओं को अर्पित करने और थाली को सजाने के लिए।
चरण 3: इष्ट देव की पूजा (Worshipping the Deities)
राखी बांधने से पहले, तैयार की गई थाली को भगवान के समक्ष रखें। अपने इष्ट देव, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। दीपक जलाकर आरती करें और घर में सुख-शांति की कामना करें। सबसे पहली राखी भगवान श्री कृष्ण या अपने इष्ट देव को अर्पित करें।

चरण 4: भाई को बैठाना (Seating the Brother)
भाई को एक साफ चौकी या आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठाएं। भाई के सिर पर एक साफ रुमाल या कोई नया कपड़ा रखें।

चरण 5: तिलक और रक्षासूत्र बंधन (Applying Tilak and Tying the Rakhi)
- बहन सबसे पहले भाई के माथे पर चंदन और फिर कुमकुम का तिलक लगाए। तिलक के ऊपर अक्षत लगाएं।
- इसके बाद, दीपक जलाकर भाई की आरती उतारें और मन ही मन उसकी लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना करें।
- अब, भाई की दाहिनी कलाई पर प्रेम और श्रद्धा के साथ राखी बांधें। राखी बांधते समय इस पौराणिक मंत्र का जाप अवश्य करें:
“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल।।”
(अर्थ: जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली असुरों के राजा बलि को बांधा गया था, उसी पवित्र सूत्र से मैं तुम्हें बांधती हूँ। हे रक्षा के धागे! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना और मेरे भाई की सदैव रक्षा करना।)
चरण 6: मिठाई और आशीर्वाद (Offering Sweets and Seeking Blessings)
राखी बांधने के बाद बहन अपने भाई का मुंह मीठा कराए। इसके बाद भाई अपनी बहन को श्रद्धा और सामर्थ्य अनुसार कोई उपहार या भेंट दे और उसकी रक्षा का वचन दोहराए। भाई को अपनी बहन के पैर छूकर उसका आशीर्वाद लेना चाहिए, क्योंकि इस दिन बहन का स्थान बहुत ऊँचा माना जाता है।
रक्षाबंधन का गहरा ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व (Story Behind Raksha Bandhan)
रक्षाबंधन का पर्व आज से नहीं, बल्कि सतयुग से मनाया जा रहा है। इसके पीछे कई प्रेरणादायक कथाएं जुड़ी हैं जो इसके महत्व को और भी गहरा बनाती हैं।
- इंद्र और इंद्राणी की कथा (The Story of Indra and Sachi): यह सबसे प्राचीन कथा मानी जाती है। भविष्य पुराण के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच 12 वर्षों तक भयंकर युद्ध चला। देवता हार रहे थे और देवराज इंद्र का सिंहासन भी संकट में था। चिंतित होकर इंद्र अपनी पत्नी शची (इंद्राणी) के पास गए। तब इंद्राणी ने तपस्या करके एक शक्तिशाली रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन उसे इंद्र की दाहिनी कलाई पर बांध दिया। उस धागे की शक्ति से इंद्र ने असुरों पर विजय प्राप्त की। यह कथा दर्शाती है कि रक्षासूत्र सिर्फ बहन ही नहीं, पत्नी भी बांध सकती थी।
- श्री कृष्ण और द्रौपदी की कथा (The Story of Krishna and Draupadi): यह कथा भाई-बहन के रिश्ते का सबसे सुंदर उदाहरण है। महाभारत काल में, जब भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तो उनकी तर्जनी उंगली में चोट लग गई और रक्त बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने बिना एक पल सोचे अपनी कीमती साड़ी का पल्लू फाड़कर श्री कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। द्रौपदी के इस निस्वार्थ प्रेम और स्नेह से अभिभूत होकर श्री कृष्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह इस धागे के हर एक सूत का कर्ज चुकाएंगे और हर संकट में उनकी रक्षा करेंगे। बाद में, हस्तिनापुर की सभा में जब दुःशासन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा था, तब श्री कृष्ण ने उनकी लाज बचाकर अपना यह वचन निभाया।
- राजा बलि और देवी लक्ष्मी की कथा (The Story of King Bali and Goddess Lakshmi): श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया, तो राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और स्वयं उनके द्वारपाल बन गए। जब बहुत समय तक भगवान विष्णु वैकुंठ नहीं लौटे, तो देवी लक्ष्मी चिंतित हो गईं। उन्होंने एक साधारण स्त्री का वेश बनाया और श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि के पास पहुंचकर उन्हें राखी बांधी और अपना भाई बना लिया। जब बलि ने उपहार मांगने को कहा, तो देवी लक्ष्मी ने अपने पति भगवान विष्णु को वापस मांग लिया।
- रानी कर्णावती और हुमायूँ की ऐतिहासिक कथा (The Story of Rani Karnavati and Humayun): मध्यकालीन इतिहास में, जब चित्तौड़ पर गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने आक्रमण किया, तो विधवा रानी कर्णावती ने अपनी और अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल सम्राट हुमायूं को एक राखी भेजकर मदद की गुहार लगाई। हुमायूं उस समय एक दूसरे अभियान पर थे, लेकिन उन्होंने राखी का सम्मान करते हुए अपनी सेना चित्तौड़ की रक्षा के लिए भेज दी, हालांकि उनके पहुंचने से पहले रानी कर्णावती जौहर कर चुकी थीं। यह घटना राखी के धर्म और जाति से परे होने का एक सशक्त उदाहरण है।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में रक्षाबंधन के विविध रूप
रक्षाबंधन को पूरे भारत में अलग-अलग नामों और अनूठी परंपराओं के साथ मनाया जाता है, जो इसकी सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है:
- नारली पूर्णिमा (महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक): पश्चिमी घाट के तटीय क्षेत्रों में, विशेषकर मछुआरा समुदाय, इस दिन को ‘नारली पूर्णिमा‘ के रूप में मनाता है। वे समुद्र देवता वरुण की पूजा करते हैं और उन्हें नारियल अर्पित करते हैं, ताकि समुद्र देव उनकी रक्षा करें और मछली पकड़ने का मौसम अच्छा रहे।
- जनेऊ पूर्णिमा या श्रावणी (उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश): इन क्षेत्रों में इस दिन ब्राह्मण और अन्य द्विज समुदाय अपना पुराना यज्ञोपवीत (जनेऊ) बदलते हैं और नया धारण करते हैं। यह आत्म-शुद्धि और वेदों के अध्ययन के पुनः आरंभ का प्रतीक है।
- कजरी पूर्णिमा (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार): इन क्षेत्रों में यह त्योहार किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। महिलाएं इस दिन जौ के पौधे एक टोकरी में उगाती हैं और उसे लेकर पास के तालाब या नदी पर जाती हैं। यह अच्छी फसल और बेटे की लंबी आयु के लिए मनाया जाता है।
- लूम्बा राखी (राजस्थान): मारवाड़ी और राजस्थानी समुदायों में भाभी (भाई की पत्नी) को ‘लूम्बा राखी’ बांधने की एक बहुत ही सुंदर परंपरा है। माना जाता है कि पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है, इसलिए भाई की रक्षा का दायित्व भाभी का भी होता है। यह ननद-भाभी के रिश्ते को मजबूत करता है।
- अवनि अवित्तम (दक्षिण भारत): दक्षिण भारतीय राज्यों में ब्राह्मण समुदाय इस दिन को ‘अवनि अवित्तम’ के रूप में मनाता है। वे पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, अपने पापों के लिए प्रायश्चित करते हैं और नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)
प्रश्न 1: रक्षाबंधन 2025 किस दिन है और शुभ मुहूर्त क्या है?
उत्तर: रक्षाबंधन 2025 का त्योहार 09 अगस्त, 2025, शनिवार को मनाया जाएगा। राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त सुबह 05:47 बजे से दोपहर 01:24 बजे तक है।
प्रश्न 2: क्या 2025 में रक्षाबंधन पर भद्रा है?
उत्तर: हाँ, भद्रा 08 अगस्त की दोपहर से शुरू होकर 09 अगस्त की सुबह 01:52 बजे समाप्त हो जाएगी। इसलिए, 09 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने के लिए पूरा दिन भद्रा रहित और शुभ है।
प्रश्न 3: राखी किस हाथ में बांधनी चाहिए?
उत्तर: शास्त्रों के अनुसार, राखी हमेशा भाई की दाहिनी (Right) कलाई पर ही बांधनी चाहिए। दाहिने हाथ को शुभ कार्यों और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
प्रश्न 4: अगर सगा भाई न हो तो राखी किसे बांध सकते हैं?
उत्तर: राखी का त्योहार अब सगे भाई-बहनों तक सीमित नहीं है। आप अपने चचेरे-ममेरे भाइयों, दोस्तों जिन्हें आप भाई मानते हैं, या भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को भी राखी बांध सकती हैं। यह प्रेम और सुरक्षा के किसी भी रिश्ते का प्रतीक है।
प्रश्न 5: क्या उपहार में काले रंग की चीजें दे सकते हैं?
उत्तर: नहीं, रक्षाबंधन एक शुभ पर्व है। इस दिन उपहार में काले रंग की वस्तुएं, नुकीली चीजें (जैसे चाकू), या रुमाल देना अशुभ माना जाता है।
निष्कर्ष: एक धागा, अनगिनत भावनाएं
रक्षाबंधन 2025 का पर्व भाई-बहन के अनमोल रिश्ते को मनाने और उसे और भी गहरा करने का एक सुनहरा अवसर है। इस वर्ष का सबसे बड़ा और शुभ संयोग यह है कि यह पर्व भद्रा के किसी भी विघ्न से पूरी तरह मुक्त है, जिससे आप पूरे दिन इस त्योहार को अपने प्रियजनों के साथ मना सकते हैं।
यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि रिश्ते खून से नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और एक-दूसरे की परवाह करने से बनते हैं। सही मुहूर्त, विस्तृत पूजा विधि और इस त्योहार के गहरे ऐतिहासिक और आध्यात्मिक अर्थ को समझकर इसे मनाने से न केवल हमारी परंपरा का निर्वहन होता है, बल्कि हमारे रिश्तों में भी एक नई ऊर्जा और मिठास घुल जाती है।
इस रक्षाबंधन पर, अपने भाई-बहन के साथ समय बिताएं, पुरानी यादें ताजा करें, गिले-शिकवे दूर करें और इस पवित्र बंधन को जीवन भर के लिए और भी मजबूत बनाने का संकल्प लें।
हमारी ओर से आप सभी को रक्षाबंधन 2025 की हार्दिक और मंगलमय शुभकामनाएं!