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तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर का इतिहास | Tarkulha Devi Mandir History in Hindi

तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर का इतिहास | Tarkulha Devi Mandir History in Hindi

भारत मंदिरों का देश है. यहां हर एक प्रांत में कोई ना कोई विशेष महत्व वाला मंदिर है. मंदिरों की कहानियां भी बेहद ही रोचक होती है. जिसके कारण लोगों में इनकी आस्था बेहद अधिक बढ़ जाती है. पौराणिक और धार्मिक महत्वताओं के कारण लाेगों के बीच मंदिर एक आस्था का केंद्र बन जाते है. जिससे मंदिर बेहद ही प्रसिद्ध हो जाता है. आज पोस्ट के जरिए हम आपकों एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने आप में अनूठा है. मंदिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित है. जहां पर माता पूजन के बाद श्रद्धालुओं द्वारा मांस यानी मीट बनाकर खाया जाता है. चलिए पोस्ट के जरिए जानते हैं तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर का इतिहास | Tarkulha Devi Mandir History in Hindi. आशा करते हैं कि, आप पोस्ट को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ेंगे.

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Tarkulha Devi Mandir in Hindi

तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर का इतिहास | Tarkulha Devi Mandir History in Hindi

गोरखपुर में रामकोला धर्मसमधा दुर्गा मंदिर और बिहार के थावे दुर्गा मंदिर बहुत ही लोकप्रिय मंदिर है. उक्त दोनों मंदिरों के प्रति उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य के लोगों में अगाध श्रद्धा और विश्वास है. भारत के सभी प्रांतों में रहने वाले पूर्वांचल श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा और प्रेम भाव के साथ देवी एंव माता के दर्शन के लिए आते है. ऐसे में तरकुलहा देवी मंदिर की कहानी (Tarkulha Devi Mandir Kahani) और जानकारी आपकों दें रहे हैं.

गोरखपुर तरकुलहा देवी मंदिर

तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर अपने अनूठे चमत्कार के कारण और पौराणिक कहानी के चलते पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. मंदिर की कहानी आजादी के पूर्व से जुड़ी है. बताते चलें कि मंदिर अपनी दो विशेषताओं के लिए जाना जाता है.

  • डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह की वजह से भी तरकुलहा देवी मंदिर बहुत लोकप्रिय है.
  • दूसरा कारण है नदी के तट पर तरकुल के पेड़ बहुत अधिक संख्या में होना.

तरकुलहा देवी मंदिर की कहानी

Tarkulha Devi Mandir in Hindi: तरकुलहा देवी मंदिर के आसपास जंगल हुआ करता था. जहां पर डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह निवास करते थे. नदी के किनारे पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर बाबू बंधू देवी की उपासना करते थे. तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्ट देवी थी. जनश्रुतियों के बीच किवदंति है कि, बाबू बंधू गुरिल्ला लड़ाई में पारंगत थे. अंग्रेज जब इस जंगल से गुजरते थे. ऐसे में बाबू बंधू उन्हें मार देते थे. जिसके बाद अंग्रेजो के सिर को काटकर तरकुलहा देवी के चरण में समर्पित कर देते थे.

बाबू बंधू सिंह की गिरफ्तारी

अंग्रेजो के सिर को काटकर चदाने की वजह से अंग्रजो ने बाबू बंधू सिंह को गिरफ्तार कर लिया था. फिर अदालत में पेशी हुई जिसमें उनको फांसी की सजा सुनाया गया. 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर के अली नगर चौराहे पर सभी लोगों के सामने बाबू बंधू जी को को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था. लेकिन अंग्रेज कामयाब न हो सके.

गोरखपुर तरकुलहा मंदिर में देवी माँ का चमत्कार

बंधू देवी माँ के भक्त थे. देवी माँ के चमत्कार की वजह से 7 बार फांसी देने के बावजूद अंग्रेज कामयाब न हुए. इसके बाद बाबू बंधू सिंह देवी माँ से खुद मन्नत मांगी देवी. माँ मुझे जाने दें. इसके बाद देवी माँ ने प्राथना स्वीकार किया और 7वीं बार जो फांसी दी गई उसमे अंग्रेजो को सफलता हासिल हो सकी.

तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर | Tarkulha Devi Mandir in Hindi

  • गोरखपुर का तरकुलहा देवी मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जहां पर प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता है.
  • गोरखपुर के तरकुलहा देवी मन्दिर में बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेज के सिर से बलि की परम्परा चालू की थी.
  • आज भी यह परम्परा तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर में निभाया जा रहा है.
  • इंसान की सिर जगह बकरे के सिर की बलि चढ़ाई जाती है.
  • मांस को मिटटी के बर्तन में पकाया जाता है.
  • प्रसाद के रूप में मिटटी के बर्तन में दिया जाता हैं यह परम्परा वर्षो से से चली आ रही है.

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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