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पानी के लिए मौत के कुएं में उतरते हैं गांव भटेरा के ग्रामीण

उज्जैन. मध्य प्रदेश के उज्जैन तहसील के नागदा-खाचरौद विधानसभा में जलसंकट गहराने लगा है. हालात यह है कि बच्चों को करीब 100 फीट गहरे कुएं में उतरकर पानी भरना पड़ रहा है. मामले को लेकर ग्राम पंचायत सचिव को लाख बार शिकायत की गई, लेकिन नतीजा सिफर रहा.

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अपनी बारी का इंतजार इंतजार करती बालिका.

100 घरों की आबादी वाले गांव भटेरा के बच्चे रोज कुएं में उतरकर पीने का पानी भरते हैं. ऐसा नहीं है कि, जिम्मेदारों को इस बात की खबर नहीं है, खबर हैं, लेकिन परेशानी का हल करने की बजाएं जिम्मेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं. ग्रामीणों को इस बात की चिंता है कि, अभी मार्च चल रहा है, अप्रैल-मई जून की भीषण गर्मी में क्या हालत होंगे. जलसंकट से जूझ रहे गांव भटेरा में रिश्तेदार आने से डरते हैं. कारण उन्हें भी परिवार वालों के साथ पीने का पानी जुटाने में मदद करना पड़ती है. मान लीजिए कुएं से पानी भरने के दौरान यदि कोई मासूम इसमें गिर जाए तो इसकी जिम्मेदारी कौन ? लेगा. ग्रामीणों की पीड़ा के आगे सरकारी मशीनरी पूरी तरह विकलांग साबित हो रही है.

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पानी के लिए मौत के कुएं में उतरते हैं गांव भटेरा के ग्रामीण

क्या है परेशानी

रानी पिपलिया पंचायत के ग्राम भटेरा में जनवरी 2021 से ग्रामीणों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है. पीएचई की ओर गांव में एक हैंडपंप लगाया गया है, जो बीते तीन साल से धूल उगल रहा है. शिकायत के बाद पीएचई द्वारा हैंडपंप की मोटर निकाल ली गई. जिसे दुरुस्त करवाकर दोबारा पंप में लगाया जाना था, लेकिन आज दिनांक तक हैंडपंप शुरू नहीं हो सका. लिहाजा ग्रामीणों को कुएं में उतरकर पानी भरना पड़ता है. रानी पिपलिया के सरपंच बद्रीलाल सोलंकी है. शिकायत लेकर सोलंकी के पास पहुंचने पर ग्रामीणों को निराश होकर लौटना पड़ता है.

लाइन लगाकर करते हैं अपनी बारी का इंतजार

पानी भरने के लिए महिलाएं और बच्चे कुएं में लाइन लगाकर खड़े होते हैं. जिसके बाद एक ग्रामीण द्वारा 15 लीटर का डब्बा कुएं से भरकर निकाला जाता है, जिसके बाद एक-एक करके बच्चे पानी को कुएं से बाहर निकालते हैं. सबसे अधिक परेशानी महिलाओं को आती है. ऐसी महिलाएं जिन्होंने कुछ माह पूर्व ही बच्चों को जन्म दिया है. महिलाएं दुधमुंहे बच्चों को गोद में उठाकर पानी भरती है. पेयजल संकट का आर्थिक बोझ ग्रामीणों की जेब पर पड़ रहा है. कई परिवारों द्वारा 500 रुपए प्रतिसप्ताह देकर पेयजल टैंकर खरीदकर पानी की व्यवस्था करते हैं.

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कुएं से पानी निकालने के दौरान नीचे उतरे अपने परिजन को देखते बच्चे.

क्या बोले ग्रामीण

ग्राम के किसान कांग्रेस अध्यक्ष रतनलाल गुजराती, जीवनसिंह, रेहमान खान, वसूली पटेल ने बताया कि गांव में पेयजल संकट सर्द मौसम से ही गहराजाता है. सरपंच बद्रीलाल से मामले की शिकायत करने पर उनका कहना होता है, कि पीएम नरेंद्र मोदी के पास जाओ वह तुम्हारे लिए पेयजल की व्यवस्था करेंगे. दलित बाहुल्य गांव में पीने का पानी अन्य गांवों की सीमा से जुटाया जाता है. मवेशियों को पानी पीलाने के लिए खेतों पर मौजूद बोरिंग पर ले जाना पड़ता है. आसान भाषा में कहा जाएं तो पेयजल जुटाने की मशक्कत में ग्रामीणों का पूरा दिन निकल जाता है. विकट परेशानी तब खड़ी होती है, जब गांव में किसी के घर पर वैवाहिक समारोह हो, ऐसे में संबंधित परिवार को खाचरौद से टैंकर खरीदकर पीने के पानी की व्यवस्था करना पड़ती है.

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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