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स्काई बुरिअल (Sky Burial) – एक विभित्स अंतिम संस्कार क्रिया – लाश के छोटे छोटे टुकड़े कर खिला देते हैं गिद्धों को

स्काई बुरिअल (Sky Burial) – एक विभित्स अंतिम संस्कार क्रिया – लाश के छोटे छोटे टुकड़े कर खिला देते हैं गिद्धों को । sky burial weird cremation at tibet in hindi

Sky Burial : Weird Cremation at Tibet – हर धर्म में किसी भी इंसान कि मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है. सभी धर्मों में भिन्न-भिन्न परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है. साथ ही अंतिम संस्कार कि विधि अलग अलग होती है. लेकिन इस दुनिया में कुछ ऐसे समुदाय भी है जिनमें यह क्रिया बेहद ही विभित्स तरीके से अंजाम दी जाती है. ऐसा ही एक समुदाय है तिब्बत का बौद्ध समुदाय. यह समुदाय अपनी अंतिम संस्कार क्रिया जिसे कि वो झाटोर या आकश में दफनाना (स्काई बुरिअल) कहते है का पालन हज़ारो सालों से करते आ रहे हैं. चलिए जानें क्या हैं परंपरा……….

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स्काई बुरिअल साईट – येरपा वैली

क्या है झाटोर या स्काई बुरिअल ? (What is jhator or sky burial ?)

इस क्रिया में पहले शव को शमशान ले के जाते है. यह शमशान एक ऊंचाई वाले इलाके में होता है. वहां पर लामा ( बौद्ध भिक्षु) धूप बत्ती जलाकर उस शव का पूजन करते हैं, जिसके बाद एक शमशान कर्मचारी (जिसे कि  Rogyapas कहते है) उस शव को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है.

दूसरा कर्मचारी उन टुकड़ों को जौ के आटे के घोल में डूबोता है और फिर वो टुकड़े गिद्धों को खाने के लिए डाल दिए जाते है. जब गिद्ध सारा मांस खाके चले जाते है उसके बाद उन हड्डियों को इकठ्ठा करके उनका चुरा किया जाता है. जिसके बाद जौ के आटे और याक के मक्खन के घोल में डुबो के कौओ और बाज को खिला दिया जाता हैं.

पारसी समुदाय में भी शवों को पक्षियों को खिलाने कि परंपरा है पर वो लोग शव को जोरास्ट्रियन (Zoroastrian) में ले जाकर रख देते है. जहां कि पक्षी उन्हें अपना भोजन बना लेते है. जबकि तिब्बती बौद्ध इस क्रिया को विभित्स तरीके से अंजाम देते है. अंतिम संस्कार कि ऐसी ही परम्परा मंगोलिया के भी कुछ इलाको में देखने को मिलती है.

कब व क्यों शुरू हुई यह परम्परा (When and why start sky burial)

यह परम्परा तिब्बत में हज़ारों सालों से चली आ रही है. इस पम्परा के अस्तित्व में आने के दो प्रमुख कारण है एक तो  तिब्बत इतनी ऊंचाई पर स्तिथ है कि वहां पर पेड़ नहीं पाए जाते है. इसलिए वहां पर जलाने के लिए लकड़ियों का अभाव है. वहीं दूसरी ओर तिब्बत कि जमीन बहुत पथरीली है उसे 2 – 3 सेंटी मीटर भी नहीं खोदा जा सकता  इसलिए वह पर शवों को दफनाया भी नहीं जा सकता.

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शव को खाते हुए गिद्दों की फाइल फोटो

क्या है तर्क इस परम्परा के पिछे (Logic behind sky burial)

तिब्बत के अधिकतर लोग व्रजयान बौद्ध धर्म को मानते है जिसमे कि आत्मा के आवागमन कि बात कि जाती है. जिसके अनुसार शारीर से आत्मा के निकलने के बाद वो एक खाली बर्तन है उसे सहज के रखने कि कोई जरुरत नहीं है. इसलिए वे लोग इसे आकाश में दफ़न कर देते हैं. तिब्बत के लोग मानते है वो ये कि शवों को दफनाने के बाद उसको भी कीड़े मकोड़े ही खाते है.

अस्वीकारण : लेख का समर्थन न्यूजमग.इन द्वारा नहीं किया जाता. यह जानकारी जनश्रुतियों और इंटरनेट पर मौजूदा जानकारियों के आधार पर लिखी गई.

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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