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पुराने बुजुर्गों की कहावतें – Purane Bujurgo Ki Kahawat

लोकोक्ति, मुहावरे, कहावते (Kahawat in Hindi) कम शब्दों में अपनी बात कहने के लिए उपयोग किये जाते हैं।

पुराने बुजुर्गों की कहावतें – Purane Bujurgo Ki Kahawat

भारत में मुहावरे और कहावतों के जरिए घर के वयोवृद्धों द्वारा कम शब्दों में अपनी बात पूरी कर दी जाती है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसलिए कहते हैं, किसी भी कार्य को करने से पहले घर के बड़े बुजुर्गों की राय लेना बहुत ही आवश्यक है। यदि आप पुराने बुजुर्गों की कहावतें ढूँढ रहे हैं तो इस कार्य में हमारा यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आपको इस लेख बहुत सी ऐसी कहावते मिल जाएंगी जो आज भी प्रचलित है। साथ ही आपको इन प्रचलित कहावतो के अर्थ भी दिए गये हैं ताकि आप उनका अर्थ आसानी से समझ सके। लोकोक्ति, मुहावरे, कहावते (Kahawat in Hindi) कम शब्दों में अपनी बात कहने के लिए उपयोग किये जाते हैं इनके द्वारा कुछ ही शब्दों में वाक्य को खत्म किया जा सकता है जिसका अर्थ थोड़ा बड़ा हो सकता है।

पुराने बुजुर्गों की कहावतें – Kahawat in Hindi

दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम- समस्या आ जाने पर सब कुछ गवां देना।

सिर मुंडाते ही ओले पड़े– किसी भी काम को शुरू करते ही समस्या का आ जाना।

अंधा बांटे रेवड़ी, फिर फिर अपने देय– केवल स्वयं का और अपने परिचित का फायदा करवाना।

दूध का जला छाछ भी फूक फूक कर पीटा है – एक बार गलती हो जाने पर दूसरी पर बड़ी सावधानी बरतना।

दूर के ढोल सुहावने होते हैं— हमेशा दुसरे लोग ही खुश और सम्पन्न लगते हैं।

नाच न जाने आँगन टेढ़ा – काम न कर पाना और उल्टा बहाने बनाना।

मतलबी यार किसके, दम लगाए खिसके– मतलब निकल जाने के बाद याद नहीं करना।

मियां की जूती मियां के सिर– खुद की वजह से खुद का नुकसान होना।

भागते भूत की लँगोटी भली- ज्यादा नुकसान की सम्भावना थी पर उससे थोडा सा कम नुकसान होना।

आया है सो जाएगा, राजा, रंक, फकीर– हर किसी की मृत्यु निश्चित है चाहे वह राजा हो या गरीब।

हाथ मलते रह जाना- समय पर काम न करने के बाद पछताना।

अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज – किसी एक बात पर स्थिर न रहना।

खेत खाए गधा, मारे जाए जुलहा – किसी दुसरे की गलती की सजा किसी दुसरे को मिलना।

दूध का दूध पानी का पानी – सही फैसला करना, न्याय करना।

अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना – हमेशा बेवकूफी करना।

खोदा पहाड़ निकली चुहिया– कड़ी मेहनत के बाद उच्च परिणाम नहीं मिलना या बहुत ही कम मिलना।

अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोष– जब अपने ही गलत होतो परायो को क्या दोष देना।

अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत – समय पर कायं न करने के कारण आने वाली समस्या को ले कर रोना।

जो गरजते हैं बरसते नहीं – जो ज्यादा बोलते हैं और खुद को बड़ा बताते हैं वह असल में कुछ कर पाते हैं।

नया नौ दिन, पुराना सौ दिन – नए से ज्यादा लाभ पुराने से होना।

दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम– जिसको जो मिलना है वह अवश्य ही मिलेगा उसे कोई नहीं छीन सकता है।

बासी बचे, न कुत्ता खाये– अनुपयोगी, बिना काम का।

घी का लडडू टेढ़ा ही भला – जो व्यक्ति आपके काम आता है आपकी मदद करता है उसकी बुराई को नज़रंदाज़ कर देना चाहिए।

बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख– जो ज्यादा की कामना करता है उसे कुछ नहीं मिलता और जो कम की इच्छा रखता है उसे सब मिलता है।

आँख का अंधा नाम नयनसुख – जो अपने नाम के विपरीत आचरण रखता है।

तीन में न तेरह में, मृदंग बजावे डेरा में – कुछ कार्य न करने पर भी अपने काम का ढिंढोरा पीटना।

राम भरोसे जो रहें, पर्वत पर हरियाहिं– भगवान पर भरोसा रखने वाला कभी दुखी नहीं रहता।

अभी दिल्ली दूर है– कार्य पूरा होने में अभी समय लगेगा।

तबेले की बला बन्दर के सिर – गुन्हा कोई और करें तथा सजा किसी और को मिले।

नीम हकीम खतरा-ए-जान – जिन्हें चिकित्सा का कम ज्ञान होता है उनसे जान का खतरा हो सकता है।

अपना रख, पराया चख – स्वयं की वस्तु को रख कर दुसरे की वस्तु का उपयोग करना।

मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक – किसी भी कार्य में पहले सिमित होना।

बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी – आपत्ति तो आ कर रहेगी उससे कब तक बचा जा सकता है।

फिसल पड़े तो हरगंगा – मजबूरी में काम करना।

पिया गए परदेश, अब डर काहे का – किसी भी प्रकार की निगरानी का डर नहीं रहना।

गुड़ खाये गुलगुलों से परहेज – बेफिजुल के नाटक करना।

लिखे ईशा, पढ़े मूसा – अत्यधिक खराब लिखावट होना।

चिकने घड़े पे पानी नहीं ठहरता – मुर्ख को कुछ भी सिखाना मुर्ख है।

बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभानअल्लाह – छोटे का बड़े से भी ज्यादा मुर्ख होना।

अंत भला तो सब भला – अंत में सब ठीक होना और अब समस्या की चिंता न रहना

लोहा लोहे को काटता है – एक समान और समान क्षमता वाले लोगों का झगड़ा।

सीधे का मुंह कुत्ता चाटे – जो ज्यादा शरीफ रह जाता है उसका फायदा सभी उठाते हैं।

आसमान से गिरा खजूर में अटका – एक मुसीबत से बाहर आकर दूसरी का आ जाना।

राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी – एक जैसे दो लोगो का मिलना।

मन चंगा तो कठौती में गंगा– जिसकी नियत साफ़ होती है उसका हमेशा भला होता है।

घर में नहीं दाने, अम्मा चलीं भुनाने – क्षमता और योग्यता से अधिक कार्य करना।

भैंस के आगे बीन बाजे, भैंस खड़ी पगुराय – मूर्ख को समझाने को कोशिश करना और उस कुछ समझ नहीं आना।

नानी के आगे, ननिहाल की बातें – समझदार व्यक्ति को समझाना जिसे पहले से सब कुछ पता हो।

दूर के ढोल सुहावने होते हैं – जिसे हम कम जानते हैं वह हमें ज्यादा अच्छा लगता है।

जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर – बनिया जान पहचान वाले को ही ठगता है तथा चोर भी पहचान वाले के यहाँ ही चोरी करता है।

घी खाया बाप ने सूँघो मेरा हाथ – कार्य दुसरे के द्वारा पूर्ण किया जाना पर श्रेय खुद लेना।

घाट-घाट का पानी पीना – अत्यधिक अनुभवी होना।

अधजल गगरी छलकत जाय– ज्ञान नहीं होना फिर भी ज्ञान की बातें करना।

तेली का तेल जले, मशालची का दिल – किसी के द्वारा खर्चा करने पर किसी दुसरे का दिल दुखना।

नाम बड़े और दर्शन थोड़े – दुनिया में बहुत प्रचलित होना पर योग्य नहीं होना।

नंगा नहायेगा क्या, निचोड़ेगा क्या – अत्यधिक निर्धन होना।

अपने घर पर कुत्ता भी शेर होता है – अपने क्षेत्र में निर्बल भी शक्ति का प्रदर्शन करता है।

सीधी उंगली से घी नहीं निकलता – हर हर बार सीधा रहना सही नहीं है ऐसा करने से नुकसान हो सकता है।

चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात – कुछ समय के लिए सुख की प्राप्ति होना फिर दुःख आ जाना।

थोथा चना बाजे घना – गुण नहीं होना फिर भी खुद को गुणी दर्शाना।

दिनभर चले अढ़ाई कोस – बहुत ज्यादा समय लेना फिर भी थोडा सा कम पूर्ण करना।

ज्यों ज्यों भीगे कामरी, त्यों त्यों भारी होय – समय के साथ साथ जिम्मेदारी भी बढ़ती है।

न खुदा ही मिला न विसाले सनम– दोनों तरफ से फायदा नहीं मिलना।

सैयां भये कोतवाल, अब डर कहे का– प्रभावशाली व्यक्ति का साथ होना।

पढ़े फ़ारसी बेंचे तेल, यह देखो कुदरत का खेल – अपनी योग्यता के अनुसार कार्य न मिलना।

नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च – सस्ती वस्तु के भी जयादा पैसे देना।

गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास – अवसर की खोज करना।

बूढ़ी घोड़ी, लाल लगाम– योग्यता से ज्यादा दिखाना।

अंधा क्या चाहे दो आंखें – जिस व्यक्ति को जिस चीज की जरूरत होती है वह वही मांगता है।

मुफ्त की शराब काजी को भी हलाल – बिना मेहनत का पैसा हर कोई चाहता है।

बाप न मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज – जो अपने बड़े से नहीं होता उस कार्य को करने के लिए कहना।

अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख – अपनी वस्तु खो देना और दूसरे से मांगना।

बाज के बच्चे मुंडेर पे नही उड़ा करते – जो बड़े लक्ष्य रखते हैं वो कभी भी छोटी बात नहीं करते हैं।

नेकी और पूंछ पूंछ– अच्छे और फायदे के काम के लिए पूछा नहीं जाता है।

तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी – दो लोगो के बिच अहम का टकराव होना।

अपने बेरों को कोई खट्टा नही कहता – कोई भी व्यक्ति स्वयं को गलत नहीं कहता है।

धोबी का कुत्ता घर का न घाट का – जो लालच करता है उसका कोई नहीं होता है।

पांचों उंगलियां घी में – हर तरफ से फायदा।

हवन करते हाथ जले – अच्छा करने पर भी बुराई मिलना।

बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा – जिसकी आप तलाश कर रहे है वह पास में ही है पर आप उसे कही दूर तलाश रहे हैं।

बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय– जैसा कार्य करते है, वैसा फल मिलता है।

नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली– अत्यधिक बुरा करने के बाद थोडा सा भला करना।

मुंह में राम, बगल में छुरी – झूठी सहानुभूति रखना।

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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