नाटो (NATO) क्या है, पूरा नाम, स्थापना कब हुई, सदस्य देश, मुख्यालय कहां है (What is NATO, Full Form, Members in Hindi) (Founders, Country List, Headquarters)
विश्व युद्ध की सुगबुगाहट से ही पूरी दुनिया के देशों में हलचल मच जाती है। इसके पीछे का सीधा कारण हैं कि, विश्व युद्ध दोबारा से ना हो। विश्व को रोकने के लिए दुनिया के कई देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की थी। इस गठन को अत्यधिक मजबूत बनाने के लिए एक सैन्य संगठन का भी निर्माण किया गया है। जिसके मुताबिक यदि कोई देश नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ फिर कड़ी से कड़ी कार्यवाही सैन्य संगठन के द्वारा की जाएगी। इसके लिए इसमें शामिल हुए कई देशों ने अपनी सेना को आपस में साझा करने के बारे में फैसला किया। इस प्रकार से जब कई देशों की सेनाएं मिल गईं तो इस संगठन का निर्माण हुआ जिसका नाम नाटो रखा गया। आज के इस लेख के जरिए हम आपको बताएंगे कि, नाटो (NATO) क्या है और इससे संबंधित सारी महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार पूर्वक क्रमानुसार।
नाटो क्या है (What is NATO)
Table of Contents
संगठन का नाम | नाटो (NATO) |
किसने स्थापना की | अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन |
कब | 4 अप्रैल 1949 |
मुख्यालय | ब्रुसेल्स बेल्जियम |
उद्देश्य | शामिल हुए देशों को साम्यवाद से बचाना और हमले के समय सहायता करना |
कुल देश | 30 |
आपको जानना जरूरी है कि, नाटो एक सैन्य संगठन है। जिसमें 30 देशों की सेन्य मदद शामिल हैं। बता दें कि, यह एक अंतर सरकारी सैन्य संगठन है जिसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को की गई थी। इसका दूसरा नाम अटलांटिक अलायंस है। इसमें शामिल एक देश अपनी सेना को दूसरे देश में भेजता युद्ध की स्थिति में भेजता है। इसमें मौजूदा सैनिकों को इंटरनेशनल ट्रेनिंग दी जाती है और साथ ही साथ उन्हें यह भी आदेश दिया जाता है कि हर परिस्थिति से सख्ती से निपटें। ताकि उनके समक्ष कोई अपनी शक्ति का प्रदर्शन ना कर सके।
नाटो का फुल फॉर्म (NATO Full Form)
नाटो (NATO) का फुल फॉर्म North Atlantic Treaty Organisation (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) है। हिंदी में इसे उत्तर अटलांटिक संधि संगठन कहते हैं। इसमें शामिल हुए देशों की संख्या 30 है।
नाटो का इतिहास एवं सदस्य देश (NATO History, Member Country List)
वर्ष 1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध अपने अंतिम दौर में था, तो उस समय पर सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका महाशक्ति बन गए थे। जिसके चलते यूरोप में संभावित खतरे की संभावना बढ़ गई थी जिसको देखते हुए ही फ्रांस, ब्रिटेन, नीदरलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग देशों ने एक संधि की। इस संधि को बूसेल्स की संधि कहते हैं। संधि में इस बात को सुनिश्चित किया गया कि कोई भी देश पर यदि हम पर हमला करता है तो यह सभी देश एक दूसरे को सामूहिक रूप से सैनिक सहायता प्रदान करेंगे। इसके अलावा यह भी निर्धारित किया गया कि सामाजिक आर्थिक तौर पर भी यह एक दूसरे का भरपूर निस्वार्थ भाव से सहयोग करेंगे।
बाद में अमेरिका अपने आपको सबसे अत्यधिक शक्तिशाली बनाने के लिए सोवियत संघ की घेराबंदी करने लगा। जिससे कि उसका प्रभाव खत्म किया जा सके। इसलिए अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 15 के तहत उत्तर अटलांटिक संधि के एक प्रस्ताव की पेशकश की। इस संधि के अंतर्गत 1949 को दुनिया के 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, बेल्जियम, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, फ्रांस, कनाडा, इटली और डेनमार्क जैसे देश प्रमुख रूप से शामिल थे। दूसरी ओर शीत युद्ध से पहले स्पेन, पश्चिम जर्मनी, टर्की और यूनान ने भी इसकी सदस्यता ले ली थी। बाद में जब शीत युद्ध खत्म हो गया था तो तब हंगरी, पोलैंड और चेक गणराज्य भी इसमें शामिल हो गए थे। ठीक इसी प्रकार से फिर 2004 में 7 और देशों ने इसकी सदस्यता ली और मौजूदा टाइम में इसके अब 30 सदस्य बन गए हैं।
पूरा नाम (Full Form) | उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization) |
स्थापना (Establishment) | 4 अप्रैल 1949 |
मुख्यालय (The Headquarters) | ब्रुसेल्स (बेल्जियम) |
आधिकारिक भाषा (Official Language) | अंग्रेजी (English), फ्रांसीसी (French) |
आधिकारिक वेबसाइट (Official Website) | www.nato.int |
सदस्य देशों की संख्या (Number Of Member Countries) | 30 |
मूल उद्देश्य (Original Purpose) | सामूहिक रक्षा, संकट-प्रबंधन और सहकारी सुरक्षा। |
नाटो का मुख्यालय (NATO Headquarter)
आपको जानना जरूरी हैं कि, जो नाटो का मुख्यालय यानी हेड क्वार्टर बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में स्थित है।
♦ लेटेस्ट जानकारी के लिए हम से जुड़े ♦ |
WhatsApp पर हमसे बात करें |
WhatsApp पर जुड़े |
TeleGram चैनल से जुड़े ➤ |
Google News पर जुड़े |
नाटो की स्थापना क्यों की गई (Why was NATO Established)
साल 1945 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुआ था तो उसके बाद पूरे यूरोप की आर्थिक स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब हो गई थी। इस गिरावट के चलते वहां के लोगों की जिंदगी अत्यधिक प्रभावित हो गई थी। नागरिक निम्न स्तर का जीवन जीने के लिए मजबूर थे। सोवियत संघ ने इसे एक मौका समझते हुए इसका फायदा उठाना चाहा। वह तुर्की और ग्रीस में साम्यवाद को स्थापित करके वर्ल्ड के बिजनेस पर अपना कंट्रोल करना चाहता था।
सोवियत संघ अगर उस समय तुर्की पर जीत हासिल कर लेता तो तब उसका कंट्रोल काला सागर पर भी हो जाता। उसका उसे यह लाभ होता कि वह आसपास के सभी देशों पर आसानी के साथ साम्यवाद की स्थापना कर सकता था। इसके अलावा वह ग्रीस को भी अपने नियंत्रण में लेना चाहता था। सोवियत संघ इस तरह से भूमध्य सागर के रास्ते से जो व्यापार किया जाता था, उस पर असर डाल सकता था। उसकी यह सोच काफी ज्यादा विस्तारवादी थी और अमेरिका ने उसको बहुत अच्छी तरह से आंक लिया था। उस दौरान अमेरिका के प्रेसिडेंट फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट का अचानक से निधन हो गया था। जिसकी वजह से राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन बने थे।
ट्रूमैन सिद्धांत (Truman Doctrine in Hindi)
अमेरिका ने शीत युद्ध के टाइम पर सोवियत संघ का विस्तार रोकने के लिए एक प्रस्ताव को रखा था। इसे ट्रूमैन सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ के विस्तार पर रोक लगाने के साथ-साथ सभी यूरोपीय देशों की मदद करना था। इस सिद्धांत के अंतर्गत अमेरिका ने उन सभी देशों की सहायता करने का फैसला लिया था जिनको साम्यवाद से काफी खतरा था।
आपको बता दें कि नाटो संगठन को अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने ही संकलित किया था। इस गठन में वह सभी देश शामिल किए गए जो लोकतंत्र को बचाने में विश्वास रखते थे और जिन्हें साम्यवाद से खतरा था। नाटो के तहत यह निर्णय किया गया था कि इसमें शामिल सभी सदस्य देशों की सुरक्षा का ध्यान रखना होगा। अगर किसी सदस्य देश पर कोई हमला करता है तो वह हमला उस संगठन पर होगा और इसीलिए वे सब मिलकर उसका सामना करेंगे। बताते चलें कि मार्शल स्कीम के अंतर्गत तुर्की और ग्रीस को लगभग 400 मिलियन डॉलर की मदद दी गई और साथ ही साथ उन दोनों को नाटो का मेंबर भी बनाया गया। यह एक ऐसी नीति थी जिसकी वजह से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच बहुत लंबे अरसे तक शीत युद्ध चलता रहा। तो इस तरह से नाटो का गठन किया गया।
देशों का नाम (countries names) | शामिल होने का वर्ष (year of joining) |
संयुक्त राज्य अमेरिका | 1949 |
यूनाइटेड किंगडम | 1949 |
तुर्की | 1952 |
स्पेन | 1982 |
स्लोवेनिया | 2004 |
स्लोवाकिया | 2004 |
रोमानिया | 2004 |
पुर्तगाल | 1949 |
पोलैंड | 1999 |
नॉर्वे | 1949 |
उत्तर मैसेडोनिया | 2022 |
नीदरलैंड्स | 1949 |
मोंटेनेग्रो | 2017 |
लक्ज़मबर्ग | 1949 |
लिथुआनिया | 2004 |
लातविया | 2004 |
इटली | 1949 |
आइसलैंड | 1949 |
हंगरी | 1999 |
ग्रीस | 1952 |
जर्मनी | 1955 |
फ्रांस | 1949 |
एस्टोनिया | 2004 |
डेनमार्क | 1949 |
चेक गणराज्य | 1999 |
क्रोएशिया | 2009 |
कनाडा | 1949 |
बुल्गारिया | 2004 |
बेल्जियम | 1949 |
अल्बानिया | 2009 |
FAQ
Q : नाटों से आप क्या समझते हैं?
Ans : यह एक प्रकार का संधि संगठन है। इसे शुरू किए जाने के पीछे का मकसद है कि, बढ़ती हुई सांप्रदायिकता को रोका जा सके।
Q : क्या नाटो शुरू से ही एक सैन्य संगठन था?
Ans : बिल्कुल नहीं कि, शुरुआत में यह एक राजनीतिक संगठन था।
Q : क्या नाटो की टेररिज्म से लड़ने में कोई भूमिका है?
Ans : जी हां।
Q : क्या नाटो में कोई भी देश शामिल हो सकता है?
Ans : जी हां बिल्कुल, जो देश सांप्रदायिकता के खिलाफ है वह इसमें शामिल हो सकते हैं।