बेहद प्राचीन है भलुनी धाम रोहतास | Bhaluni Dham Rohtas History

बेहद प्राचीन है भलुनी धाम रोहतास | Bhaluni Dham Rohtas History

बिहार के सासाराम से उत्तर दिशा की ओर करीब 50 किमी दूर और बक्सर से दक्षिण दिशा की ओर करीब 50 किमी दूर दिनारा प्रखंड में स्थित भलुनी धाम आस्था का केन्द्र है। इस धाम को सिद्ध शक्ति पीठ माना जाता है। अति प्राचीन धाम में यक्षिणी स्वरुप में मां दुर्गा विराजित हैं। माता के दरबार में प्रतिवर्ष दो बार मेला लगता है। नवरात्र में लाखों की संख्या में माता के उपासक दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

धाम में नवरात्र के दिनों में अलसुबह तीन बजे से ही माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की कतार लग जाती है। यक्षिणी भवानी को  माता के उपासक देहाती भाषा में भलुनी भवानी कहकर संबोधित करते हैं। श्रीमद् देवी भागवत और मार्कन्डेय पुराण इस प्राचीन धाम का उल्लेख मिलता है। हिंदू धर्म शास्त्रों की मान्याता के अनुसार भगवान इन्द्र ने एक लाख वर्ष तक इस धाम में कठोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर माता ने उन्हें दर्शन दिए थे। ध्यानमग्न इंद्र को सोने के सिंहासनारुढ़ भगवती के दर्शन हुए, जो सजीव रुप को त्यागकर प्रतिमा के आकार में आ गई। जनश्रुतियों का मानना हैं कि, कभी यह इलाका घना जंगल था। जहां पर भालू बहुत संख्या में रहते थे, इसलिए इस धाम का नामकरण भलुनी धाम हो गया।

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Bhaluni Dham Rohtas History

धाम में मां यक्षिणी पिंड के रूप में विराजमान हैं। माता की प्रतिमा स्थापित नहीं है। फ्रांसीसी यात्री बुकानन ने अपनी पुस्तक ए टूर रिपोर्ट ऑफ नार्दन इंडिया में भी भलुनी धाम के महत्वता का जिक्र किया है। जिसके कारण धाम की प्राचीनता व पौराणिक महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। स्थानीय किवदंती है कि भगवान परशुराम ने भी इस धाम में यज्ञ किया था। उनका हवन कुंड ही वर्तमान समय में पोखरा बन चुका है। धाम में सूर्य मंदिर, कृष्ण मंदिर, साईं बाबा का मंदिर, गणिनाथ मंदिर व रविदास मंदिर भी है।

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चैत्र नवरात्र के एक दिन बाद भलुनी धाम में एक वृह्द मेला का आयोजन होता है। आधुनिकता के कारण यह मेला समाप्ति के कगार पर है। क्षेत्र के लोगों का मानना है कि भलुनी मेला में जरुरत के सभी समानों की खरीदारी लोग करते थे, जिसमें देश के कोने-कोने से आकर व्यवसायी एक माह तक अपना दुकान लगाते थे, जिससे सरकार को बेहतर राजस्व प्राप्त होता था। मनोरंजन के लिए सर्कस, भिखारी ठाकुर के थियेटर के अलावा अन्य कई दैनिक जरूरतों की सामग्री उपलब्ध रहती थी। लेकिन वर्ष 1990 के बाद मेला के स्वरुप में गिरावट आना शुरु हुआ जो आज समाप्ति की ओर है। अब केवल मेला के नाम पर एक दर्जन छोटे दुकान लगते हैं।

बता दें कि भलुनी धाम में आज से नहीं सैकड़ों वर्ष से बंदरों का बहुत बड़ा जत्था रहता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह बंदर कभी भी धाम के आसपास स्थित घनघोर बागीचे से बाहर नहीं जाते। न ही ग्रामीणों और किसानों को कोई नुकसान ही पहुंचाते हैं। भलुनी धाम पहुंचने वाले श्रद्धालू प्रसाद के साथ-साथ भारी मात्रा में अनाज और फल-फूल भी लेकर जाते हैं।

एक समय भलुनी धाम के जंगल लगभग 30 एकड़ में फैला था, लेकिन अवैध तरीके से पेड़ों के निरंतर कटाई से जंगल का सम् राज्य सिकुड़ता चला गया। यहां के जंगलों में जड़ी बूटियों का विशाल संग्रह था।

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