भारत वह भूमि है जहां नित्य दिन पर्व व त्योहार मनाए जाते हैं. कार्तिक मास कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस मनाया जाता है. पांच दिवसीय दीवाली के पहले दिन धनतेरस मनाया जाता है.“धन्वंतरि त्र्योश्दी” तिथि के दिन मनाए जाने के कारण इसे धनतेरस कहा जाता है. इस पोस्ट में अब हम जानते है की धनतेरस का त्यौहार साल 2024 में कब है – Dhanteras 2024 Mein Kab Hai Date
धनतेरस का शुभ मुहूर्त 2024 – Dhanteras 2024 Shubh Muhurat
Table of Contents
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
दिनांक | 29 अक्टूबर, 2024 (मंगलवार) |
वार | मंगलवार |
धार्मिक महत्व | सोना, चांदी या बर्तन खरीदे जाते हैं और पूजा की जाती है |
पूजा के मुहूर्त का समय | शाम 18:33:13 से 20:12:47 तक |
अवधि | 1 घंटे 39 मिनट |
प्रदोष काल | शाम 17:37:59 से 20:12:47 तक |
वृषभ काल | शाम 18:33:13 से 20:29:06 तक |
धनतेरस 2024 में कब है तारीख – Dhanteras 2024 Mein Kab Hai Date
2023 Mein Dhanteras Kab Hai Date – धनतेरस साल 2024 में 29 अक्टूबर, 2024 (मंगलवार) को हैं. सनातन धर्म में धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी, भगवान कुबैर और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है.धन्वंतरि का पूजन चिकित्सकों द्वारा किया जाता है. पौराणिक मान्यता है कि तेरस के दिन पूजा करने से घर में धन की कमी नहीं होती है. इस दिन पूजन के बाद घर के कौनों में दीप सजाए जाता है. लोक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विशेषकर कुछ ना कुछ खरीदने की परंपरा है. व्यक्ति अपने सामर्थ्य और आर्थिक स्थिति के अनुसार कुछ ना कुछ खरीदता है. कुछ लोग सोने चांदी के आभूषण, तांबे, पीतल आदि के बर्तन भी खरीदते हैं. क्योंकि इस दिन बर्तन और आभूषण खरीदना बेहद ही शुभ माना जाता है.
धनतेरस पर क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन | Dhanteras 2024
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि समुंद्र मंथन से धन्वन्तरि प्रकट हुए इनके हाथों में अमृत से भरा कलश था. भगवान धन्वन्तरी के हाथो में कलश के कारण ही तेरस तिथि को बर्तन खरीदने की परंपरा है. इस दिन विशेष रूप से पीतल और चांदी के बर्तन खरीदना चाहिए. जिसमे आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ मिलता है. तेरस के दिन धन के देवता कुबेर और यमदेव की पूजा अर्चना की जाती है, लोग घरों के बाहर यम के नाम से दीप जलाते है. इस दिन को धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है.
धनतेरस की पौराणिक कथाएं (Stories Related to Dhanteras 2024)
धनतेरस मनाने के पीछे अनेकों पौरणिक कथाएं प्रचलित है. जिसमे से कुछ इस प्रकार हैं
- समुद्र मंथन के समय कई प्रकार की चीजों का उद्गम हुआ था. इस दौरान माता लक्ष्मी भी मंथन के दौरान निकली थी इसलिए धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है जिससे घर में वैभव, सुख सदैव बना रहे.
- एक प्राचीन कथा के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. भगवान धन्वंतरि विष्णु के अवतार हैं. इसका अर्थ है कि भगवान धन्वंतरि के जन्मोत्सव को धनतेरस के रुप में मनाया जाता है.
राजा बलि और वामन अवतार
एक और पौराणिक कथा के अनुसार धनतेरस के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शंकराचार्य की एक आंख नष्ट कर दी थी. जिसके बाद भगवान विष्णु ने देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्त करने के लिए वामन अवतार लिया था.बलि के यज्ञ स्थल पर वे वामन अवतार के रूप में पहुंचे थे. लेकिन शुक्राचार्य ने विष्णु काे वामन के अवतार को पहचान लिया. शुक्राचार्य ने राजा से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे तो उन्हें इंकार कर देना. क्योंकि वामन साक्षात भगवान विष्णु के अवतार हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब वापस छीननें आए हैं.
बलि ने ऋषि शुक्राचार्य की बातों को टाल दिया और बात नहीं मानी. वामन रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि से सिर्फ तीन पग भूमि की मांग की. जिसे राजा बलि मान गए थे. जब राजा बलि तीन पग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प करने लगे तभी ऋषि शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए. जिससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया था.
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वामन भगवान ऋषि शुक्राचार्य की इस बात से भलीभांति परिचित थे. भगवान वामन ने अपने हाथ में रखी हुई कुशा को कमंडल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और शुक्राचार्य चोटिल होने के कारण कमंडल से बाहर आ गए. जिसके बाद बली ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प लिया. तब भगवान वामन ने अपने एक पेड़ से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया था तथा दूसरे पैर से अंतरिक्ष को. तीसरे पक्ष के लिए कोई भी स्थान शेष नहीं रहा था तब राजा बलि ने अपना मस्तक भगवान वामन के चरणों में रख दिया और इस तरह राजा बलि अपना सर्वस्व गवा बैठे.
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