जितिया पर्व की कथा हिंदी में jivitputrika vrat katha in hindi
महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा नामक हाथी की मृत्यु हो गई थी। गफलत में युद्ध भूमि में यह बात फैल गई की अश्वत्थामा मारा गया। अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर दुखी हो गए। युद्ध भूमि में उन्होंने अपने अस्त्र त्याग दिए।
इसी दौरान द्रोपदी के भाई धृष्टद्यम्न ने निहत्थे द्रोणाचार्य का वध कर दिया। पिता की मौत का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने रात्रि के अंधेरे में धृष्टद्यम्न के पांच पुत्रों को पांडव समझकर उनका वध कर दिया। क्रोध में आकर भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से उसकी मणि छीन ली।
जितिया पर्व की कथा हिंदी में jivitputrika vrat katha in hindi
मणि छीने जाने से अश्वत्थामा क्रोधित हो गया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। श्रीकृष्ण भलीभांति परिचित थे कि ब्रह्मास्त्र को रोक पाना कदाचित ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने अपने सभी पुण्यों का फल एकत्रित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को दिया।
उत्तरा के गर्भ में पल रहा बच्चा पुनर्जीवित हो गया। आगे चलकर यह बच्चा राजा परीक्षित के नाम से जाना गया। बच्चे के दोबारा जीवित हो जाने के कारण ही इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका व्रत पड़ा। जिसके बाद से लेकर आज तक महिलाएं संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं।
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