महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व – Shivratri Ka Vaigyanik Mahatva
भारत वर्ष के प्रमुख आराधक भगवान शिव को माना गया है। हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता अनुसार शिवभक्तों का प्रमुख पर्व महाशिवरात्रि होती है। जिसका भोलेभक्तों को पूरे वर्ष बेसब्री से इंतजार रहता है। भगवान भोलेनाथ के प्रति शिव साधकों के मन में बहुत श्रद्धा है. इसी के चलते पुरे साल अलग अलग रूप में भगवान शिव और उनकी महिमाओं को अलग-अलग पर्व और तीज के रूप में मनाया जाता है। इसी त्यौहारों में से है “महाशिवरात्रि” जो साल के शुरूआत यानी कि फरवरी माह के मध्य या अंत में आता है। इसी त्यौहार को लोग अपने-अपने तरीके से मानते है, कुछ पूरा दिन व्रत पूजा रखते है, तो कुछ लोग फलिहार वितरित करके भगवान शिव को अपनी श्रद्धा अर्पण करते है। दोस्तों पोस्ट के जरिए हम जानेंगे कि, महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व, आशा करते हैं आप पोस्ट को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ेंगे।
महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व- Shivratri Ka Vaigyanik Mahatva
महाशिवरात्रि के दिन आदि शंकर महादेव का विवाह माता पार्वती जी के साथ विधि विधान से संपन्न हुआ था। यह तिथि बहुत ही शुभ भी मानी जाती है। इस दिन शिव उपासकों द्वारा भगवान शिव कि बारात निकाली जाती है। इस दिन पूरी निष्ठा के साथ आदि देव भगवान शंकर का पूजन किया जाता है। शिवलिंग का जलाभिषेक कर हर मनोकामना पूर्ण करने की कामना की जाती है। महाशिवरात्रि भगवान शंकर को प्रसन्न करने का यह सबसे शुभ दिन माना गया है। इस दिन शंकर भगवान हर किसी की प्रार्थना सुनते हैं। महाशिवरात्रि पर व्रत रखने , शिव जी की पूजा करने तथा दान धर्म करने से भविष्य में आने वाली आपदा से भगवान शिव आपकी रक्षा करते हैं।
हिन्दू धर्म में हर त्यौहार का सम्बन्ध किसी न किसी देवता से अवश्य होता है और साथ ही उनका वैज्ञानिक महत्व भी होता है। उसी प्रकार महाशिवरात्रि का भी वैज्ञानिक महत्व महत्व है। कहा जाता है कि इस रात्रि को पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की स्थित ऐसी होती है कि वह मनुष्य के अंदर की ऊर्जा को प्राकृतिक तौर पर ऊपर की तरफ ले जाने का कार्य करती है। प्रकृति का असर इस प्रकार होता है कि मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने के सारे मार्ग सुगम हो जाते है। महाशिवरात्रि की रात्रि में अगर कोई सीधा बैठ कर ध्यान करता है तो उसकी ऊर्जा में बढ़ावा होता है तथा सकारात्मक परिमाण मिलते हैं।
कुछ और महत्वपूर्ण लेख –