विषु पर्व कब मनाया जाता है ? जानें

विषु पर्व 2021 (Vishu Festival 2021) वर्ष 2021 में विषु पर्व 14 अप्रैल, बुधवार के दिन काफी धूम-धाम के साथ मनाया जायेगा। विषु पर्व किस राज्य में मनाया जाता है? (In Which State Vishu Festival is Celebrated)

विषु पर्व भारत के केरल राज्य में उत्साह से मनाया जाने वाला हिंदू पर्व है. यह केरल राज्य के सबसे प्राचीनतम पर्वों में से एक है. मलयालम माह मेष की पहली तिथि को मनाये जाने वाले इस त्योहार को केरलवासियों द्वारा नववर्ष के रुप में मनाया जाता है कारण मलयालम पंचाग के अनुसार इस दिन सूर्य अपनी राशि को बदलकर ‘मेडम’ राशि में प्रवेश करता है, जिसके कारण नव साल की शुरुआत होती हैं.

पर्व की महत्वता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, इस त्योहार के अवसर पर केरल में सार्वजनिक अवकाश घोषित रहता है. इस पर्व को मनाए जाने को लेकर कई प्रकार की धार्मिक मान्यताएं तथा किवदंतियां प्रचलित है लेकिन मुख्यतः यह पर्व भगवान विष्णु और उनके अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है.

विषु पर्व 2021 (Vishu Festival 2021)

वर्ष 2021 में विषु पर्व 14 अप्रैल, बुधवार के दिन काफी धूम-धाम के साथ मनाया जायेगा।

विषु पर्व किस राज्य में मनाया जाता है? (In Which State Vishu Festival is Celebrated)

विषु का यह मनमोहक त्योहार केरल राज्य में मनाया जाता है। इस दिन पूरी केरल राज्य अवकाश होता है और सभी दफ्तर, स्कूल, कालेज आदि बंद रहते है ताकि सभी लोग अपने परिवार के साथ मिलकर इस पर्व का आनंद ले सके।

विषु पर्व क्यों मनाया जाता है? (Why Do We Celebrate Vishu)

विषु नामक पर्व को पूरे केरल तथा कर्नाटक के कुछ जिलों बेहद ही उल्लास के साथ मनाया जाता है. इसे मलयालम नव वर्ष के रुप के स्वागत के रुप में भी मनाया जाता है. साथ ही इसी दिन केरल में धान के फसल की बुवाई भी शुरु होती है. इसलिए यह किसानों के लिए भी एक खुशी का पल होता है, जिसमें वह अपने पिछलों फसल के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं और अपनी अगली फसल के अच्छे पैदावार की कामना करते है.

पर्व को मनाए जाने के पीछे खगोलीय व धार्मिक कारण भी हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्य सीधा पूर्व दिशा से भगवान विष्णु के ऊपर पड़ता. यहीं कारण है कि इस दिन भगवान विष्णु और उनके अवतार भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का भी वध किया था.

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विषु पर्व कैसे मनाया जाता है – रिवाज एंव परंपरा (How Do We Celebrate Vishu – Custom and Tradition)

विषु का यह त्योहार केरल में रहने वाले सनातन धर्म के लोगों का एक विशेष त्योहार है. जिसका केरलवासी बेसब्री से प्रतीक्षा करते है. कारण है कि, इस दिन को केरल राज्य में नए साल का आरंभ होता है. यहीं कारण है कि इस दिन राज्य भर में एक दिन का सार्वजनिक अवकाश भी होता है ताकि लोग इस पर्व को अपने परिवार के साथ मिलजुल कर उल्लास के साथ मना सके.

इस दिन लोग सुबह में नहा-धोकर विषुकानी दर्शन के साथ अपना दिन शुरु करते हैं. मलयालम में विषु का अर्थ होता है विष्णु और कानी का अर्थ देखना अर्थात विषुकानी का अर्थ है सर्वप्रथम भगवान विष्णु के दर्शन करना.

जिसके बाद लोग नये या फिर साफ-सुधरे कपड़े पहनकर मंदिर में देवताओं का दर्शन कर आर्शीवाद लेते हैं. इस दिन का सबसे प्रतिक्षित समय विषु भोजन का होता है. जिसमें 26 प्रकार के विभिन्न शाकाहारी भोजनों को परोसा जाता है.

इसी तरह इस दिन देवताओं को भी विशेष प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है जिसमें एक विशेष बर्तन जिसे ‘उराली’ के नाम से जाना जाता है. इसमें खीरा, कद्दू, नारियल, कच्चा केला, आम, अनानास, चावल, सुपारी, अनाज आदि जैसी चीजों को देवताओं के समाने रखकर भोग लगाया जाता है.

इतना ही नहीं इस दिन भगवान की आकृर्षक झांकी निकालने का भी रिवाज है. झांकी को एक दिन पूर्व ही सजा लिया जाता है और विषु पर्व के दिन काफी धूम-धाम के साथ आस-पास के क्षेत्रों में घुमाया जाता है. इस झांकी का दर्शन सभी लोगों द्वारा किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस झांकी के दर्शन करने से काफी पुण्य प्राप्त होता है. जिसके बाद लोग मंदिरों में जाकर भगवान की पूजा करते है. विषु पर्व के दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार यानि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा सबसे अधिक की जाती है.

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विषु पर्व की आधुनिक परंपरा (Modern Tradition of Vishu)

हर पर्व के तरह आज के समय में विषु के पर्व में भी विभिन्न प्रकार के परिवर्तन आए है. हालांकि कुछ चीजों को छोड़कर इसमें अधिकतर परिवर्तन अच्छे ही हुए है. आधुनिक युग में पर्व को पूरे केरल राज्य में काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन अधिकतर घरों में भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है. साथ ही आज के समय में इस पर्व को अब काफी वृहद स्तर पर मनाया जाता है और इस दिन कई बड़ी-बड़ी झांकियां भी निकाली जाती है.

हालांकि आज के आधुनिक दौर में लोग अपने कार्यों में व्यस्तता के चलते हुए. 70 के दशक की तरह इस पर्व का आनंद नही ले पाते हैं क्योंकि आज के समय में लोग रोजगार या फिर व्यवसाय के लिए अपने घरों-गावों से बाहर रहते है और इस पर्व पर घर नही आ पाते. जिसके कारण अब इस पर्व का पारिवारिक महत्व कम होता जा रहा है. हमें इस बात का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए कि हम इस पर्व को अपने परिवार और प्रियजनों के साथ मनायें ताकि इस पर्व का सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व को ऐसे ही बना रहे.

विषु पर्व का इतिहास (History of Vishu)

केरल राज्य में मनाए जाने वाले विषु नामक इस अनोखे त्याेहार का इतिहास हजारों साल पुराना है. यह पर्व भी वैसाखी, गुड़ी पाड़वा तथा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तरह नये वर्ष के शुभारंभ तथा फसलों से जुड़ा हुआ है और एकदूसरे से कुछ ही दिनों के अंतर पर मनाया जाता है.

पहले के ही तरह आज के समय में भी इस पर्व को केरल के किसानों द्वारा नयी धान की बुवाई के खुशी में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. हालांकि इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई इस विषय में कुछ विशेष ज्ञात नहीं है लेकिन इस पर्व से जुड़ी कई प्रकार की ऐतिहासिक तथा पौराणिक कथाएं प्रचलित है.

इसी तरह की एक कथा अनुसार इस दिन सूर्य अपनी राशि में परिवर्तन करता है. जिसके कारण सूर्य का सीधा प्रकाश भगवान विष्णु पर पड़ता है. अपने इसी खगोलीय तथा पौराणिक कारण के वजह से केरल राज्य के लोगों द्वारा इस दिन को मलयालम नववर्ष के रुप में भी मनाया जाता है.

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नरकासुर के वध की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार योगेश्वर श्रीकृष्ण ने नरकासुर का भी वध किया था. यहीं कारण है की इस दिन विष्णु भगवान की पूजा के साथ ही इस दिन उनके कृष्ण की अवतार की पूजा सबसे अधिक की जाती है. प्राचीन कथा के अनुसार, प्रगज्योतिषपुर नगर में नरकासुर नामक दैत्य राज्य करता था. अपने तपस्या के बल पर उसने ब्रम्हाजी से यह वर मांगा कि कोई भी देवता, असुर या राक्षस उसका वध ना कर सके.

वरदान के कारण वह स्वयं को अजेय समझने लगा. और अपनी शक्ति के अहंकार में चूर होकर वह सभी लोकों का स्वामी बनने का स्वप्न देखने लगा और अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि जैसे देवताओं को परास्त कर दिया. शक्ति के घमंड में उसने कई सारे संतो और 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बना लिया.

अत्याचार से परेशान होकर सभी देवतागण और ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे. भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी विनती को स्वीकार करते हुए नरकासुर पर आक्रमण कर दिया और अपने सुदर्शन चक्र से नरकासुर के दो टुकड़े करके उसका वध कर दिया. इस प्रकार से उन्होंने अत्याचारी तथा आततायी नरकासुर का अंत करके लोगों को उसके अत्याचारों से मुक्त किया.

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