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रिटायर्ड कर्नल ने शुरू की ड्रैगन फ्रूट और चिया सीड्स की खेती

खेती किसानी से तो तकरीबन भारत देश का हर इंसान जुड़ा होता है. भले ही वह जीवन में आगे चलकर किसी दूसरे फील्ड को अपनाए, लेकिन अपने खेती बाड़ी के दिनों को वह शायद ही कभी भूल पाता है. कारण खेती बाड़ी आजीविका चलाने के साथ हमें जीवन में अन्न की क़ीमत का भी अहसास कराती है.

आज की हमारी यह ख़बर भी आर्मी के एक रिटायर्ड कर्नल से जुड़ी हुई है. उनके जीवन का एक लंबा हिस्सा आर्मी में रहकर देश की सेवा करते हुए बीता, लेकिन जब वह रिटायर होकर घर आ गए. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने एक दो जगह नौकरी भी की, लेकिन उनका मन नहीं लग सका, तो उन्होंने आखिरी में किसानी का रास्ता चुना. जिसके बाद मानों उनका जीवन ही बदल गया.

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हरीश चन्द्र सिंह (Retired Colonel Harish Chandra Singh)

यह रिटायर्ड कर्नल उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में रहते हैं. इनका नाम हरीश चन्द्र सिंह (Harish Chandra Singh) है. यह साल 2015 में आर्मी से बतौर कर्नल रिटायर पद पर रह चुके हैं. रिटायर होने के बाद इन्होंने खाली समय बिताने के लिए एक दो जगह नौकरी की लेकिन कहीं भी इनका मन नहीं लगा. लिहाजा सब कुछ छोड़ कर ये सुल्तानपुर के ज़िला सैनिक बोर्ड से जुड़ गए.

सारी उम्र आर्मी के साथ गुजारने वाले कर्नल हरीश चंद्र इस तरह घर पर खाली नहीं बैठना चाहते थे. इसलिए उन्होंने खेती करने पर मन बनाया. कारण बचपन के दिनों में भी वह खेती किया करते थे. इसलिए तीन साल पहले ही उन्होंने बाराबंकी में ज़मीन खरीदी और आज उसी पर बेहतरीन तरीके से खेती कर रहे हैं. आपको जानकर आश्चर्य होगी कि आज उनकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं.

पिता के साथ बचपन में ही सीखी थी खेती

हरीश चंद्र मीडिया को जानकारी देते हुए बताते हैं कि, ग्रामीण परिवेश से होने के चलते वह बचपन से ही खेती से जुड़े थे. पिता पेशे से तो अध्यापक थे, लेकिन वह घर पर खेती भी किया करते थे. ऐसे में पिता के साथ हरीश चंद्र भी खेती में उनका साथ देते थे. बचपन से ही पौधे लगाना, ग्राफ्टिंग करना सीख गए थे। साथ ही साथ वह आर्मी में नौकरी के दौरान भी पौधे लगाने का काम समय-समय पर करते रहते थे. इसी का नतीजा था कि उनकी दिलचस्पी लगातार खेती में बनी रही.

तीन एकड़ ज़मीन से की खेती की शुरुआत

हरीश चंद्र बताते हैं कि उनके गाँव के लोग हमेशा से परंपरागत खेती करते आए थे. लेकिन वह परंपरागत खेती से हटकर कुछ नया करना चाहते थे. उनकी तैयारी ‘सुपर मार्केट’ में बिकने वाले पौधों के फलों पर थी. तीन एकड़ ज़मीन खरीदकर खेती की शुरुआत की. शुरुआत में उन्होंने ड्रैगन फ्रूट और एप्पल बेर के पौधे लगाए. करीब दो हज़ार ड्रैगन फ्रूट और 500 के करीब रेड और ग्रीन एप्पल के पौधे लगाए. इन पौधों को उन्होंने नागपुर और हैदराबाद से खरीदा था ताकि इनकी बेहतर बेहतर क़िस्म मिल सके. जैसे-जैसे उन्हें इन खेती से फायदा होता दिखाई दिया, उन्होंने ड्रैगन फ्रूट, एप्पल बेर, सेब, चिया सीड्स और ब्लैक गेहूँ की खेती भी शुरू कर दी.

पहले ही साल में मिला बेहतर उत्पादन

हरीश चंद्र बताते हैं कि शुरुआत में उनके मन में मौसम को लेकर संशय था कि फ़सल की बेहतर पैदावार होगी या नहीं. लेकिन उन्होंने पहले ही साल देखा कि लगभग 80 प्रतिशत पौधे पूरी तरह विकसित हो गए थे. इससे उनका मनोबल और बढ़ा. दूसरे साल उनके बोए एप्पल बेर से फल भी मिलने लगे. इसके बाद फिर सीड्स और ब्लैक गेहूँ की खेती में भी वह उतर गए. retired-colonel-harish-chandra-singh-started-the-cultivation-of-dragon-fruit-and-chia-seeds

‘चिया सीड्स’ की खेती से भी होता है अच्छा मुनाफा

हरीश चंद्र फिलहाल आधे एकड़ पर ‘चिया सीड्स’ की खेती भी करते हैं। चिया सीड्स से होने वाले मुनाफे से वह इतना प्रभावित हुए कि इस साल ही वह ‘चिया सीड्स’ की खेती बड़े पैमाने पर करने का विचार कर रहे हैं. ख़ास बात ये है कि ‘चिया सीड्स’ की फ़सल महज़ तीन महीने में ही तैयार हो जाती है।

यदि हम ‘चिया सीड्स’ की क़ीमत की बात करें तो ऑनलाइन बाज़ार में चिया सीड्स की क़ीमत फिलहाल 1500 से 2000 रूपये तक है. हालांकि, छोटे शहरों में चिया सीड्स की खेती करने में परेशानी ये है कि इस फ़सल को बेचने में थोड़ी दिक्कत होती है. लेकिन यदि ‘सुपर मार्केट’ में बेचा जाए तो वहाँ इसकी भरपूर मांग रहती है। हरीश चंद्र ने करीब ढाई क्विंटल सीड्स इस साल हाथों हाथ बेचे थे.

‘चिया सीड्स’ की क्यों है बाज़ार में इतनी मांग?

‘चिया सीड्स’ की इन दिनों बाज़ार में ख़ूब मांग की जा रही है. कारण है कि, चिया सीड्स लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है. यदि हम इसके पोषक तत्वों की बात करें तो इसमें फाइबर, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, जिंक, विटामिन B3, पोटेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. हड्डियों को भी मज़बूत बनाता है.

सामान्य लोगों को प्रतिदिन 20 ग्राम ‘चिया सीड्स’ का सेवन करना सेहत के लिए फायदेमंद होता है. यदि हमें इसके अच्छे नतीजे चाहिए तो इसका सेवन दूध या पानी में भिगोकर करना चाहिए.

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एप्पल बेर’ की खेती भी किसानों के लिए है वरदान

हरीश चंद्र बताते हैं कि यदि कोई किसान कम लागत में बेहतर आमदनी करना चाहता है, तो उसके लिए ‘एप्पल बेर’ की खेती एक वरदान साबित होगी. इस खेती के लिए ना तो कोई विशेष ज़मीन चाहिए, ना ही कोई विशेष तापमान. बस ध्यान रखें कि खेती वाली जगह पर जलजमाव की स्थिति न उत्पन्न होती हो.

एप्पल बेर की खेती को करके किसान साल भर में दो से तीन गुना मुनाफा कमा सकते हैं. इसकी ज्यादातर वैराइटी बाहर से आती हैं। इसलिए इसके बीज की क़ीमत बाज़ार में 30 से 40 रुपए तक होती है.

‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती भी देती है अच्छी कमाई

यदि हम कमाई की बात करें तो ‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती भी अच्छी कमाई देती है. लेकिन इसमें परेशानी ये है कि इसकी खेती में ख़र्चा भी अधिक करना पड़ता है. साथ ही इसकी खेती की देखभाल में भी काफ़ी परेशानी होती है. यदि कोई किसान छोटे शहर में इसकी खेती करने जा रहा है, तो उसे फल बेचने में भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि इसकी डिमांड ज्यादातर ‘सुपर मार्केट’ में ही होती है.

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कैसे करें ‘ड्रैगन फ्रूट’ की खेती?

ड्रैगन फ्रूट की खेती करना कोई बहुत कठिन काम नहीं है. सबसे पहले आप इसके बीज खरीद लीजिए. जिसके बाद बीज अच्छे क़िस्म का हो और यदि संभव हो तो ग्राफ्टेड प्लांट ही खरीद लीजिए. क्योंकि बीज को पौधा बनाने में समय के साथ मेहनत भी ज़्यादा लगती है. बुआई करने के बाद नियमित तौर पर इसकी देखभाल और निडाई करते रहिए. ताकि पौधे के आसपास खरपतवार ना उगें. बुआई के करीब एक साल बाद पौधा पूरी तरह से तैयार हो जाता है, जबकि दूसरे साल तो इसके पौधे में फल भी आने लगते हैं. इसी पौधे से तीसरे साल तक भी फल प्राप्त किए जा सकते हैं.

ड्रैगन फ्रूट के लिए तापमान हमेशा 10 से 40 डिग्री के बीच में ही होना चाहिए. इसकी बुआई मार्च से जुलाई माह के बीच कभी भी की जा सकती है. इस फ़सल के लिए किसी विशेष तरह की मिट्टी की भी ज़रूरत नहीं पड़ती है. साथ ही ये फ़सल कम पानी में बेहतर उत्पादन दे सकती है.

‘ड्रैगन फ्रूट’ हमारे शरीर के लिए एक तरह से सुरक्षा कवच का काम करता है. इसका सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल कम होता है, हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है. स्वस्थ शरीर के लिए, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए, हृदय रोग के लिए, वज़न घटाने के लिए साथ ही बालों को काले रखने में भी ड्रैगन फ्रूट मददगार सिद्ध होता है.

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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