Makar Sankranti 2023भारतवर्ष में मकर संक्रांति पर राज्यवार अलग-अलग परंपरा का निर्वहन किया जाता है. पर्व के दिन खिचड़ी खाए जाने का विशेष महत्व हैं. अलसुबह स्न्नान के बाद दान दिया जाता है. आइए लेख के जरिए जानते हैं मकर संक्रांति के त्योहार में खिचड़ी क्यों खाई जाती है.
मलमास के समाप्त होने का सूचक मकर संक्रान्ति (मकर संक्रांति) हैं. यह हिंदू धर्म का प्रमुख पर्व है. मकर संक्रांति 2023 (संक्रान्ति) (Makar Sankranti 2023) पूरे भारतवर्ष और नेपाल में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस पर्व को मनाया जाता है. वर्तमान में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही मनाया जाता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. भारत के राज्यों के अनुसार मकर संक्रांति पर हर जगह की अपनी एक अलग परंपरा होती है. इस त्योहार में खिचड़ी खाए जानें का विशेष महत्व होता है. अलसुबह स्न्नान के बाद दान दिया जाता है. आइए लेख के जरिए जानते हैं मकर संक्रांति के त्योहार में खिचड़ी क्यों खाई जाती है.
सालों पुरानी किदवंति है कि खिलजी के आक्रमण के दौरान नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का बिल्कुल समय नहीं मिलता था. इसके चलते योगियों को अक्सर भूखे ही सोना पड़ता था. इतना ही नहीं भोजन नहीं मिल पाने के कारण वह कमजोर हो रहे थे. इस समस्या का त्वरित हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था. इससे शरीर को उत्साह जनक मात्रा में उर्जा मिलती थी. नाथ योगियों को यह व्यंजन बेहद ही रास आया. बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा. गोरखपुर स्थिति बाबा गोरखनाथ के मंदिर के समीप मकर संक्रांति पर्व के दिन खिचड़ी मेला का आयोजन किया जाता है. इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसादी के रुप में भक्तों को वितरित किया जाता है.
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व
मकर संक्रान्ति के अवसर पर भारत के गुजरात प्रांत में पतंग उड़ाए जाने का रिवाज है. मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं. चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है. दूसरी ओर महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था. मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं.
इसे भी पढ़े :