Lal Mooli (Red Radish) Ki Kheti Kaise Kare – लाल मूली की खेती
लाल मूली की उन्नत खेती कैसे करें Lal Mooli (Red Radish) Ki Kheti Kaise Kare
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लाल मूली नाम सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन जो किसान हैं, वह इसके गुणों से भली भांती परिचित है। सालों पहले भारत के बिहार में की जाने वाली लाल मली की उन्नत खेती करीब-करीब विलुप्त हो चुकी है। जो लाेग अपनी सेहत को लेकर सचेत है, वही लोग इन दिनों लाल मूली की खेती करते है। आपकों जानकर हैरानी होगी कि, उच्च श्रेणी के सब्जी बाजार की दुकानों पर लाल मूली की कीमत 500 से 800 रुपए प्रति किलो में बेची जाती है। फाइव-स्टार होटल में लाल मूली की अधिक मांग रहती है। विटामिन से भरपूर इन लाल मूलियों को आमतौर पर सलाद, पराठे एवं कच्ची सब्जी के रूप में सेवन किया जाता है। इसका छिलका लाल रंग का जो तीखा न होकर कुरकुरा, मुलायम तथा खाने में बेहद ही स्वादिष्ट होता हैं ।
आपकों जानकर हैरानी होगी कि, लाल मूली की दो किस्में होती हैं जो गोलाकार तथा लम्बी आकार की होती हैं। इसका अधिकांश उपयोग सलाद व विवाहिक समारोह में भोजन की सजावट के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। लाल मूली को आमतौर पर कच्चा ही खाया जाता है। सफेद मूली की तरह इसमें तीखापन अधिक नहीं होता है। यह खाने में बेहद ही स्वादिष्ट होती है तथा इसमें पोषक-तत्वों की भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यदि लाल मूली का सेवन प्रतिदिन भोजन के पूर्व सलाद के रूप में किया जाए तो शीघ्र पाचन व रक्त का शुद्धीकरण होता है। यदि आप भी लाल मूली के गुणों का लाभ लेना चाहते हैं, तो इसका सेवन छिलका समेत करें।
लाल मूली की उन्नत खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु (Soil and Climate for Lal Mooli Kheti)
लाल मूली- सफेद मूली की भांति हल्की बलुई दोमट मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है। कृषि वैज्ञानिक लाल मूली को मेड़ों पर लगाने की सलाह देते हैं, कारण मिट्टी में मौजूद जीवांश-पदार्थों की मात्रा लाल मूली की फसल को पर्याप्त मात्रा में मिल सके। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6.5-7.5 के बीच होना आवश्यक है।
लाल मूली की फसल के लिए ठण्डी जलवायु का होना बेहद ही आवश्यकता है। इसका सीधा सा कारण यह है कि, यह एक शरद ऋतु की फसल है। जिसे ग्रोथ करने के लिए ठन्ड की अधिक जरूरत रहती है। अर्थात् 30-32 डी०सेग्रेड तापमान इसकी फसल के लिए उचित रहता है। वहीं दूसरी ओर 20- 25 डी०सेग्रेड के तापमान हो तो यह सोने पर सुहागा होता है। उक्त तापमान पर लाल मूली की फसल अधिक वृद्धि करती है।
लाल मूली की उन्नत खेती के लिए खेत की तैयारी (Lal Mooli Ki Kheti Ke Liye Khet Ki Taiyari)
यदि आप भी लाल मूली की फसल बुवाई की तैयारी कर रहे हैं तो इसके पूर्व आपकों खेत की 4-5 जुताइयों की आवश्यकता पड़ती है। कारण यह जड़ वाली फसल है जिसे भुरभुरी मिट्टी की जरूरत पड़ती है। इस प्रकार से 1-2 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा देशी हल या ट्रैक्टर ट्रिलर द्वारा करनी चाहिए। इस प्रकार से खेत का ढेले रहित व सूखी घास रहित होना जरूरी है । ढेले ना बनने हेतु प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाना आवश्यक है। मिट्टी बारीक रहे जिससे जड़ें अधिक वृद्धि करें ।
लाल मूली की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Red Radish)
लाल मूली- जोकि लम्बी एवं गोलाकार होती है । आमतौर पर इन्हें ही उगाया जाता है ये स्थानीय किस्मों को ही बोया जाता है जिससे अधिक उपज मिलती है ।
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1. रैपिड रेड वाइट ट्रिटड- लम्बी जड़ वाली 2. स्कारलेट ग्लोब- गोलाकार जड़ वाली ही प्रसिद्ध किस्में हैं ।
खाद एवं उर्वरकों की मात्रा (Quantity of Manure and Fertilizers)
सड़ी गोबर की खाद 8-10 टन प्रति हैक्टर तथा नत्रजन 80 किलो, फास्फोरस 60 किलो तथा पोटाश 60 किलो प्रति हैक्टर देना चाहिए । फास्फोरस व पोटाश एवं आधी नत्रजन बुवाई से पहले दें तथा शेष नत्रजन की बची आधी मात्रा को 15-12 दिन बाद टोप-ड्रेसिंग के रूप में खड़ी फसल में दें।
बीज की मात्रा (Seeds Rate)
बीज की मात्रा प्रति हैक्टर 8-10 किलो पर्याप्त होती है लेकिन बुवाई छिटककर करनी हो तो 12-15 किलो प्रति हैक्टर की आवश्यकता पड़ती है ।
बुवाई का समय एवं विधि (Sowing Time and Method)
बुवाई का उचित समय सितम्बर से अक्टूबर के बीच का होता है। इसकी बुवाई के लिए आपकों खेतों में मेड् बनाकर करना चाहिए। पाैधों को 6-8 इंच ऊंची तथा 10-12 इंच चौड़ी बनाकर ऊपरी सतह पर 10-12 सेमी. की दूरी पर बीज को 2-3 मिमी. की गहराई पर बोना चाहिए, ताकि, शत-प्रतिशत बीज अंकुरित हो सकें। ध्यान रहे बीजों को भूमी में अधिक गहराई पर ना डालें कारण गहरा बीज कम अंकुरित हो पाता है। मेड से मेड की दूरी 45 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 8-12 सेमी. रखते हैं ।
सिंचाई (Irrigation)
मूली को सबसे पहले पलेवा करके जुताई करें तब बीज को बोएं | जब बीज अंकुरित होकर 10-12 दिन की फसल हो जाए तो पहली बार सिंचाई करनी चाहिए तथा अन्य सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल से करनी चाहिए । इस प्रकार से 8-10 सिंचाई पर्याप्त होती हैं । पानी की मात्रा कम देते हैं जिससे मेड़ें डूब न पाएं।
निकाई-गुड़ाई (Hoeing)
इस फसल में अधिक निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। कारण यह है कि, लाल मूली की फसल 40 दिन में पकर तैयार हो जाती है। उक्त समयावधि में किसी प्रकार की कोई जंगली घास या पौधे नहीं उग पाते है। यदि उग भी जाते हैं तो उसे हाथ से उखाड़ा जा सकता है। इस प्रकार से आवश्यकता पड़ने पर जंगली घास निकालने के लिये एक-दो निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है ।
मिट्टी चढ़ाना (Earthing)
मूली बोने के लिए गूल बनाना आवश्यक हैं कारण यह जड़ वाली फसल है, इसकी पैदावार गूलों पर बोने से अधिक मिलती है । मिट्टी बाद में कम चढ़ाई जाती है। मोटे आकार की धूल पर अधिक बीज लगता है ।
मूली को उखाड़ना (Harvesting)
तैयार मूली को खेत में से निकालते रहना चाहिए । इस प्रकार से मूली की जड़ों को साफ करके पत्तियों सहित बाजार या सब्जी की दुकानों पर बिक्री के लिये भेजते हैं । ताकि जड़ व पत्तियां मुरझा ना पायें, ताजी बनी रहें ।
उपज (Yield)
उपज अच्छी देखभाल होने पर 20-25 क्विंटल प्रति हैक्टर तक पर्याप्त होती है । जड़ों को अधिक दिन की ना करें अन्यथा बीज से खराब हो जाती है । समय पर खोदना चाहिए ।
बीमारियां एवं कीट नियन्त्रण (Diseases and Insect Control)
बीमारी अधिकतर पत्तियों पर धब्बे लगाने वाली लगती है । जिसका-नियन्त्रण फफूंदीनाशक बेवस्टीन से बीज उपचारित करके बोयें तथा 0.2% के घोल का स्प्रे करें ।
कीट अधिक एफिडस, सुण्डी अधिक लगती है । रोकथाम के लिये रोगोर, मेलाथियोन का 1% का घोल बनाकर स्प्रे करने से नियन्त्रण हो जाता है ।
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