श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र के फायदे क्या है | Shree Shivay Namastubhyam Mantra
सनातन संस्कृति में अनादी काल से मंंत्रों का महत्व है. किसी भी पूजा की शुरुआत के पूर्व मंत्रोच्चार किया जाता है. भारतीय ऋषि मुनी आयुर्वेद और मंत्राें के बल पर किसी भी रोग को ठीक करने की शक्ति रखते थे. अंतराष्ट्रीय संत पंड़ित प्रदीप मिश्रा जी इन दिनों सनातन संस्कृति के मंत्राें का काफी प्रचार प्रसार कर रहे है. जिसमें एक पुराण का नाम शिव महापुराण है, जिसके एक मंत्र श्री शिवाय नमस्तुभ्यं को महामृत्युंजय मंत्र से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.
दोस्तों इस मंत्र के बारे में आपकाे शिशु ज्ञान है और आप नहीं जानते कि इस मंत्र का जाप करने से क्या-क्या फायदे मिलते है. तो आप फिक्र मत करिए, क्योंकि आज के इस लेख में हम आपको बताने वाले हैं श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र कहां से लिया गया है, श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र के फायदे क्या है, श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का जाप कैसे किया जाता है, श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का अर्थ क्या है. पोस्ट को पूरा पढ़ने के बाद आपकों अच्छे से ज्ञात हो जाएगा कि,श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र इतना महत्वपूर्ण क्यों है. तो चलिए जानते हैं. आशा करते हैं आप पोस्ट को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ेंगे.
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र कहां से लिया गया है? | Shree Shivay Namastubhyam Mantra
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बता दें कि, श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र शिव महापुराण से लिया गया है. इस मंत्र को शिवपुराण के नाम से भी जाना जाता है. शिव पुराण मूल रूप से भगवान शंभू को अर्पित है. इस पुराण में भगवान श्री शंकर की महिमा का विस्तार पूर्वक गुणगान किया गया है. जो भी भक्त शैव संप्रदाय से संबंध रखता है उसके लिए शिवपुराण बेहद ही खास और महत्वपूर्ण ग्रंथ है.
शिव पुराण में भगवान शंभू को प्रसन्न करने के लिए सभी पूजन विधियों का ज्ञान दिया गया है, और भगवान शिव जो कि त्रिदेवों में से एक है तथा जिन्हें संहार का देवता कहा जाता है, उन महाशिव को किस प्रकार प्रसन्न किया जाना है.
इसके बारे में सारी पूजन विधि और प्रक्रिया शिव पुराण में उल्लेखित है. भगवान शंभू को प्रसन्न करने के लिए एक महामंत्र या बीज मंत्र भी दिया गया है जिसे श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र के नाम से भी जाना जाता है.
जनश्रुतियों का मानना है कि, इस मंत्र के जाप करने से भगवान शंकर बेहद ही अत्यंत प्रसन्न होते हैं, और लोगों की मन वांछित इच्छाएं पूर्ण करते हैं. सनातन संस्कृति तथा पुराणों में यह उल्लेख मिलता है कि, भगवान शिव अत्यंत ही दयालु और भोले स्वभाव के महादेव है. जो अपने उपासकों की एक सच्ची पुकार पर प्रसन्न हो जाते हैं. लेकिन जब भगवान शिव को क्रोध आता है तबउनके क्रोध से किसी का भी बच पाना संभव होता है.
भगवान शिव के प्रिय मंत्र जिसे श्री शिवाय नमस्तुभ्यं के नाम से जाना जाता है वह शिव महापुराण से लिया गया है. शिव पुराण में भगवान शिव के बारे में सभी बातें गहन शोध के बाद लिखी गई, जैसे कि उनका जीवन, उनका रहन-सहन, उनका विवाह व उनकी संतान और उनके बारे में सारी जानकारी दी गई है. क्या आपकों पता है कि, शिवपुराण को छह खंडों में तथा 24000 श्लोकों में विभक्त यानी बांटा गया है. शिवपुराण को निम्नलिखित छह खंडों में विभक्त किया गया है:-
- विद्येश्वर संहिता
- रूद्र संहिता
- कोटी रूद्र संहिता
- उमा संहिता
- कैलास संहिता
- वायु संहिता
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का अर्थ क्या है?
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का अर्थ यह होता है कि “हे शिव आपको मैं नमस्कार करता हूं, या श्री शिव को मेरा नमस्कार है.” भगवान शिव को नमन करने के संदर्भ में इस बीज मंत्र का अर्थ समर्पित है.
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र के फायदे क्या है?
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र के कई फायदे शिवपुराण में उल्लेखित हैं, जो कि कुछ इस प्रकार हैं-
- शिव पुराण में विस्तार पूर्वक बताया गया है कि शिव का यह मंत्र अत्यंत ही प्रभावशाली है और महामृत्युंजय मंत्र के बराबर है.
- लोक मान्यता है कि, मंत्र के जाप करने से आपको 1000 महामृत्युंजय मंत्र जाप करने का लाभ मिलता है.
- इस मंत्र के उच्चारण से किसी भी व्यक्ति को सुख शांति धन समृद्धि इन सब का लाभ होता है.
- यह मंत्र के जाप करने से मन प्रफुल्लित हो जाता है.
- व्यक्ति के जीवन की सारी बाधाएं हट जाती है.
- यदि आप कोई शुभ कार्य करने जा रहे हैं तो आपको निश्चित रूप से ही इस मंत्र का जाप करना चाहिए. इससे आपकों कार्य में सफलता हासिल होगी.
- यदि आपको कोई पुराना रोग है और आप किसी बीमारी से त्रस्त हैं तो श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र के जाप से आप तो पुराने रोग से छुटकारा मिलता है.
- किसी भी व्यक्ति का दिमाग किस मंत्र के जाप करने से शांति और सकता है.
- मानसिक विकारों से मुक्ति मिल जाती है.
- यदि आप आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं तो आपको उससे छुटकारा मिलता है.
- आपको पैसे का धन का समृद्धि का लाभ होता है.
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का जाप कैसे किया जाता है?
मित्रों, श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र अत्यंत ही गुणकारी है। लेकिन यदि इस मंत्र का जाप सही ढंग से ना किया जाए तो उसका फल नहीं मिलता है, इस मंत्र का जाप कैसे किया जाना चाहिए हमने आपको नीचे विस्तार से बताया है-
- सबसे पहले आपको स्नान करना है.
- स्नान करने के बाद इस शक्तिशाली मंत्र का जाप करने के लिए जिस आसन पर आप बैठे हैं, वह आसन साफ सुथरा होना चाहिए.
- आपको वह आसन उपयोग करना है जो मूल रूप से जमीन से जुड़ा हो, जैसे की चटाई या कोई कपड़ा.
- इसके पश्चात आपको इस मंत्र का उच्चारण या जाप मूल रूप से प्रातः काल में करना चाहिए.
- वैसे तो इस मंत्र का उच्चारण आप कभी भी कर सकते हैं.
- जहां तक हो सके आपको शिव की प्रतिमा अपने समक्ष रखनी चाहिए और उसके बाद मंत्र का जाप करना चाहिए.
- आपको यह बातें विशेष ध्यान में रखनी है कि आपके मंत्रों का उच्चारण बिल्कुल सही होना चाहिए.
- साथ ही साथ मंत्र का उच्चारण करते समय आपको विशेष रूप से अपने मन में किसी के लिए द्वेष या क्रोध नहीं रखना है.
- एक बार में आपको 108 बार इस मंत्र का जाप करना है.
- केवल 108 बार इसका जाप करने से आपको 108000 बार मृत्युंजय मंत्र का जाप करने का फल मिलता है.
निष्कर्ष
आज के लेख में हमने जाना कि श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र के फायदे क्या है, श्री शिवाय नमस्तुभयम मंत्र का जाप कैसे करना चाहिए। साथ ही हमने आपको यह भी बताया कि इस मंत्र का अर्थ क्या है। इसके अलावा हमने आपको श्री शिवाय नमस्तुभ्यं के मंत्र के बारे में करीब-करीब सारी जानकारी प्रदान की है.
FAQ
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं का जाप कब करना चाहिए?
यदि शिव की पूजा के दौरान किसी भी समय हम दिल से चाहते हैं कि वह शिव को स्वीकार करें, तो उस समय हमें श्री शिवाय नमस्तुभ्यं का जाप करते रहना चाहिए।
श्री शिवाय नमस्तुभयम का अर्थ क्या है?
उन्होंने कहा कि भगवान शिव को आडंबर नहीं है, वह मृतकों की राख पहनते हैं क्योंकि एक व्यक्ति मृत्यु के बाद, जलने से पहले, उपस्थित लोगों को राम का नाम देता है। जिसके कारण भगवान राम का नाम लिया जाता है, वह शरीर राम माया हो जाता है।
शिव पुराण का मूल मंत्र क्या है?
शिवजी की आराधना का मूल मंत्र तो ऊं नम: शिवाय ही है लेकिन इस मंत्र के अतिरिक्त भी कुछ मंत्र हैं जो महादेव को प्रिय हैं. नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय| नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
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