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लोहड़ी माता की कथा – लोहड़ी क्यों मनाई जाती है?

Lohri 2023 in Hindi :- दोस्तों क्या आपने आज से पहले कभी लोहड़ी माता की कथा कहीं पर सुनी है? यदि नहीं सुनी तो आपके लिए यह पोस्ट बेहद ही रोचक होने वाला है। भारत को दुनिया में त्यौहारों के देश के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे का मूल कारण है कि, यहां पर विभिन्न धर्मों के लोगों का एक साथ निवास करना और उनके द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार के त्यौहार मनाया जाना है। सभी धर्मों में त्यौहारों की अपनी अलग महत्वता है।

इन्हीं त्यौहारों की सूची में एक त्यौहार है लोहड़ी जिसे उत्तर भारत में बहुत ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी त्यौहार मूल रूप से पंजाब में पंजाबियों के द्वारा मनाया जाता है। हालांकि सैकड़ों हिन्दू लोग भी इस पर्व को आदर के साथ मनाते हैं।

इसलिए आज हमने सोचा क्यों ना आप लोगों को लोहड़ी माता की कथा के बारे में बेहद ही रोचक जानकारी प्रदान कि जाए। जिससे की आपको भी लोहड़ी माता की कहानी के बारे में पता चल सके. तो फिर चलिए देर ना करते हुए शुरू करते हैं।

लोहड़ी क्या है – What is Lohri 2023 in Hindi

जैसा कि हम सभी अच्छे से जानते हैं कि, भारत में दर्जनों त्यौहार मनाये जाते हैं। उन्ही में से एक त्यौहार है लोहड़ी जिसे हर वर्ष मकर संक्रांति के पहले 12 या 13 जनवरी को मनाया जाता है। यह पर्व उत्तर भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है। जिसे लोहड़ी माता सती की याद में मनाई जाती है लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य सभी के साथ घुल मिलकर शीत ऋतु की सबसे बड़ी रात को सबके साथ मिलकर जश्न मनाना है।

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Lohri

लोहड़ी पर्व मनाए जाने के पीछे बहुत से मत है. लोहड़ी पर्व के पीछे जो सबसे प्रमुख पौराणिक मान्यता है वह यह है कि लोहड़ी की आग दक्ष प्रजापति की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है. एक अन्य मत की मानें तो मान्यता हैं कि, श्री कृष्ण जी ने इस दिन लोहित नाम की राक्षसी का वध किया था.

सिंधी समाज में मकर संक्रांति के एक दिन पहले लोहड़ी पर्व लाहलोही के रूप में मनाया जाता हैं. लोहड़ी पर्व को दुल्ला भट्टी की भी एक कहानी से जोड़ा जाता है. पंजाब में पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और कटाई से संबंधित एक प्रमुख त्यौहार है और इस दिन फसलों की भी पूजा की जाती है.

लोहड़ी का मतलब क्या है?

लोहड़ी क्या होता है? लोहड़ी शब्द ल+ओह+ड़ी से मिलकर बना है जिसें ल से आशय है लकड़ी, ओह से गोहा (सूखे उपले), ड़ी से आशय है रेवड़ी. लोहड़ी त्यौहार लकड़ी, सूखे उपले और रेवड़ी का त्यौहार है.

लोहड़ी के दिन पूरे माेहल्ले के युवक-युवतियों द्वारा सूखे उपले एक स्थान पर एकत्र किए जाते हैं. जिसके बाद देर रात उसे जलाया जाता है. उस आग के आसपास सभी मोहल्ले के लोग घूमते है और युवक-युवतियां पारंपरिक नृत्य भी करते हैं.

लोहड़ी 2023 क्यूँ मनाया जाता है?

लोहड़ी का पर्व क्यूँ मनाया जाता है के पीछे का कारण काफी रोचक है. एक पौराणिक कथा में उल्लेख मिलता है कि, राजा दक्ष प्रजापति ने अपने यहां एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन करवाया था। जिसमें दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर जी को आमंत्रित नहीं किया था। क्योंकि दक्ष प्रजापति शंकर जी को पसंद नहीं करते थे।

इस अपमान को माता सती बदार्शत नहीं कर पाई और यज्ञ की हवन में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी तब से माता सती की याद में हर वर्ष लोहड़ी मनाई जाती है. इसलिए लोहड़ी के पर्व में आग का काफी ज्यादा महत्व रहा है।

लोहड़ी को कब मनाया जाता है?

हर वर्ष लोहड़ी को जनवरी माह में मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से पंजाबियों का है और पंजाब में इसे बहुत ही जश्न के साथ मनाया जाता है।

लोहड़ी पर्व को भारत में कहाँ कहाँ पर मनाया जाता है?

दोस्तों वैसे तो लोहड़ी का पर्व पूरे भारतवर्ष में ही उत्साह के साथ मनाया जाता है, लेकिन इसे मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, बंगाल और उड़िसा में भी मनाया जाता है। पंजाब में ये त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, पंजाबी लोग लोहड़ी के दिन आग के चारो ओर घूम घूम कर भंगड़ा करते हैं। इस दिन पंजाब में अवकाश घोषित रहता है।

क्या लोहड़ी को दुसरे देशों में भी मनाया जाता है?

जी हां. आपको यह बात सुनकर ताज्जुब हो सकता है की, लोहड़ी त्यौहार को भारत के अलावा भी अमेरिका, स्विट्जरलैंड और कनाडा जैंसे देशों  में भी उत्साह के साथ मनाया जाता है।

लोहड़ी पर्व कैसे मनाया जाता है?

लोहड़ी के दिन सभी रात्रि में एकत्रित होकर किसी खाली जगह में उपले और लकड़ियों को एक स्थान पर एकत्र कर आग लगते हैं, युवक युवतियां, बच्चे सभी गाने गाते हैं और उस आग के चारों तरफ घूम घूम कर भांगड़ा करते हैं और जश्न मनाते है।

अंतिम में लोग उस आग में से अंगारे अपने घर प्रसाद के तौर पर ले जाते हैं। लोहड़ी की आग बहुत ही पवित्र मानी जाती है। लोहड़ी की रात शीतकाल की सबसे लंबी रात मानी जाती है और लोहड़ी मकर संक्रांति के पहले आती है।

लोहड़ी के दिन नवविवाहित जोड़ों के सुखद दाम्पत्य की कामना की जाती है और नवजात शिशु के अच्छे भविष्य की प्रार्थना की जाती है. लोहड़ी त्यौहार ख़ुशीहाली भरा त्यौहार हैं, एकता का प्रतीक है, जश्न का प्रतीक है। इस शुभ दिन सभी एक जगह पर एकत्र होकर उत्साह मनाते हैं, भांगड़ा करते हैं, गीत गाते हैं और रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाते हैं. पहले के मुकाबले लोहड़ी अब काफी अच्छे तरीके से मनाया जाने लगा है।

लोहड़ी बंपर पंजाब 2023

लोहड़ी के अवसर पर लोहड़ी बंपर पंजाब 2019 काफी ज्यादा लोकप्रिय है पंजाबियों के बीच. क्यूंकि ये बम्पर lottery में लोगों को ढेरों चीज़ें जितने का अवसर प्राप्त होता है. वहीँ इसमें कुछ पैसों से वो टिकट खरीद लेते हैं। वहीं अपनी तक़दीर check करते हैं इस lottery में, यदि भाग्य ने साथ दिया तब उन्हें आसानी से बहुत से prizes भी जितने को मिल जाता है।

लोहड़ी पर्व में क्या करते हैं?

लोहड़ी पंजाब का प्रसिद्ध त्यौहार है, पंजाब में लोग लोहड़ी के दिन अपने मोहल्ले में घूम घूम कर घरों से उपले (गोबर के कंडे) और लकड़ियां इकट्ठे करते हैं और उन्हें किसी खाली स्थान में जमाते हैं।

रात्रि में मोहल्ले के सारे लोग इकठ्ठे होकर उसमे आग लगाकर उसमें रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि की आहुति देते हैं।आहुति देने के बाद रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि को प्रसाद के तौर पर ग्रहण भी किया जाता है

जिन घरों में नवविवाहित जोड़ा हो या नवजात बच्चा हो उन घरों से रेवड़ी, मूंगफली, लावा, लकड़ी आदि के लिए चंदा भी इकट्ठा किया जाता है। पंजाब और हरियाणा में नवविवाहित और नवजात बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत अधिक शुभ मानी जाती है और उत्साह के साथ मनाई जाती है।

सभी लोग लोहड़ी के दिन मिल जुलकर नाच गाना करते हैं रेवड़ी, मूंगफली आदि खाते हैं. लोहड़ी के दिन नावविवाहित युवती को उसके घर से ‘त्यौहार‘ भेजा जाता है, यहां ‘त्योहार’ से मतलब रेवड़ी, फल, मिठाई, कपड़ों आदि से है।

लोहड़ी माता की कथा – उत्पत्ति कैसे हुई?

हिंदू धर्म में प्रचलित पौराणिक लोक कथा के अनुसार  लोहड़ी की आग दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती की याद में जलाई जाती है। दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती कोई और नहीं बल्कि शंकर जी की अर्धांगिनी मां पार्वती थी।

किवदंति है कि, दक्ष प्रजापति ने अपने यहां एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन करवाया था। जिसमें दक्ष प्रजापति ने आदि शंकर महादेव को आमंत्रित नहीं किया था। क्योंकि दक्ष प्रजापति शंकर जी से नफरत करते थे। इस अपमान को माता सती नहीं झेल पाई और यज्ञ की हवन में अपनी आहुति दे दी। जिसके बाद से माता सती की याद में हर वर्ष लोहड़ी मनाई जाती है। लोहड़ी है वर्ष जनवरी माह में मनाई जाती है। लोहड़ी हर वर्ष मकर संक्रांति के पहले मनाई जाती है।

एक और मान्यता के अनुसार लोहड़ी को दुल्ला भट्टी से जोड़ा जाता है। लोहड़ी के दिन जितने भी गीत गाये जाते हैं सभी मे दुल्ला भट्टी का उल्लेख जरूर मिलेगा।

दुल्ला भट्टी मुगल शाषक अकबर के समय का विद्रोही था जो कि पंजाब में रहता था। दुल्ला भट्टी के पुरखे भट्टी राजपूत कहलाते थे। उस समय लड़कियों को गुलामी के लिए अमीर लोगों के बीच बेचा जाता था। दुल्ला भट्टी ने न केवल उन लड़कियों को बचाया बल्कि उनकी शादी भी कराया। दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत इस काम मे रोक भी लगाई और दुल्ला भट्टी गरीब लड़कियों की शादी अमीर लोगों को लूटकर कराता था।

अन्य पौराणिक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, लोहड़ी के दिन कंश ने श्रीकृष्ण जी को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था जिसे श्रीकृष्ण जी ने खेल खेल में ही मार दिया था इसीलिये लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।

लोहड़ी पर्व का मुख्य प्रसाद क्या है?

लोहड़ी पर्व का मुख्य प्रसाद है रेवड़ी, मूंगफली, लावा.

लोहड़ी का त्यौहार कब मनाया जाता है?

लोहड़ी का त्यौहार हर वर्ष पौष माह के आखिरी दिन, माघ माह से पहली रात को मकर संक्रांति के पहले मनाया जाता है। लोहड़ी हर वर्ष जनवरी माह में 12 या 13 तारीख को मनाया जाता है।

लोहड़ी का त्यौहार किस राज्य में सबसे धूमधाम से मनाया जाता है?

लोहड़ी का त्यौहार भारत के पंजाब में सबसे धूमधाम से मनाया जाता है।

लोहड़ी के बाद कौन सा त्यौहार मनाया जाता है?

लोहड़ी के ठीक बाद भारत में प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाती है।

आज आपने क्या सीखा ?

दोस्तों मुझे पूरा विश्वास है कि, आपको मेरा यह लेख लोहड़ी माता की कथा – क्यों लोहड़ी मनाई जाती है जरुर पसंद आई होगी। मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है की readers को लोहड़ी माता की जीवन गाथा के विषय में पूरी जानकारी प्रदान की जाए। ताकि उन्हें किसी अन्य sites या internet में उस article के सन्दर्भ में खोजने की जरुरत ही नहीं है।

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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