शुक्रताल का इतिहास एवं इससे जुड़ी मान्यताएं क्या हैं (Shukratal Temple (Muzaffarnagar UP) History in hindi)
अनादि काल से ही भारतवर्ष में आस्था के प्रति लोगों का ह्दय से लगाव रहता है. भारतवर्ष का प्रत्येक हिंदू वर्ग अपनी धार्मिक मान्यताओं को और संस्कृति सभ्यताओं को पूरा करने एवं उसको सजाने के प्रति हमेशा सहज रहता है. आज हम पोस्ट के जरिए जानेंगेमहाभारत काल से जुड़ी हुई कुछ ऐसी ही एक धार्मिक स्थल के बारे में जो आज के समय में भी लोगों द्वारा इसके बारे में सुनने और कहने को मिलता है. राजधानी दिल्ली से करीब 150.2 किलोमीटर दूर स्थित उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में शुक्रताल नामक एक तीर्थ स्थल मौजूद है. किवदंती है, कि इस तीर्थ स्थल की कहानी करीब महाभारत काल से जुड़ी हुई है. दोस्तों यदि आप भी इस अनकही एवं अनसुनी धार्मिक तीर्थ स्थल के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप हमारे इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें.
शुक्रताल का इतिहास क्या कहता है ?
मुजफ्फरनगर में स्थित शुक्रताल नामक तीर्थ स्थल पर भारत के हर एक प्रांत से श्रद्धालु स्नान करने आते हैं. खास बात यह है कि, मुजफ्फरनगर के शुक्रताल तीर्थ स्थल पर अक्षवत नामक वृक्ष है, जो अपनी विशाल जताएं फैलाए हुए हैं.
यह पवित्र वृक्ष बहुत ही पुराना एवं प्राचीन काल का है. इस धार्मिक वृक्ष को श्रद्धालु जन पूजते एवं श्रद्धा सुमन करते हैं. इस तीर्थ स्थल पर मोक्ष के लिए समय-समय पर भागवत गीता का आयोजन किया जाता है और यहां पर भागवत कथाएं भी कहीं एवं सुनाई जाती हैं.
यहां का पूरा परिचय एक तीर्थ स्थल के रूप में ही विख्यात है. इस धार्मिक स्थल पर अनेकों प्राचीन मंदिर, धर्मशालाएं, समागम आदि स्थापित किए गए हैं. प्राचीन काल में धर्मस्थल गंगा नदी के बिल्कुल समीप था और वहां से गंगा नदी का प्रवाह हुआ करता था. मगर इस समय में गंगा नदी इस धार्मिक स्थल से काफी दूर हो चुकी हैं. इस धार्मिक स्थल में मंदिरों का दर्शन करने के लिए काफी सीढ़ियां चढ़कर जाना होता है. काफी सीढ़ियां चढ़ने के बाद आप ऊपर चढ़कर मंदिर में पूजा पाठ एवं देवी देवताओं के दर्शन कर सकते हैं
शुक्रताल धार्मिक स्थल के बारे में पौराणिक एवं धार्मिक कथाएं क्या कहते हैं ?
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भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर नामक शहर में शुक्रताल नामक एक पौराणिक एवं ऐतिहासिक तीर्थ स्थल मौजूद है. स्थानीय धार्मिक कथाओं के अनुसार वर्तमान काल से करीब 5000 साल पूर्व में महाभारत के काल में हस्तिनापुर के तत्कालीन महाराज पांडव वंशज राजा परीक्षित को शराब मुक्ति हेतु.
यहां के गंगा किनारे में स्थित अक्षवत वृक्ष है और इसी वृक्ष के नीचे करीब 5000 सालों पूर्व राजा परीक्षित को श्राप मुक्ति दिलाने के लिए को 88000 ऋषि-मुनियों एवं स्वयं सुखदेव जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा को सुनाई थी.
कहा जाता है कि राजा परीक्षित के द्वारा एक अनजाने में गलती हो गई थी, जिससे उनको एक ऋषि के पुत्र ने सर्प मृत्यु का श्राप दे दिया था. श्री सुखदेव मुनि ने पांडव वंश के राजा परीक्षित को श्राप मुक्ति हेतु अक्षवत वृक्ष के नीचे 88 हजार ऋषि-मुनियों के साथ श्रीमद्भागवत गीता का कथा सुनाया था और राजा परीक्षित को श्राप से मुक्ति दिलाया था.
धार्मिक वट वृक्ष के बारे में क्या और कथाएं एवं मान्यताएं हैं ?
शुक्रताल के धार्मिक स्थल पर प्राचीन काल से विराजमान वट वृक्ष की पूजा अर्चना आज भी हिंदू श्रद्धालु लोग करते हुए नजर आते हैं. यह धार्मिक वृक्ष आज भी अपनी मान्यताओं और अपनी मनमोहक छटा विराजे हुए इस स्थल का धार्मिक महत्व बनाए रखे हैं. इस वटवृक्ष से संबंधित यदि हम बात करें तो कहा जाता है, कि जब सभी वृक्षों के पत्ते सूख कर जमीन पर गिरने लगते हैं, तब भी यह वृक्ष हरा भरा रहता है सीधे शब्दों में कहे तो इस वृक्ष के पत्ते कभी भी सूखते ही नहीं हैं.
इस धार्मिक वट वृक्ष को लेकर क्या पौराणिक एवं आधुनिक मान्यताएं हैं ?
शुक्रताल में मौजूद यह धार्मिक वृक्ष बहुत ही पुराना एवं प्राचीन काल का है. धार्मिक वृक्ष अनादि काल का होने के बावजूद भी बहुत ही नए वृक्ष के समान ही दिखाई देता है.
इस धार्मिक स्थल के बारे में यदि हम आपको और बताएं तो इस धार्मिक वृक्ष के लगभग 200 मीटर की दूरी पर एक कुआं स्थित है और लोगों के अनुसार यह पांडव कालीन काल का कुआं है.
इस धार्मिक स्थल के स्थानीय निवासी बताते हैं कि यह बहुत ही प्राचीन एवं धार्मिक स्थानों में से एक है, मगर दुर्भाग्य से यहां की सरकारें इसके प्रचार-प्रसार का कार्यभार नहीं उठाती हैं.
मगर इसके बावजूद इस धार्मिक स्थल के पीठाधीश्वर ओमानंद महाराज बताते हैं कि इस धार्मिक स्थल की पूजा अर्चना एवं दर्शन करने हेतु कई श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आते रहते हैं. पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद बताते हैं , कि यहां पर श्रद्धालु आकर श्रीमद्भागवत गीता एवं सत्यनारायण भगवान की कथा भी रुक कर करीब 1 हफ्तों तक कहते एवं सुनाते हैं.
इस स्थान पर आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु इस धार्मिक वृक्ष के नीचे श्रीमद्भागवत गीता एवं सत्यनारायण भगवान का कथा सुनता है और कहता है. ऐसा कहते हैं कि जो भी श्रद्धालु अपने सच्चे मन एवं हृदय से इस प्राचीन एवं धार्मिक वट वृक्ष के नीचे धागा बांधकर कोई भी मनोकामना मानते हैं , तो उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है और जो भी श्रद्धालु सच्चे हृदय से यहां पर बैठकर सत्यनारायण भगवान या श्रीमद् भागवत कथा तो कहता सुनाता है, वह परम मोक्ष को भी प्राप्त होता है.
आज हम आपसे यह निवेदन करते हैं, कि हमारे द्वारा प्रस्तुत यह धार्मिक लेख आप सभी लोगों को अपने मित्र जन एवं परिजनों के साथ अवश्य साझा करें. आप जितना इस लेख को फैलाएंगे उतना ही इस धार्मिक स्थल के बारे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो सकेगी. यदि आपके शहर, गांव या कस्बे से जुड़ी कोई प्राचीन धार्मिक कहानी हो तो हमें इस नंबर 7000019078 पर वाट्सएप करें.
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