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डायन प्रथा – 15वीं शताब्दी में हारांगुल गांव से हुई थी शुरुआत

Real Daayan Story in Hindi : भारत में सदियों से जादू-टोना और डायनों के किस्से सुनने को मिलते हैं. आज हम आपको एक ऐसे गांव की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि, आज से करीब 500 साल पहले काले जादू के बल पर औरतों के डायन बनने की शुरुआत हुई थी. दोस्तों इस पोस्ट में हम पहले यह स्पष्ट कर दें कि, हम किसी भी प्रकार के अंधविश्चास का समर्थन नहीं कर रहे हैं, यह पोस्ट महज शोध और किवदंतियाें पर आधारित हैं. बस हम आपको एक मिथक से परिचित करवाना चाहते है. पूरे भारत में विशेषकर बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में डायन के नाम पर कमजोर महिलाओं पर बहुत जुल्म किये जाते है. कई मामलों में तो गांववालों द्वारा डायनों को मार दिया जाता है.

हारांगुल गांव, लातूर, महाराष्ट्र (Harangul, Latur Maharashtra) :-

महाराष्ट्र प्रांत के लातूर जिले में मौजूद हारांगुल गांव के बारे में मान्यता है कि, यहीं से काले जादू की सबसे क्लिष्ट और खतरनाक परंपरा डायन प्रथा की शुरूआत हुई थी. वैसे तो इस मामले में बंगाल के काले जादू का भी उल्लेख मिलता है, लेकिन मगर माना जाता है कि डायन प्रथा की वास्तविकता में शुरुआत इसी गांव से हुई थी.

करीब 15वीं शताब्दी में पहली बार यह प्रथा इस गांव से शुरू हुई. जिसके बाद से आज तक इस गांव में कोई चैन से नहीं सो सका है. दरअसल डायन प्रथा के यहां शुरू होने से काले जादू के बल पर आम महिलाओं के डायनों में परिवर्तित हो जाने के बाद इस गांव की पहचान हमेशा-हमेशा के लिए बदल गई.

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प्रतिकात्मक तस्वीर

सबसे पहले एक महिला डायन बनी. जिसके बाद से एक पूरा का पूरा कस्बा डायनों का बन गया. शुरू में तो भोले-भाले गांव वालों को इस सब के बारे में कुछ समझ न आया पर जब इन डायनों का साया यहां गहराने लगा तब गांव वालों को इस बात का एहसास हुआ कि वे किस बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं.

डायनों ने अब शिकार करना शुरू कर दिया. पहले तो उन्होंने अपने घरों को निशाना बनाया. फिर देखते-देखते पूरे गांव को ही उसने अपनी गिरफ्त में कैद कर लिया.

डायनों का प्रकोप भी धीरे-धीरे बढ़ने लगा. अब तक जो काम छुप-छुपकर रात के अंधेरों में हो रहा था वो अब दिन के उजालों में भी बदस्तूर जारी हो गया. गांव में दुखों का पहाड़ टूट गया.

जवान लड़के डायनों के पेड़ के आस-पास मृत लटके पाए जाने लगे. इसके पीछे सच्चाई सामने आई कि डायनों ने गांव के इन नौजवान कुंआरे लड़कों को पहले अपने प्रेमजाल में फांसा, उनके साथ शारीरिक संबंध बनाए और फिर उनका खून चूस कर अपनी प्यास मिटाई. साथ ही उनके रक्त का इस्तेमाल तांत्रिक सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए किया गया.

यह सब होने के बाद गांव वालों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. ग्रामीणों ने डायनों को पेड़ों में बांघकर जिंदा जलाना शुरू कर दिया. मरते-मरते इन डायनों ने कहा कि वे लौटकर आएंगी और जो अपना बदला लेगी. इस घटना को हुए सैकड़ों साल हो गए हैं पर आज भी इस गांव में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो वर्जित हैं.

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प्रतिकात्मक तस्वीर

इसके पीछे पौराणिक मान्यता है कि यदि इन दिशा निर्देशओं का पालन किसी ने नहीं किया तो ये डायन वापस आ जाएंगी. इसी के चलते इस गांव में आज भी पेड़ों पर कील ठोंकना, पेशाब करना, थूकना या रात को पेड़ों के पास सोने की मनाही है.

महाराष्ट्र के इस गांव में आज भी मान्यता है कि रात में इन डायनों की आत्माएं लोगों को आकर्षित करने की कोशिश करती हैं. अब वे पहले जितनी ताकतवर तो नहीं रहीं कि सीधे तौर पर किसी को नुकसान पहुंचा सकें पर जो कोई भी इनके द्वारा डाले गए डोरे में फंस जाता है उसका बड़ा ही बुरा हर्ष होता है.

इस गांव की इन्हीं खासियतों की वजह से यहां की डायनों पर कई टीवी सीरियल बन चुके हैं. कहा तो यहां तक जाता है कि एकता कपूर को भी एक थी डायन का कॉन्सेप्ट यहीं से मिला.

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Ravi Raghuwanshi

रविंद्र सिंह रघुंवशी मध्य प्रदेश शासन के जिला स्तरिय अधिमान्य पत्रकार हैं. रविंद्र सिंह राष्ट्रीय अखबार नई दुनिया और पत्रिका में ब्यूरो के पद पर रह चुकें हैं. वर्तमान में राष्ट्रीय अखबार प्रजातंत्र के नागदा ब्यूरो चीफ है.

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