प्राचीन समय की बात है। एक महिला ने खर जिउतिया व्रत के दिन बासी मुंह भोजन कर लिया। उस दिन जिउतिया व्रत था। परिणाम यह निकला कि महिला के बेटे को एक विशालकाय सर्प ने निकल लिया। बेटे के वियोग में महिला ने दूसरे साल दोबारा खर जिउतिया व्रत किया। विधि विधान से व्रत पूरा करने के बाद बेटा जिवित होकर घर लौट आया।
जिउतिया व्रत कथा- jivitputrika vrat
खर जिउतिया व्रत के दिन महिला ने भूलवश भोजन कर लिया। महिला का बेटा जंगल गया तो उसे एक विशाल काय सर्प ने निगल लिया। देर शाम तक बेटा घर नहीं लौटा। गांव के लोगों ने महिला को बताया कि उसके बेटे को सर्प ने निगल लिया है। वह मर चुका है अब दोबारा लौटकर नहीं आएगा।
देर रात महिला को उसके बेटे ने स्वप्न दिखाया। बेटे ने कहा मां तूमने जितिया के दिन चावल का माड पी लिया। जो कि बहुत गलत बात है। मां ने बेटे से माफी मांगते हुए। उपाय पूछा।
जिउतिया व्रत कथा jivitputrika vrat
बेटे ने बताया कि मां अगले साल तुम पूरे विधि विधान के साथ खर जिउतिया व्रत करना। पारण के दिन मुंह हाथ धोकर दोबार चावल का माड पीना। एक साल बीत गया। खर जिउतिया पर्व भी आया। महिला ने व्रत किया।
बेटे के कहे अनुसार मां ने पारण करते समय चावल का माड पीया। महिला ने माड को फूंक-फूंककर पीया। माड खत्म होते ही महिला का मृत बेटा जीवित हो उठा। इसलिए इसे जीत्वपुत्रिका या खर जिउतिया व्रत कहा जाता है।
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