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येरुशलम का इतिहास: जानें दुनिया के सबसे पवित्र और विवादित शहर की पूरी कहानी

येरुशलम का इतिहास: जानें दुनिया के सबसे पवित्र और विवादित शहर की पूरी कहानी (A to Z गाइड)

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लेखक के बारे में:
यह लेख इतिहासकार डॉ. आरिफ खान (मध्य-पूर्वी इतिहास में विशेषज्ञता), धर्मशास्त्री प्रोफेसर एलिजाबेथ मैथ्यूज (तुलनात्मक धर्म में पीएचडी), और भू-राजनीतिक विश्लेषक श्री. सिद्धार्थ वर्मा के संयुक्त शोध पर आधारित है। इस लेख में दी गई जानकारी इजराइल पुरावशेष प्राधिकरण (Israel Antiquities Authority)ब्रिटिश संग्रहालय के अभिलेखागार, और प्रमुख अकादमिक प्रकाशनों जैसे विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है, ताकि पाठकों को एक निष्पक्ष, गहन और प्रामाणिक दृष्टिकोण मिल सके।


दुनिया के नक्शे पर कुछ ऐसे शहर हैं जो सिर्फ ईंट और पत्थर की इमारतें नहीं, बल्कि सभ्यताओं की आत्मा होते हैं। वे समय के गवाह होते हैं, साम्राज्यों के उत्थान और पतन को देखते हैं, और मानवता की आस्था और संघर्ष की कहानियों को अपनी गलियों में समेटे रहते हैं। येरुशलम (Jerusalem) ऐसा ही एक शहर है। यह सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि एक विचार है, एक आस्था है, और एक ऐसा केंद्र बिंदु है जहाँ दुनिया के तीन सबसे बड़े अब्राहमिक धर्म – यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम – आकर मिलते हैं।

येरुशलम का इतिहास लगभग 5000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। यह एक ऐसा शहर है जिसे इतिहास में किसी भी अन्य शहर से अधिक बार नष्ट किया गया और फिर से बनाया गया। इस पर अनगिनत बार विजय प्राप्त की गई, और यह अनगिनत युद्धों का कारण बना। आज भी, यह दुनिया के सबसे जटिल और संवेदनशील भू-राजनीतिक विवादों में से एक का केंद्र है।

लेकिन यह शहर इतना महत्वपूर्ण क्यों है? क्यों तीन अलग-अलग धर्म इसे अपना सबसे पवित्र स्थान मानते हैं? आइए, इस विस्तृत लेख में हम येरुशलम का इतिहास की धूल भरी परतों को हटाते हैं और कांस्य युग की इसकी पहली बस्तियों से लेकर आज के आधुनिक संघर्षों तक की इसकी असाधारण यात्रा को समझते हैं।

प्रारंभिक इतिहास: कनानियों से राजा दाऊद तक (3000 ई.पू. – 1000 ई.पू.)

येरुशलम का लिखित इतिहास भले ही बाद में शुरू हुआ हो, लेकिन पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि यहाँ कांस्य युग (लगभग 3000 ई.पू.) में ही मानव बस्तियाँ बस चुकी थीं।

  • कनानी शहर ‘रुशालिमम’: इसके शुरुआती निवासी कनानी (Canaanites) थे, जो एक सेमिटिक जनजाति थी। उन्होंने इस शहर को “रुशालिमम” नाम दिया, जिसका अर्थ संभवतः “शालिम (एक कनानी देवता) की नींव” था।
  • राजा दाऊद की विजय: येरुशलम का इतिहास में सबसे बड़ा मोड़ लगभग 1000 ई.पू. में आया जब, बाइबिल के अनुसार, राजा दाऊद (King David) ने जेबुसाइट्स (एक कनानी जनजाति) से इस शहर पर विजय प्राप्त की। उन्होंने इसे एकजुट इज़राइली राजशाही की राजधानी बनाया। दाऊद ने इस शहर को न केवल एक राजनीतिक केंद्र बनाया, बल्कि इसे यहूदी धर्म का आध्यात्मिक केंद्र भी स्थापित किया।

प्रथम मंदिर काल: राजा सोलोमन का गौरव (1000 ई.पू. – 586 ई.पू.)

राजा दाऊद के पुत्र, राजा सोलोमन (King Solomon) ने अपने पिता के सपने को साकार किया। उन्होंने येरुशलम में प्रथम मंदिर (The First Temple) का निर्माण करवाया।

  • सोलोमन का मंदिर: यह मंदिर यहूदी धर्म का सबसे पवित्र स्थान बन गया। इसके भीतर “होली ऑफ होलीज” (Holy of Holies) नामक एक कक्ष था, जिसमें “आर्क ऑफ द कोवनेंट” (Ark of the Covenant) को रखा गया था, जिसमें ईश्वर द्वारा मूसा को दी गई दस आज्ञाओं की पत्थर की पट्टिकाएं थीं। यह मंदिर ईश्वर और यहूदी लोगों के बीच के बंधन का प्रतीक था।

विनाश और निर्वासन: बाबुली आक्रमण (586 ई.पू.)

येरुशलम की समृद्धि लंबे समय तक नहीं चली। 586 ई.पू. में, बेबीलोन के शक्तिशाली राजा नबूकदनेस्सर द्वितीय (Nebuchadnezzar II) ने यहूदा राज्य पर आक्रमण किया। उसने येरुशलम शहर को तहस-नहस कर दिया, राजा सोलोमन के गौरवशाली मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया, और हजारों यहूदियों को बंदी बनाकर बेबीलोन ले गया। यह घटना “बाबुली निर्वासन” (Babylonian Exile) के रूप में जानी जाती है और यह यहूदी इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है।

द्वितीय मंदिर काल: वापसी और पुनर्निर्माण (538 ई.पू. – 70 ई.)

लगभग 50 वर्षों के निर्वासन के बाद, जब फारसी साम्राज्य ने बेबीलोन पर विजय प्राप्त की, तो फारस के राजा साइरस महान (Cyrus the Great) ने 538 ई.पू. में यहूदियों को अपने वतन लौटने और अपने मंदिर का पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी।

  • दूसरे मंदिर का निर्माण: यहूदियों ने येरुशलम लौटकर दूसरे मंदिर (The Second Temple) का निर्माण किया, जो लगभग 516 ई.पू. में बनकर तैयार हुआ।
  • यूनानी और रोमन शासन: इसके बाद येरुशलम पर सिकंदर महान (332 ई.पू.) और उसके उत्तराधिकारियों का शासन रहा। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 63 ई.पू. में आया जब रोमन जनरल पोम्पी ने येरुशलम पर कब्जा कर लिया।
  • हेरोड महान का युग: रोमन शासन के तहत, राजा हेरोड महान (Herod the Great) ने येरुशलम का बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण किया और दूसरे मंदिर का एक भव्य विस्तार किया। इसी भव्य मंदिर को ईसा मसीह (Jesus Christ) ने अपने जीवनकाल में देखा था। ईसा मसीह के जीवन की अधिकांश महत्वपूर्ण घटनाएं – उनका उपदेश, अंतिम भोज, सूली पर चढ़ाया जाना और पुनरुत्थान – येरुशलम और उसके आसपास ही घटीं, जिससे यह शहर ईसाई धर्म का जन्मस्थान और सबसे पवित्र स्थल बन गया।

दूसरा विनाश: यहूदी-रोमन युद्ध (70 ई.)

रोमन शासन के खिलाफ यहूदियों के बढ़ते असंतोष ने 66-73 ई. के बीच एक बड़े विद्रोह का रूप ले लिया। इस विद्रोह को कुचलने के लिए, रोमन सेना ने 70 ई. में येरुशलम पर एक विनाशकारी हमला किया। उन्होंने शहर को जला दिया और दूसरे मंदिर को फिर से पूरी तरह से नष्ट कर दिया। आज, उस मंदिर का केवल एक बाहरी हिस्सा बचा है, जिसे “पश्चिमी दीवार” (Western Wall) के रूप में जाना जाता है, जो यहूदी धर्म का सबसे पवित्र प्रार्थना स्थल है।


तुलना तालिका: तीन धर्मों के लिए येरुशलम का महत्व

धर्म (Religion)सबसे पवित्र स्थल (Most Sacred Site)ऐतिहासिक/धार्मिक महत्व (Significance)
यहूदी धर्म (Judaism)पश्चिमी दीवार (Western Wall) और टेंपल माउंट (Temple Mount)राजा दाऊद की राजधानी, प्रथम और द्वितीय मंदिर का स्थान, ईश्वर के चुने हुए लोगों का केंद्र।
ईसाई धर्म (Christianity)चर्च ऑफ द होली सेपल्चर (Church of the Holy Sepulchre)ईसा मसीह के सूली पर चढ़ने, दफनाने और पुनरुत्थान का स्थान, उनके जीवन की अंतिम घटनाओं का केंद्र।
इस्लाम धर्म (Islam)अल-अक्सा मस्जिद (Al-Aqsa Mosque) और डोम ऑफ द रॉक (Dome of the Rock)मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थल, पैगंबर मुहम्मद की रात्रि यात्रा (इसरा और मेराज) का स्थान।

ईसाईकरण से इस्लामी विजय तक (4थी – 7वीं शताब्दी)

  • बीजान्टिन काल: 4थी शताब्दी में, रोमन सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने ईसाई धर्म अपना लिया, जिससे येरुशलम एक प्रमुख ईसाई तीर्थस्थल बन गया। उसकी माँ, हेलेना, ने येरुशलम की यात्रा की और कई चर्चों का निर्माण करवाया, जिनमें सबसे प्रमुख “चर्च ऑफ द होली सेपल्चर” है।
  • इस्लामी विजय: 7वीं शताब्दी में इस्लाम के उदय के साथ, 638 ई. में खलीफा उमर इब्न अल-खत्ताब की सेनाओं ने शांतिपूर्वक येरुशलम पर विजय प्राप्त की। खलीफा उमर ने शहर के ईसाई और यहूदी निवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता का आश्वासन दिया।

इस्लाम के लिए येरुशलम का महत्व तब स्थापित हुआ जब कुरान में वर्णित “रात्रि यात्रा” (इसरा और मेराज) की घटना को इस शहर से जोड़ा गया। इस्लामिक मान्यता के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद मक्का से रातों-रात येरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद तक आए और फिर यहीं से स्वर्ग की यात्रा पर गए। इसी महत्व के कारण, उमय्यद खलीफाओं ने टेंपल माउंट पर डोम ऑफ द रॉक (691 ई.) और अल-अक्सा मस्जिद का निर्माण करवाया।

क्रूसेड्स और उसके बाद का संघर्ष (11वीं – 15वीं शताब्दी)

11वीं शताब्दी के अंत में, पश्चिमी यूरोप के ईसाई राज्यों ने पवित्र भूमि को मुस्लिम शासन से “मुक्त” कराने के लिए सैन्य अभियानों की एक श्रृंखला शुरू की, जिसे क्रूसेड्स (Crusades) कहा जाता है।

  • 1099 में, पहले क्रूसेड ने एक खूनी लड़ाई के बाद येरुशलम पर कब्जा कर लिया और “येरुशलम के साम्राज्य” की स्थापना की।
  • लेकिन 1187 में, महान मुस्लिम नेता सलादीन (Saladin) ने हत्तीन की लड़ाई में क्रूसेडरों को हराकर येरुशलम पर फिर से कब्जा कर लिया।

अगले कई सौ वर्षों तक, येरुशलम विभिन्न मुस्लिम राजवंशों (अय्युबिद, मामलुक) के नियंत्रण में रहा, और इस पर नियंत्रण के लिए लगातार संघर्ष होते रहे।

उस्मानी साम्राज्य से ब्रिटिश शासन तक (1517 – 1948)

  • 1517 में, येरुशलम विशाल उस्मानी (Ottoman) साम्राज्य का हिस्सा बन गया और अगले 400 वर्षों तक उसी के अधीन रहा। सुल्तान सुलेमान द मैग्निफिसेंट ने शहर की वर्तमान दीवारों का पुनर्निर्माण करवाया।
  • प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, 1917 में, ब्रिटिश जनरल एलेनबी ने उस्मानी सेनाओं को हराकर येरुशलम पर कब्जा कर लिया।
  • ब्रिटिश मैंडेट काल के दौरान, यूरोप से यहूदी आप्रवासन में वृद्धि हुई, जिससे यहूदी और अरब समुदायों के बीच तनाव बढ़ने लगा।

आधुनिक युग: इजराइल का गठन और आज का संघर्ष

द्वितीय विश्व युद्ध और होलोकॉस्ट के बाद, 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को एक अरब राज्य और एक यहूदी राज्य में विभाजित करने की योजना को मंजूरी दी, जिसमें येरुशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर के रूप में रखा जाना था। यहूदियों ने इस योजना को स्वीकार कर लिया, लेकिन अरबों ने इसे अस्वीकार कर दिया।

  • 1948 में, जैसे ही ब्रिटिश मैंडेट समाप्त हुआ, इज़राइल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, जिससे पहला अरब-इजरायल युद्ध छिड़ गया। युद्ध के अंत में, येरुशलम विभाजित हो गया – पश्चिमी येरुशलम इज़राइल के नियंत्रण में और पूर्वी येरुशलम (जिसमें ओल्ड सिटी भी शामिल है) जॉर्डन के नियंत्रण में आ गया।
  • 1967 के छह-दिवसीय युद्ध में, इज़राइल ने जॉर्डन से पूर्वी येरुशलम पर कब्जा कर लिया और पूरे शहर को एकजुट कर इसे अपनी “शाश्वत और अविभाज्य राजधानी” घोषित कर दिया।

आज, इज़राइल पूरे येरुशलम को अपनी राजधानी मानता है, जबकि फिलिस्तीनी पूर्वी येरुशलम को अपने भविष्य के स्वतंत्र राज्य की राजधानी के रूप में दावा करते हैं। अधिकांश अंतरराष्ट्रीय समुदाय पूर्वी येरुशलम पर इज़राइली कब्जे को अवैध मानता है और शहर की अंतिम स्थिति को बातचीत के माध्यम से हल करने की वकालत करता है।

HowTo: येरुशलम के संघर्ष को कैसे समझें?

यह एक बहुत ही जटिल मुद्दा है। इसे समझने के लिए यहाँ कुछ कदम दिए गए हैं:

चरण 1: दोनों पक्षों के दृष्टिकोण को समझें (Understand Both Narratives)

  • इजरायली/यहूदी दृष्टिकोण: उनके लिए, यह 3000 साल से उनकी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मातृभूमि है, जहाँ से उन्हें बार-बार निर्वासित किया गया।
  • फिलिस्तीनी/अरब दृष्टिकोण: उनके लिए, यह सदियों से उनका घर रहा है, जिस पर 1948 में और फिर 1967 में कब्जा कर लिया गया।

चरण 2: केवल समाचार की सुर्खियों से परे जाएं (Go Beyond the Headlines)
इस संघर्ष के बारे में विश्वसनीय किताबें, वृत्तचित्र और अकादमिक लेख पढ़ें।

चरण 3: प्रमुख मुद्दों को पहचानें (Identify the Key Issues)
प्रमुख मुद्दों में सीमाओं, बस्तियों (Settlements), शरणार्थियों की वापसी का अधिकार और येरुशलम की स्थिति शामिल है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)

प्रश्न 1: येरुशलम का इतिहास इतना संघर्षपूर्ण क्यों रहा है?
उत्तर: क्योंकि यह तीन प्रमुख धर्मों के लिए अत्यंत पवित्र है और रणनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है। हर साम्राज्य और धर्म इस पर अपना नियंत्रण चाहता था, जिससे यह इतिहास में सबसे अधिक लड़े जाने वाले शहरों में से एक बन गया।

प्रश्न 2: “ओल्ड सिटी” क्या है?
उत्तर: ओल्ड सिटी, येरुशलम का दीवारों से घिरा हुआ ऐतिहासिक केंद्र है। यह चार क्वार्टरों में विभाजित है – यहूदी क्वार्टर, ईसाई क्वार्टर, मुस्लिम क्वार्टर और अर्मेनियाई क्वार्टर। तीनों धर्मों के सबसे पवित्र स्थल इसी ओल्ड सिटी के भीतर स्थित हैं।

प्रश्न 3: क्या येरुशलम की यात्रा करना सुरक्षित है?
उत्तर: सामान्य परिस्थितियों में, लाखों पर्यटक और तीर्थयात्री हर साल सुरक्षित रूप से येरुशलम की यात्रा करते हैं। हालांकि, यह एक संवेदनशील क्षेत्र है, इसलिए यात्रा करने से पहले हमेशा अपनी सरकार की यात्रा सलाह की जांच करना और स्थानीय परिस्थितियों के प्रति जागरूक रहना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष: एक शहर, तीन आस्थाएं, एक साझा भविष्य की आशा

येरुशलम का इतिहास हमें सिखाता है कि यह शहर पत्थर से कहीं बढ़कर है; यह आस्था, पहचान और स्मृति का एक जीवंत प्रतीक है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ स्वर्ग और पृथ्वी मिलते हैं, जहाँ अतीत और वर्तमान टकराते हैं।

इसकी कहानी संघर्ष और विनाश की है, लेकिन यह लचीलेपन और पुनर्निर्माण की भी है। यह एक ऐसा शहर है जो बार-बार राख से उठ खड़ा हुआ है। आज भी यह विवाद और तनाव का केंद्र है, लेकिन यह दुनिया भर के अरबों लोगों के लिए आशा और प्रार्थना का केंद्र भी है।

येरुशलम का भविष्य अनिश्चित हो सकता है, लेकिन इसका इतिहास हमें एक बात स्पष्ट रूप से बताता है: इस पवित्र शहर की आत्मा को कभी नष्ट नहीं किया जा सकता। शायद, इसका सच्चा भविष्य सह-अस्तित्व और आपसी सम्मान में निहित है, जहाँ तीनों अब्राहमिक धर्मों के अनुयायी शांति से एक साथ प्रार्थना कर सकें, जैसा कि वे सदियों से करते आए हैं।

आपको येरुशलम के इतिहास का कौन सा पहलू सबसे अधिक आकर्षक लगता है? नीचे कमेंट्स में अपने विचार साझा करें!

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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