दरभंगा हाउस का इतिहास | History of Darbhanga House
दरभंगा हाउस का इतिहास | History of Darbhanga House
बिहार की राजधानी पटना एक बहुत ही मशहूर शहर होने के साथ ही कई प्राचीन स्मारकों को समेटे हुए हैं. पटना नगर का महत्व न सिर्फ राजनीतिक लिहाज से है बल्कि ये सांस्कृतिक, शैक्षणिक, विरासत के लिहाज से भी अपना महत्वपूर्ण कद रखता है. हालांकि, पटना में गोलघर, बिहार म्यूजियम समेत दर्जनभर ऐतिहासिक धरोहर है. लेकिन पीएमसीएच और पटना कॉलेज के बीच स्थित दरभंगा हाउस (Darbhanga House) का अपना ऐतिहासिक महत्व हैं. दरभंगा हाउस की जिसकी भव्यता इस कदर थी कि, आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) भी यहां आने से खुद को नहीं रोक सके थे.
भारत की आजादी के 67 साल पूर्व की गई स्थापना
कलकल बहती मोक्षदायिनी गंगा और उसके किनारे पर स्थित ऐतिहासिक दरभंगा हाउस. पटना के करगिल चौक से जब आप पटना यूनिवर्सिटी (Patna University) की ओर से 1 किलोमीटर पैदल चलेंगे तो, आपको पीतल और लाल कलर की बिल्डिंग दिखेगी जो ऐतिहासिक दरभंगा हाउस है. भारत की आजादी के करीब 67 साल पूर्व राजधानी पटना में उस इमारत की स्थापना की गई जो आगे चलकर अपनी स्थापत्य कला के कारण पूरे विश्व में मशहूर हो गया.
1880 में हुआ था दरभंगा हाउस का निर्माण
दरभंगा के महाराज लक्ष्मणेश्वर सिंह की गिनती बिहार के चुनिंदा राजा रजवाड़ों में होती थी. लक्ष्मणेश्वर सिंह ने गंगा के किनारे 12 बीघा जमीन खरीदी और अंग्रेजी कारीगरों और इंजीनियरों की मदद से दरभंगा हाउस का निर्माण कराया. दरभंगा हाउस का निर्माण 1880 में पूरा हुआ.
40 इंच से कम नहीं है दीवारों की मोटाई
इतिहासकार की मानें तो, दरभंगा हाउस के निर्माण में ब्रिटिश और मुगल शैली दोनों की कारगीरी को जोड़ के बनाया गया है. इन दोनों वास्तुकला की नजीर है दरभंगा हाउस. दरभंगा हाउस की दीवार हो या पाया, इसकी मोटाई 40 इंच से कम नहीं है और पूरी इमारत को सुर्खी और चूने को मिलाकर बनाया गया है.
दरभंगा हाउस को 3 हिस्सों में बांटा गया था
पटना यूनिवर्सिटी में मगध महिला कॉलेज में इतिहास विभाग की एचओडी और पटना यूनिवर्सिटी पर किताब लिखने वालीं प्रोफेसर जयश्री मिश्रा के मुताबिक, दरभंगा हाउस को तीन हिस्सों में बांटा गया था. एक हिस्सा राजा ब्लॉक, दूसरा हिस्सा रानी ब्लॉक. एक हिस्से में राजा लक्ष्मणेश्वर सिंह जबकि दूसरे हिस्से में उनकी पत्नी रहा करती थी. एक हिस्सा रिसेप्शन रूम था जो अब दिखता नहीं है.
पूरी दुनिया से देखने आते हैं लोग
बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि, प्रोफेसर जय श्री मिश्रा ने पटना यूनिवर्सिटी और दरभंगा हाउस को लेकर एक किताब भी लिखी हैं, जिसका नाम है ‘ए हिस्ट्री ऑफ पटना यूनिवर्सिटी’. दरभंगा हाउस निर्माण के बाद इसे देखने के लिए पूरी दुनिया से लोग आने लगे. कारण आजादी के पूर्व सड़कें उतनी विकसित नहीं थी, लिहाजा लोग नाव की सवारी करके दरभंगा हाउस देखने पटना पहुंचते थे.
पूर्व PM जवाहर लाल नेहरू भी आए थे देखने
दरभंगा हाउस की भव्यता ऐसी थी कि आजादी मिलने के एक साल बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पटना पहुंचे. न सिर्फ जवाहरलाल नेहरू बल्कि भारत के अंतिम गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भी दरभंगा हाउस देखने के लिए पहुंचे थे. ये वक्त साल 1948 का था और तब इन दोनों महान हस्तियों की मेहमाननवाजी कामेश्वर सिंह ने की थी.
♦ लेटेस्ट जानकारी के लिए हम से जुड़े ♦ |
WhatsApp पर हमसे बात करें |
WhatsApp पर जुड़े |
TeleGram चैनल से जुड़े ➤ |
Google News पर जुड़े |
PU उठाता है पूरे स्टाफ का खर्च
वर्ष 1898 में दरभंगा महाराज लक्ष्मणेश्वर सिंह का देहांत हो गया था और उनके बाद उनके पुत्र कामेश्वर सिंह ने राजगद्दी संभाली थी. वर्ष 1995 में जब दरभंगा हाउस की जिम्मेदारी पटना यूनिवर्सिटी को मिली तो सारे स्टाफ का खर्च भी पटना यूनिवर्सिटी को ही उठाना पड़ा. दरभंगा हाउस की पहचान सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के रूप में रही है. जिस संजीदगी और करीने से तैयार किया गया है, उसके लोग कायल हैं. बीच-बीच में पटना यूनिवर्सिटी इसका जीर्णोद्धार कराती है.
PU ने दरभंगा हाउस को खरीदा
दरअसल, 1950 के दशक में पटना यूनिवर्सिटी के विस्तार पर चर्चा होने लगी. क्योंकि पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई के लिए पटना कॉलेज में जगह कम पड़ रही थी. जिसके बाद साल 1955 में दरभंगा हाउस को पटना यूनिवर्सिटी ने खरीद लिया. इतिहासकार और पटना यूनिवर्सिटी पर किताब लिख चुकीं प्रोफेसर जय श्री मिश्रा के मुताबिक, साल 1950 में यूनिवर्सिटी में पीजी क्लास के लिए भवन की जरूरत पड़ गई.
इसे भी पढ़े :
PG की शुरू हुई पढ़ाई
पटना यूनिवर्सिटी को साल 1955 में बिहार सरकार से पांच लाख रुपए मिले और सात लाख में दरभंगा हाउस को पटना यूनिवर्सिटी को सौंप दिया गया. जहां पर पोस्ट ग्रेजुएट और मानविकी यानि हयूमिनिटीज की पढ़ाई शुरू हुई. अब दरभंगा हाउस पटना यूनिवर्सिटी की संपत्ति बन चुका था, जहां से पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई शुरू की गई.
IAS-IPS बने छात्र
यहां से निकले छात्र काफी संख्या में आईएएस और आईपीएस बने. अब भी यहां से पासआउट छात्र दरभंगा हाउस को देखने के लिए पहुंचते हैं और अपनी याद ताजा करते हैं. दरअसल, दरभंगा हाउस को मुख्य रूप से दो हिस्सों में बांटा गया है. राजा ब्लॉक और रानी ब्लॉक. राजा ब्लॉक में इतिहास,अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र सहित पोस्ट ग्रेजुएट के दूसरे विषयों की पढ़ाई होती है, जबकि रानी ब्लॉक में संस्कृत, बंगाली, अरबी, पत्रकारिता सहित दूसरे विषयों की पढ़ाई होती है.
बंगाल-झारखंड के छात्र आते थे पढ़ने
यहां पढ़ाने वाले लोगों ऐसे प्रोफेसर थे, जिन्हें भारत सरकार पद्यम श्री जैसे सम्मान से नवाज चुकी है. ऐसे ही एक प्रोफेसर थे पद्यम श्री सैयद अस्करी जो इतिहासकार थे. इसी तरह के के दत्त, वीसी सरकार जैसे लोग भी यहां प्रोफेसर हुआ करते थे. इतिहासकार प्रोफेसर जय श्री मिश्रा के मुताबिक, जब यहां पढ़ाई शुरू हुई तो बंगाल, झारखंड से भी छात्र यहां पढ़ाई करने के लिए आते थे.
धार्मिक महत्व भी है
साल 1955 में दरभंगा हाउस पटना यूनिवर्सिटी को हैंडओवर कर दिया गया. दरभंगा हाउस से पढ़ाई कर निकले छात्र आज आईएएस और आईपीएस बन गए हैं. यहां ऐसे ऐसे प्रोफेसर थे जिन्हें पद्यम श्री जैसे सम्मान से नवाजा गया. दरभंगा हाउस का ऐतिहासिक, शैक्षणिक के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी हैं. दरभंगा हाउस जहां पर स्थित है वहां के गर्भगृह में ऐतिहासिक काली मंदिर है.
यहां काली मां की होती है खास पूजा
काली मंदिर की स्थापना दरभंगा महाराज ने की थी और यहां साल में एक बार बली भी दी जाती है. मंदिर में आस्था की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि गर्भगृह में नारियल नहीं फोड़े जाते बल्कि अगर श्रद्धालुओं को नारियल फोड़ना है तो वो बाहर ही फोड़ना है. मंगलवार और शनिवार को यहां काली मां की खास पूजा होती है.
इसे भी पढ़े :