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 Pola Festival 2025: जानें क्यों मनाया जाता है पोला त्यौहार, इसका महत्व, कहानी और पूजा विधि

Pola Festival 2025: जानें क्यों मनाया जाता है पोला त्यौहार, इसका महत्व, कहानी और पूजा विधि

भारत एक कृषिप्रधान देश है, जहाँ मिट्टी और मवेशियों को केवल संसाधन नहीं, बल्कि परिवार का सदस्य माना जाता है। इसी भावना का सबसे सुंदर प्रतीक है पोला त्यौहार (Pola Festival), जिसे बैल पोला (Bail Pola) के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के किसानों द्वारा बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

यह उस मूक साथी, यानी बैल के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है, जो साल भर किसान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतों में मेहनत करता है। इस दिन बैलों को पूर्ण विश्राम दिया जाता है, उन्हें सजाया-संवारा जाता है और उनकी पूजा की जाती है। यह त्यौहार मनुष्य और पशु के बीच के गहरे और पवित्र रिश्ते का एक अनूठा उत्सव है।

इस लेख में हम पोला त्यौहार का महत्व, इसके नाम के पीछे की पौराणिक कहानी, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में इसे मनाने का तरीका, इसकी पूजा विधि और Pola Festival 2025 की सही तारीख के बारे में विस्तार से जानेंगे।

पोला त्यौहार 2025: तारीख और तिथि (Pola Festival 2025 Date)

पोला का त्यौहार हर साल भादो माह (भाद्रपद) की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस अमावस्या को पिठोरी अमावस्या (Pithori Amavasya) भी कहते हैं। यह आमतौर पर अंग्रेजी कैलेंडर के अगस्त या सितंबर महीने में आता है।

  • पोला त्यौहार 2025 की तारीख: 29 अगस्त 2025, शुक्रवार
  • तिथि: भाद्रपद कृष्ण अमावस्या (पिठोरी अमावस्या)

इस दिन किसान अपने बैलों से किसी भी प्रकार का कृषि कार्य नहीं कराते और उन्हें पूरी तरह से आराम देते हैं।


पोला त्यौहार का महत्व और जानकारी (Pola Festival Information and Significance)

पोला त्यौहार का महत्व सिर्फ बैलों की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण जीवनशैली, कृषि संस्कृति और कृतज्ञता की भावना का एक गहरा प्रतीक है।

महत्व का पहलूविवरण
कृतज्ञता का पर्वयह त्यौहार किसानों द्वारा अपने बैलों के प्रति आभार और धन्यवाद व्यक्त करने का एक माध्यम है, जो उनकी आजीविका का मुख्य आधार हैं।
सांस्कृतिक धरोहरयह भारत की समृद्ध कृषि परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है और अगली पीढ़ी तक पहुंचाता है।
पशु-प्रेम का संदेशयह त्यौहार समाज को यह संदेश देता है कि हमें उन पशुओं का सम्मान करना चाहिए जो मानव जाति की सेवा करते हैं।
नई कृषि ऋतु का आरंभकई क्षेत्रों में, पोला के अगले दिन से किसान खेतों में बीज बोने और अगली फसल की तैयारी का काम शुरू करते हैं।

पोला नाम क्यों पड़ा? (पौराणिक कहानी – Bail Pola Story)

इस त्यौहार का नाम ‘पोला’ पड़ने के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है, जो भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ी है।

द्वापर युग में, जब भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया था, तो उनके मामा कंस ने उन्हें मारने के लिए कई असुरों को भेजा था। एक बार, कंस ने पोलासुर नामक एक मायावी असुर को गोकुल भेजा। पोलासुर का उद्देश्य बालगोपाल कृष्ण का वध करना था।

लेकिन, बाल कृष्ण ने अपनी दिव्य लीला से उस असुर को पहचान लिया और खेल-खेल में ही उसका वध कर दिया। जिस दिन भगवान कृष्ण ने पोलासुर का वध किया, वह भादो माह की अमावस्या का दिन था। उसी दिन से, इस तिथि को ‘पोला’ के नाम से जाना जाने लगा। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत और बच्चों एवं पशुओं की रक्षा के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है।

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कैसे करें: महाराष्ट्र में पोला पर्व मनाने का तरीका

महाराष्ट्र में, विशेषकर विदर्भ क्षेत्र में, यह त्यौहार दो दिनों तक बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

पहला दिन: मोठा पोला (Bada Pola)

  • बैलों को लाड़-प्यार: इस दिन सुबह-सुबह किसान अपने बैलों के गले और मुंह से रस्सियां खोल देते हैं। उन्हें हल्दी, बेसन और तेल का लेप लगाकर मालिश की जाती है।
  • शाही स्नान: इसके बाद उन्हें नदी, तालाब या घर पर ही गर्म पानी से नहलाया जाता है।
  • सजावट: बैलों को सुंदर ढंग से सजाया जाता है। उनके सींगों को रंगा जाता है, शरीर पर रंगीन छापे लगाए जाते हैं, और पीठ पर आकर्षक झुली (कपड़ा) डाली जाती है। उन्हें फूलों की माला, घुंघरू और अन्य आभूषण पहनाए जाते हैं।
  • पूजा और नैवेद्य: सजे-धजे बैलों की घर की मालकिन द्वारा पूजा की जाती है। पूजा की शुरुआत विघ्नहर्ता भगवान गणेश के स्मरण से की जाती है, जिनकी स्तुति में श्री गणेश आरती का गायन होता है। फिर बैलों की आरती उतारी जाती है और उन्हें पूरन पोली, गुझिया और अन्य स्वादिष्ट पकवानों का नैवेद्य खिलाया जाता है।
  • जुलूस और मेला: शाम को, गांव के सभी किसान अपने-अपने सजे हुए बैलों को लेकर एक स्थान पर इकट्ठा होते हैं। फिर ढोल-नगाड़ों के साथ पूरे गांव में उनका जुलूस निकाला जाता है। कई गांवों में इस दिन मेले का भी आयोजन होता है, जिसमें विभिन्न प्रतियोगिताएं होती हैं।

दूसरा दिन: तान्हा पोळा (Tanha Pola or Chota Pola)

  • इसे ‘छोटा पोला’ भी कहते हैं और यह दिन बच्चों को समर्पित होता है।
  • इस दिन बच्चे लकड़ी या मिट्टी से बने खिलौने वाले बैलों (नंदीबैल) को सजाते हैं।
  • वे इन खिलौने वाले बैलों को लेकर मोहल्ले और पड़ोस में घर-घर जाते हैं, जहां लोग इन बैलों की पूजा करते हैं और बच्चों को उपहार या पैसे देते हैं।
Pola Festival
Pola Festival

मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में पोला त्यौहार मनाने का तरीका

इन राज्यों में, विशेषकर आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में, पोला मनाने का तरीका थोड़ा अलग है।

  • यहां असली बैलों के साथ-साथ मिट्टी या लकड़ी के बने बैलों और घोड़ों की भी पूजा की जाती है।
  • इस दिन घर की चक्की (अनाज पीसने वाली हाथ की चक्की) की भी पूजा की जाती है, क्योंकि यह भी जीवनयापन का एक महत्वपूर्ण साधन मानी जाती है।
  • बच्चों द्वारा खिलौने वाले बैलों को घर-घर ले जाने की परंपरा यहां भी प्रचलित है।
  • इसके अलावा, इन क्षेत्रों में ‘गेड़ी’ का जुलूस निकाला जाता है, जो एक पारंपरिक खेल है। इसमें लोग बांस से बनी ऊंची गेड़ी पर संतुलन बनाकर चलते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न 1: पोला त्यौहार कब मनाया जाता है?
उत्तर: पोला त्यौहार हर साल भादो माह की अमावस्या को, जिसे पिठोरी अमावस्या भी कहते हैं, उस दिन मनाया जाता है। 2025 में यह 29 अगस्त, शुक्रवार को है।

प्रश्न 2: बैल पोला क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: यह त्यौहार किसानों द्वारा कृषि कार्यों में मदद करने वाले बैलों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।

प्रश्न 3: मोठा पोला और तान्हा पोळा में क्या अंतर है?
उत्तर: मोठा पोला में असली बैलों की पूजा की जाती है और यह मुख्य रूप से किसानों द्वारा मनाया जाता है। तान्हा पोळा (छोटा पोला) अगले दिन मनाया जाता है, जिसमें बच्चे खिलौने वाले बैलों के साथ उत्सव में भाग लेते हैं।

प्रश्न 4: पोला त्यौहार पर कौन से विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं?
उत्तर: इस दिन मुख्य रूप से पूरन पोली (Puran Poli) बनाई जाती है। इसके अलावा, गुझिया, करंजी और पांच सब्जियों को मिलाकर बनाई गई मिक्स सब्जी भी बनाई जाती है।


निष्कर्ष

पोला का त्यौहार हमें सिखाता है कि जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद करते हैं, चाहे वे इंसान हों या पशु, हमें उनका सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए। यह हमारी समृद्ध कृषि संस्कृति का एक जीवंत प्रतीक है, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है।

यह त्यौहार उन मेहनती किसानों को और उनके मूक सहायकों, बैलों को एक दिन का सम्मान और आराम देता है, जिसके वे वास्तव में हकदार हैं। यह हमें याद दिलाता है कि प्रगति और आधुनिकता के इस दौर में भी हमें अपनी परंपराओं और मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए।

आप सभी को पोला त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएं!

KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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