हिंदू धर्म में मासिक व्रत और पर्व का बहुत अधिक महत्व होता है. प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी (Masik Kalashtami Vrat) मनाई जाती है. इस बार कालाष्टमी का व्रत 2 जून 2021 दिन बुधवार को किया जाएगा. इस दिन भगवान भोलेनाथ के रुद्र स्वरूप भगवान काल भैरव की पूजा और उपवास करने का विधान है. इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है. भगवान काल भैरव की पूजा से भक्तों को भय से मुक्ति प्राप्त होती है.
हिंदू धर्म में पुराणों के अनुसार भगवान काल भैरव के 8 स्वरूप मानें गए हैं. इनमें से बटुक भैरव स्वरुप को सौम्य माना गया है. गृहस्थ व अन्य सभी साधारणजन को भगवान भैरव के बटुक भैरव स्वरूप की पूजा करनी चाहिए. कालाष्टमी के दिन इनकी पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है और जीवन में समृद्धि आती है. चलिए लेख के जरिए जानते हैं कालाष्टमी पर भगवान भैरव को प्रसन्न करने के लिए क्या करें और क्या है व्रत महत्व, शुभ मुहूर्त एवं पूजा की संक्षिप्त विधि.
कालाष्टमी शुभ मुहूर्त :
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- 2 जून 2021 दिन बुधवार को कालाष्टमी का व्रत किया जाएगा।
- ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ – 02 जून रात्रि 12 बजकर 46 मिनट से
- ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त – 03 जून रात्रि 01 बजकर 12 मिनट पर
कालाष्टमी पूजा विधि :
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें.
- जिसके बाद एक शांत पवित्र स्थान पर. आसन लगाकर भगवान भैरव का फोटो विराजमान करें.
- दोस्तों यदि आपके घर में भगवान भैरव की तस्वीर न हो तो भगवान शिव जी की तस्वीर रखकर पूजा कर सकते हैैं.
- अब उस पूरे स्थान पर गंगाजल छिड़के.
- अब चौमुखा दीपक जलाकर भगवान भैरव को पुष्प, नारियल, इमरती, पान आदि चीजें अर्पित करें.
- रात में पुनः सरसों के तेल, जलेबी, उड़द और कले तिल आदि पूजन करें.
- भैरव मंत्रों और भैरव चालीसा का पाठ करें, और आरती करें.
पौराणिक कथा :
हिंदू धर्म के अनुसार कालाष्टमी की एक पौराणिक कथा है कि, जिसमें उल्लेख मिलता है कि, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की बात को लेकर विवाद चला. इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई. सभी देवगणों से यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार बैठक में रखे और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए. इस बात पर शिवजी को बेहद ही क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा.
शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया. इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है. इनके एक हाथ में छड़ी है. इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है. शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए.
भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं. इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया. ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए.
भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा. इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है. इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था.
करें भैरव देव से जुड़े ये उपाय :
- कालाष्टमी के दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। ऐसा करने से आपकी मनोकामनाएं पूरी हो जाएगी.
- कालाष्टमी के दिन श्वान को रोटी खिलाने से भैरव बाबा प्रसन्न हो जाते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूरा कर देते हैं.
- इस दिन भैरव बाबा के साथ-साथ मां दुर्गा का पूजन करने से भी विशेष लाभ मिलता है. और इस दिन दुर्गा चालीसा का पाठ करें.
- जिन लोगों को कोई भी रोग है वो लोग कालाष्टमी के दिन पूजा करें और भैरव देव को तेल जरूर अर्पित करें. सरसों का तेल अर्पित करने से रोगों से मुक्ति मिल जाती है.
कालाष्टमी का महत्व :
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो भगवान भैरव के भक्तों का अनिष्ट करता है, उसे तीनों लोकों में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है. कालाष्टमी के दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजन करने से जातक को भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है. भगवान भैरव अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करते हैं. इनकी पूजा से शत्रु बाधा और रोगों से भी मुक्ति मिलती है. जो लोग आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं उनके लिए भगवान भैरव दंडनायक हैं और अपने भक्तों के लिए वे सौम्य और रक्षा करने वाले हैं.
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