हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र को खासा महत्व दिया जाता है. हम यह भली भांति जानते हैं कि किसी भी घर में शौचालय और स्नानघर का होना कितना महत्तपूर्ण होता है. वर्तमान समय में बन रहे ज्यादातर घरों में स्थानाभाव, शहरी संस्कृति और शास्त्रों के अल्पज्ञान के कारण अधिकतर लोग शौचालय और स्नानघर को एक साथ बनवा लेते हैं.
जिसकी वजह से घर में वास्तुदोष उत्पन्न होता है. इन्हें भी वास्तु के हिसाब से ही बनवाना चाहिए, नहीं तो ये घर में नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश का कारण बनते हैं. शौचालय का अर्थ है, जहां पर हम मल-मूत्र, दैनिक क्रियाओं का विसर्जन करते हैं. वास्तुशास्त्र के हिसाब से दक्षिण-पश्चिम दिशा को विसर्जन के लिए बेहद ही उत्तम माना गया हैं.
हिंदू वास्तुशास्त्र की मानें तो, शौचालय की गलत और सही दिशाओं का उस घर के लोगों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है. मकान की उत्तर दिशा में बना शौचालय रोजगार संबंधी परेशानियों को उत्पन्न करता है.
इस दिशा में बने शौचालय वाले घरों में रहने वाले लोगों को नौकरी संबंधि अवसरों में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. उत्तर-पूर्व दिशा में बना शौचालय रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर बना देता है. इस दिशा में बने शौचालय का इस्तेमाल करने वाले लोग मौसमी बीमारियों की वजह से लगातार बीमार पड़ते हैं.
घर के पूर्व, उत्तर-पूर्व जोन में बना शौचालय व्यक्ति को थकान और भारीपन महसूस कराता है. व्यक्ति को कब्ज की शिकायत रहती है और ताजगी के लिए उन्हें कुछ न कुछ बाहरी चीज की आवश्यकता पड़ती है. पूर्व दिशा में बना शौचालय सामाजिक रिश्ते को खत्म कर देता है.
वास्तु के अनुसार, दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर बनाया गया शौचालय बेहद ही लाभकारी होता है. इस दिशा बना शौचालय व्यक्ति की चिंता को कम करता है. दक्षिण-पूर्व जोन में शौचालय जीवन में समस्याएं उत्पन्न करता है. यह पवित्र आयोजनों, जैसे विवाह आदि में बाधा उत्पन्न करता है.
आत्मविश्वास, शारीरिक मजबूती में कमी और नौकरी करने वाले लोगों में आत्मविश्वास की कमी का कारण बनता है. जबकि दक्षिण-पश्चिम जोन में बना शौचालय हर उस चीज को विसर्जित कर देता है, जो आपके लाइफ के लिए बेकार है. यहां पर शौचालय बनाना बेहद ही उतम होता है.
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दक्षिण-पश्चिम दिशा में शौचालय का होना पारिवारिक रिश्तों में कलह पैदा करता है. दक्षिण-पश्चिम दिशा में शौचालय हो, तो आप धन की बचत नहीं कर पाएंगे. वहीं स्कूल जाने वाले बच्चों का ध्यान पढ़ाई में नहीं लगेगा, क्योंकि यह दिशा शिक्षा और बचत की होती है.
पश्चिम दिशा में शौचालय के होने से लोगों को भरपूर एवं गंभीर प्रयास के बावजूद वांछित परिणाम नहीं मिल पाता है. उत्तर-पश्चिम दिशा में बना शौचालय वहां रहने वाले निवासियों के मन से बेकार की संवेदनाओं को बाहर निकालने में सहायता करता है.
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