ग्रेसिम उद्योग नागदा का लॉकडाउन में श्रम संगठनों से हुआ पंजीकृत समझौता

नागदा. ग्रेसिम उद्योग नागदा द्वारा सैकड़ों श्रमिकों के साथ बेईमानी करने का मामला उजागर हुआ है। ग्रेसिम उद्योग ने लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों का रोजगार छिनने तथा पूरा वेतन नहीं देने तथा शासकीय निर्देशों को कथित उल्लघंन का मामला सीएम शिवराज तक तो पहुंचा, लेकिन मजदूरों को इंसाफ नहीं मिला। ल कुछ और ही कहानी सामने आई है।

ग्रेसिम प्रबंधन ने सहायक श्रमायुक्त उज्जैन के समक्ष यह खुलासा कि श्रम संगठनों एवं उद्योग प्रबंधकों के बीच लॉकडाउन को लेकर एक समझौता 27 जूून 2020 को हुआ है। यह समझौता पंजीयक व्यावसायिक संघ में रजिस्टर्ड भी हुआ।

खास बात यह है कि  श्रम संगठनों ने अनुबंध को आज तक उद्योग गेट पर न तो चस्पा किया, न सार्वजनिक किया। ग्रेसिम क्रांतिकारी कर्मचारी यूनियन के महामंत्री भवानीसिंह शेखावत की एक शिकायत के बाद यह हकीकत उजागर हुई। शेखावत ने शिकायत में मजदूरों के पक्ष में आवाज उठाई थी।

ग्रेसिम महाप्रबंक का पत्र हाथ लगा

सहायक श्रमायुक्त को प्रेषित ग्रेसिम महाप्रबंधक का एक सफाई पत्र दस्तावेज हिन्दुस्थान समाचार संवाददाता नागदा के हाथ लगा है, जो कि सहायक श्रमायुक्त के कार्यालय उज्जैन में 23 अक्टूबर 2020 को पंजीकृत हुआ। इस दस्तावेज की प्रति हिस के पास सुरक्षित है।

इस अभिलेख में महाप्रबंधक ने यह बताने का प्रयास किया कि मजदूरों को लॉकडाउन की अवधि में संस्थान से सबंध श्रम संगठनों से हुए समझौते के अनुसार काम एवं वेतन दिया जा रहा है। दोनों पक्षों के बीच समझौता होने की उक्त तिथि भी महाप्रबंधक ने प्रकट की है। महाप्रबंधक ने यह तक दावा कि कि उक्त समझौता पंजीयक व्यावसायिक संघ में पंजीबद्ध भी है।

क्या बोले समझौते में शामिल यूनियन के नेता

समझौते को सार्वजनिक नहीं करने के मामले में उद्योग के सबसे बड़े श्रम संगठन भारतीय मजदूर संघ के नेता जोधसिंह राठौर से दूरभाष पर संपर्क किया गया उनसे बात तो हुई लेकिन अस्पताल में अस्वस्थता के कारण उनका पक्ष लेना अनुचित समझा।

अन्य श्रम संगठन एचएमएस के नेता राजेंद्र अवाना ने इस बात की पुष्टि की हैकि लॉकडाउन को लेकर दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ था। इस अनुबंध में मजदूरों के हितों का ध्यान रखा गया। उन्होंने सहज भाव से स्वीकार किया कि इस समझौते को सार्वजनिक नहीं किया।

मजदूर नेता शेखावत के सवाल

उधर, इस कहानी के किरदार श्रमिक नेता भवानीसिंह शेखावत से संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि ग्रेसिम के ठेका मजदूरों को काम से बेदखल करने तथा स्थायी श्रमिकों को लॉकडाउन के दौरान पूरा वेतन नहीं तथा लॉकडाउन में शासकीय गाईडलाईन का उल्लघंन करने आदि को लेकर उन्होंने सहायक श्रमायुक्त को शिकायत की थी।

श्रम संगठनों से प्रबंधन ने गुपचुप समझौता कर लिया। इस समझौते को उजागर नहीं किया गया। समझौते में क्या लिखा, श्रमिक अनभिज्ञ हैं। नियमानुसार उद्योग गेट पर चस्पा किया जाना चाहिए था। अब इसे सार्वजनिक किया जाए।

महा प्रबंधक की यह भी सफाई

ग्रेसिम महाप्रबंधक ने मजदूरों को काम नहीं देने तथा ठेका मजदूरों को कार्य से बेदखल करने के सवाल पर यह दलील भी सहायक श्रमायुक्त के समक्ष पेश की हैकि उद्योग को 50 प्रतिशत कर्मचारियों के नियोजन के साथ उत्पादन प्रारंभ करने की अनुमति शासन से 3 मई 2020 को मिली थी।

लॉकडाउन समाप्त होने के बाद प्रशासकीय दिशा-निर्देशों का अनुपालन करते हुए संस्थान द्वारा जैसे- जैसे उत्पादन बढाया वैसे-वैसे श्रमिकों का नियोजन भी बढाया गया। यह भी दावा किया कि लॉकडाउन के दौरान अनुपस्थिति के कारण किसी भी कर्मकार की सेवा समाप्ति, छटनी या सर्विस ब्रेक नहीं की गई।

संस्थान के बंद रहने की अवधि में किसी भी कर्मकार के वेतन अथवा अन्य देय तथा वैधानिक स्वत्वों में भी कोई कटौती नहीं की गई। बड़ा तर्क यह दिया कि लॉकडाउन के बाद संस्थान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

ठेका मजदूरों के बारे में दलील

महाप्रबंधक का दलील में कहना हैकि वर्तमान में विश्वव्यापी महामारी एवं औद्योगिक परिस्थतियों को देखते हुए कुछ अति आवश्यक कार्य को छोडक़र अन्य गैर जरूरी कार्यों के लिए संविदा पर कार्य समाप्त कर दिए गए। ऐसे ठेकेदारों को संस्थान के अन्य ठेकेदारों की सूची से कम किया गया।

उन ठेकेदारों के श्रमिकों के नियोजन के लिए प्रबंधक प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष कदापि उतरदायी नहीं। अत: ठेका श्रमिकों के नियोजन के लिए ठेकेदार या संस्थान प्रबंधन को बाध्य नहीं किया जा सकता।

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हाईकोर्ट का हवाला

इस पूरे प्रकरण की असली कहानी के मुख्य किरदार हाईकोर्ट के एक निर्णय को हथियार बनाकर समझौता किया है। प्रबंधक ने तर्क प्रस्तुत किया कि लॉकडाउन के दौरान संस्थान के कर्मचारियों को बिना कार्य वेतन भुगतान किए जाने के शासकीय दिशा-निर्देश 20 मार्च 2020 की अधिसूचना के विरूद्ध कुछ नियोजकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

उच्च न्यायालय ने 4 जून 2020 को आदेश दिया थाकि अंतिम निर्णय आने तक कोई प्रतिरोधक कार्यवाही न की जाए। एवं 12 जून 2020 को उच्च न्यायालय ने निर्देशित किया कि अंतरिम उपाय के रूप में कर्मचारियों के प्रतिनिधि एवं नियोजक संबधित पर चर्चा कर अपनी सहमति से निराकरण करें।

अत: में महाप्रबंधक ने अपनी बात को जोरदार तरीके से प्रस्तुत करते हुए लिखा हैकि संस्थान द्धारा संस्थान से सबंद्ध श्रम संगठनों से हुए समझौते के मुताबिक पूर्ण पालन किया जा रहा है।

साभार : हिंदुस्थान समाचार/ कैलाश सनोलिया