इंजीनियर बाबा: IIT बॉम्बे से महाकुंभ तक, जानें अभय सिंह की अद्भुत आध्यात्मिक यात्रा

इंजीनियर बाबा: IIT बॉम्बे से महाकुंभ तक, जानें अभय सिंह की अद्भुत आध्यात्मिक यात्रा
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 के पावन अवसर पर, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती का पवित्र संगम होता है, वहाँ आस्था, भक्ति और आध्यात्मिकता का एक विशाल सागर उमड़ पड़ा है। देश-विदेश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु, नागा साधु, और सिद्ध संत इस महापर्व को अलौकिक बना रहे हैं। लेकिन इस बार, संतों की इस भीड़ में एक ऐसा चेहरा है जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है, और वह हैं – इंजीनियर बाबा।
यह नाम सुनते ही मन में एक कौतूहल और आश्चर्य का भाव जागता है। एक तरफ विज्ञान, तकनीक और तर्क की दुनिया का प्रतीक ‘इंजीनियर’ और दूसरी तरफ आस्था, वैराग्य और आध्यात्मिकता का प्रतीक ‘बाबा’। यह अनोखा संगम हैं अभय सिंह, जो कभी आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) के मेधावी छात्र हुआ करते थे, और आज महाकुंभ की रेत पर धूनी रमाए, शिव भक्ति में लीन हैं।
उनकी कहानी सिर्फ एक व्यक्ति के संन्यासी बनने की नहीं है, बल्कि यह आधुनिक शिक्षा और प्राचीन आध्यात्मिकता के बीच एक पुल बनाने की कहानी है। यह उन लाखों युवाओं के मन में उठ रहे सवालों का एक जीवंत उत्तर है जो भौतिक सफलता और आत्मिक शांति के बीच संतुलन तलाश रहे हैं। आइए, इस लेख में हम इंजीनियर बाबा अभय सिंह की इस असाधारण और प्रेरणादायक यात्रा को गहराई से जानते हैं।
कौन हैं “इंजीनियर बाबा” अभय सिंह? (Who is Engineer Baba Abhay Singh?)
इंजीनियर बाबा, जिनका सांसारिक नाम अभय सिंह है, का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले के एक साधारण परिवार में हुआ था। बचपन से ही वह पढ़ाई में अत्यंत मेधावी थे। उनकी प्रतिभा का प्रमाण इसी बात से मिलता है कि उन्होंने देश की सबसे प्रतिष्ठित और कठिन परीक्षाओं में से एक, आईआईटी-जेईई (IIT-JEE) को सफलतापूर्वक पास किया और आईआईटी बॉम्बे जैसे शीर्ष संस्थान में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में प्रवेश पाया।
आईआईटी बॉम्बे से डिग्री पूरी करने के बाद, उनका भविष्य उज्ज्वल था। उन्हें लाखों के पैकेज वाली एक प्रतिष्ठित नौकरी मिली। एक ऐसी जिंदगी उनके सामने थी जिसका सपना देश का हर युवा देखता है – एक सफल करियर, भौतिक सुख-सुविधाएं और एक आरामदायक जीवन। लेकिन अभय सिंह के मन में कुछ और ही चल रहा था। उन्हें यह चकाचौंध भरी जिंदगी खोखली और अर्थहीन लगने लगी। उनके भीतर कुछ गहरे सवाल उठ रहे थे, जिनका जवाब उन्हें इस सांसारिक सफलता में नहीं मिल रहा था।
क्यों छोड़ी चकाचौंध की दुनिया?
अभय सिंह के इस अप्रत्याशित निर्णय को लेकर समाज में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।
प्रेम में धोखा?: कुछ लोगों का मानना है कि शायद किसी प्रेम प्रसंग में मिली असफलता ने उन्हें इस वैराग्य के मार्ग पर धकेल दिया।
अवसाद या बेरोजगारी?: कुछ अन्य लोग इसे आधुनिक जीवन के तनाव, अवसाद या बेरोजगारी का परिणाम मानते हैं।
लेकिन जब खुद इंजीनियर बाबा से इस बारे में पूछा जाता है, तो उनका उत्तर इन सभी सांसारिक अटकलों से कहीं अधिक गहरा और दार्शनिक होता है। वे कहते हैं:
♦ लेटेस्ट जानकारी के लिए हम से जुड़े ♦ |
WhatsApp पर हमसे बात करें |
WhatsApp पर जुड़े |
TeleGram चैनल से जुड़े ➤ |
Google News पर जुड़े |
“मैंने जीवन का गहरा अर्थ और वास्तविक उद्देश्य तलाशने के लिए यह रास्ता चुना। सांसारिक सुखों में वह स्थायी शांति और आनंद नहीं मिला, जिसकी मुझे तलाश थी। यह कोई पलायन नहीं, बल्कि सत्य की खोज है।”
उनका यह कथन दर्शाता है कि उनका निर्णय किसी तात्कालिक दुख या असफलता की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक गहरी आत्म-जिज्ञासा और सत्य की खोज का परिणाम है।
विज्ञान से आध्यात्म तक: एक असाधारण यात्रा
अभय सिंह की यात्रा इस बात का एक अनूठा उदाहरण है कि कैसे एक तार्किक और वैज्ञानिक मन भी आध्यात्मिकता की गहराइयों में उतर सकता है।
ज्ञान की प्यास: इंजीनियरिंग के दिनों में दर्शनशास्त्र का अध्ययन
आईआईटी में पढ़ते हुए, जहाँ उनके सहपाठी नवीनतम तकनीक और विज्ञान में डूबे हुए थे, वहीं अभय सिंह का मन प्राचीन दार्शनिकों के विचारों में रमने लगा था। उन्होंने सुकरात, प्लेटो, अरस्तू और अन्य पश्चिमी दार्शनिकों की किताबों का गहन अध्ययन किया। वे यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि जीवन का उद्देश्य क्या है, खुशी क्या है, और सत्य क्या है। यह उनके भीतर चल रहे वैचारिक द्वंद्व का शुरुआती चरण था।
बहुमुखी प्रतिभा और आंतरिक संघर्ष
इंजीनियरिंग के बाद, उन्होंने सिर्फ एक नौकरी ही नहीं की, बल्कि कई क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा आजमाई। उन्होंने फोटोग्राफी की, बच्चों को फिजिक्स पढ़ाया, और डिजाइनिंग के क्षेत्र में भी काम किया। वे हर क्षेत्र में सफल रहे, लेकिन आंतरिक शांति और उद्देश्य की भावना अभी भी उनसे दूर थी। उनका मन लगातार संघर्षरत था – एक तरफ भौतिक दुनिया की सफलता थी, और दूसरी तरफ आत्मिक शांति की एक अनबुझी प्यास।
कोरोना महामारी: एक महत्वपूर्ण मोड़
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को थाम दिया था, लेकिन अभय सिंह के जीवन में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आई। लॉकडाउन के दौरान मिले एकांत ने उन्हें अपने भीतर और भी गहराई से झाँकने का अवसर दिया। उन्होंने भारत लौटकर एक ऐसा कदम उठाया जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी।
आध्यात्मिकता की ओर पहला ठोस कदम: सद्गुरु का आश्रम
अपनी आंतरिक खोज को एक दिशा देने के लिए, अभय सिंह कोयंबटूर स्थित सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा योग केंद्र पहुंचे। वहाँ उन्होंने एक साधक के रूप में नहीं, बल्कि एक सेवक के रूप में नौ महीने बिताए।
सेवा और समर्पण: उन्होंने आश्रम में सेवा करते हुए अहंकार को विसर्जित करने की कला सीखी। उनका मानना है कि सेवा के बिना साधना अधूरी है।
योग और ध्यान: उन्होंने योग, ध्यान और क्रिया के माध्यम से अपने मन और शरीर को साधना शुरू किया। उन्होंने सीखा कि कैसे अपनी ऊर्जा को नियंत्रित किया जाए और चेतना के उच्च स्तरों का अनुभव किया जाए।
वे कहते हैं:
“सत्य और धर्म को अपने जीवन में कैसे उतारा जाए, यह मैंने साधना और ध्यान के जरिए सीखा। 2021 के बाद, ऐसा महसूस होने लगा जैसे महादेव मुझे सीधे मार्गदर्शन दे रहे हैं।”
तुलना तालिका: इंजीनियर अभय सिंह बनाम इंजीनियर बाबा
पहलू (Aspect) | इंजीनियर अभय सिंह (भौतिक जीवन) | इंजीनियर बाबा (आध्यात्मिक जीवन) |
पहचान (Identity) | आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियर, एक पेशेवर। | शिव भक्त, एक साधक, एक संत। |
लक्ष्य (Goal) | करियर में सफलता, भौतिक सुख-सुविधाएं। | आत्म-ज्ञान, सत्य की खोज, मोक्ष। |
जीवनशैली (Lifestyle) | व्यस्त, प्रतिस्पर्धात्मक, बाहरी दुनिया पर केंद्रित। | सरल, शांत, आंतरिक दुनिया पर केंद्रित। |
ज्ञान का स्रोत (Source of Knowledge) | विज्ञान की किताबें, अकादमिक शिक्षा, तर्क। | वेद, उपनिषद, ध्यान, प्रत्यक्ष अनुभव। |
खुशी की परिभाषा (Definition of Happiness) | उपलब्धियों और संपत्ति में। | आंतरिक शांति और परमानंद में। |
समाज के प्रति दृष्टिकोण | एक उपभोक्ता या निर्माता के रूप में। | एक मार्गदर्शक और सेवक के रूप में। |
हिमालय की पुकार: चारधाम यात्रा और गुफाओं में साधना
सद्गुरु के आश्रम से मिली दिशा के बाद, अभय सिंह ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा को और भी गहरा करने का निश्चय किया। उन्होंने सांसारिक जीवन को पूरी तरह से त्याग दिया और हिमालय की ओर निकल पड़े।
पैदल चारधाम यात्रा: उन्होंने पैदल ही उत्तराखंड के चार पवित्र धामों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ – की यात्रा की। यह यात्रा सिर्फ एक शारीरिक तीर्थ नहीं थी, बल्कि यह उनकी सहनशीलता, दृढ़ संकल्प और विश्वास की एक कठिन परीक्षा थी।
गुफाओं में एकांतवास: चारधाम यात्रा के बाद, उन्होंने हिमालय की कई गुफाओं में एकांत में रहकर कठोर साधना की। इस दौरान उन्होंने प्रकृति के साथ एक गहरा संबंध स्थापित किया और खुद को समझने की कोशिश की। यह वही प्राचीन भारतीय तपस्वी परंपरा है, जहाँ साधक दुनिया से दूर होकर आत्म-साक्षात्कार के लिए तप करते हैं।
“अब विज्ञान और आध्यात्म में कोई अंतर नहीं दिखता”
इंजीनियर बाबा की सबसे खास बात यह है कि वे विज्ञान को नकारते नहीं हैं, बल्कि उसे आध्यात्मिकता के साथ जोड़ते हैं। उनका मानना है कि दोनों एक ही परम सत्य तक पहुँचने के दो अलग-अलग रास्ते हैं।
क्वांटम फिजिक्स और वेदांत: वे अक्सर क्वांटम फिजिक्स के सिद्धांतों, जैसे ‘सब कुछ ऊर्जा है’ (Everything is Energy) और ‘ऑब्जर्वर इफेक्ट’ (Observer Effect), की तुलना वेदांत के ‘अहं ब्रह्मास्मि’ (मैं ही ब्रह्म हूँ) और ‘माया’ के सिद्धांत से करते हैं।
शिव और सत्य: उनके लिए, आध्यात्मिकता किसी कर्मकांड या अंधविश्वास का नाम नहीं है। वे कहते हैं, “सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है।” इसका अर्थ है कि परम सत्य की खोज ही ईश्वर की खोज है, और वह सत्य हमेशा सुंदर होता है। उनका इंजीनियरिंग का मस्तिष्क हर आध्यात्मिक अनुभव के पीछे के ‘क्यों’ और ‘कैसे’ को समझने की कोशिश करता है, जिससे उनकी आस्था और भी गहरी होती है।
HowTo: इंजीनियर बाबा के जीवन से क्या सीख सकते हैं?
इंजीनियर बाबा की जीवन यात्रा आधुनिक युवाओं के लिए कई महत्वपूर्ण संदेश देती है।
चरण 1: अपने भीतर के सवालों को सुनें (Listen to Your Inner Questions)
हम अक्सर समाज के दबाव में उन करियर और जीवनशैली को चुन लेते हैं जो हमें सच्ची खुशी नहीं देते। अभय सिंह ने अपने भीतर उठ रहे सवालों (“जीवन का उद्देश्य क्या है?”) को नजरअंदाज नहीं किया, बल्कि उनका उत्तर खोजने के लिए निकले।
चरण 2: सफलता को फिर से परिभाषित करें (Redefine Success)
सफलता का मतलब सिर्फ पैसा और पद नहीं है। सच्ची सफलता आंतरिक शांति, संतोष और एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में है। अपनी सफलता की परिभाषा खुद बनाएं, न कि समाज को बनाने दें।
चरण 3: ज्ञान के लिए खुला रहें (Be Open to Knowledge)
अभय ने विज्ञान और आध्यात्म, दोनों का अध्ययन किया। हमें भी अपने मन को खुला रखना चाहिए और हर स्रोत से ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए, चाहे वह प्राचीन ग्रंथ हों या आधुनिक विज्ञान।
चरण 4: सेवा का महत्व समझें (Understand the Importance of Seva)
अहंकार को कम करने और दूसरों से जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका निस्वार्थ सेवा है। अपने जीवन में सेवा के लिए कुछ समय जरूर निकालें।
चरण 5: एकांत का अभ्यास करें (Practice Solitude)
आज की शोरगुल भरी दुनिया में, दिन में कुछ समय एकांत में बिताना बहुत जरूरी है। यह आपको खुद से जुड़ने और अपने विचारों को स्पष्ट करने में मदद करता है।
महाकुंभ 2025 में “इंजीनियर बाबा” का प्रभाव
प्रयागराज महाकुंभ 2025 में, इंजीनियर बाबा का शिविर श्रद्धालुओं, विशेषकर युवाओं के बीच आकर्षण और प्रेरणा का एक प्रमुख केंद्र बन गया है।
युवाओं के लिए प्रेरणा: उनकी कहानी उन शिक्षित युवाओं को आकर्षित कर रही है जो एक सफल करियर के बावजूद जीवन में एक खालीपन महसूस करते हैं। वे उनसे यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि कैसे एक आईआईटीयन ने वैराग्य का मार्ग चुना।
तर्क और आस्था का संगम: वे अपने प्रवचनों में विज्ञान और आध्यात्मिकता के उदाहरणों का उपयोग करते हैं, जो आधुनिक और तार्किक सोच वाले लोगों को भी प्रभावित करता है। वे जटिल आध्यात्मिक अवधारणाओं को सरल और वैज्ञानिक भाषा में समझाते हैं।
मीडिया का ध्यान: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया भी उनकी इस अनूठी कहानी को कवर कर रहा है, जिससे वे महाकुंभ के सबसे चर्चित चेहरों में से एक बन गए हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)
प्रश्न 1: इंजीनियर बाबा का असली नाम क्या है और वे कहाँ से हैं?
उत्तर: इंजीनियर बाबा का असली नाम अभय सिंह है और वे हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले हैं।
प्रश्न 2: उन्होंने किस आईआईटी से और कौन सी ब्रांच में इंजीनियरिंग की है?
उत्तर: उन्होंने आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बी.टेक की डिग्री हासिल की है।
प्रश्न 3: उन्होंने संन्यास क्यों लिया?
उत्तर: उनके अनुसार, उन्होंने सांसारिक सुखों में आनंद और शांति न मिलने के कारण जीवन के गहरे अर्थ और सत्य की खोज के लिए आध्यात्मिक मार्ग को चुना।
प्रश्न 4: क्या वे विज्ञान के विरुद्ध हैं?
उत्तर: नहीं, बिल्कुल नहीं। वे विज्ञान और आध्यात्मिकता को एक ही सत्य तक पहुँचने के दो अलग-अलग मार्ग मानते हैं और अक्सर अपने प्रवचनों में दोनों को जोड़ते हैं।
निष्कर्ष: एक नई पीढ़ी के संत
इंजीनियर बाबा अभय सिंह की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की यात्रा नहीं है, यह एक पीढ़ी के द्वंद्व, खोज और परिवर्तन का प्रतीक है। यह कहानी हमें दिखाती है कि आध्यात्मिकता किसी गुफा में रहने या दुनिया से भाग जाने का नाम नहीं है, बल्कि यह अपने भीतर की सच्चाई को खोजने का एक साहसिक प्रयास है।
उनकी यात्रा यह साबित करती है कि विज्ञान और आस्था दुश्मन नहीं, बल्कि सहयात्री हो सकते हैं। एक व्यक्ति एक ही समय में तार्किक और भक्त दोनों हो सकता है। प्रयागराज महाकुंभ में उनकी उपस्थिति इस बात की गवाही है कि सच्ची भक्ति, ज्ञान और साधना में अनंत संभावनाएं छिपी हैं, जो किसी भी पृष्ठभूमि के व्यक्ति को आकर्षित कर सकती हैं। इंजीनियर बाबा एक नई पीढ़ी के संत हैं, जो आधुनिक दुनिया को आध्यात्मिकता का प्राचीन मार्ग एक नई और प्रासंगिक भाषा में दिखा रहे हैं।