ऊब छठ 2024 में कब है | Ub Chhath 2024 Mein Kab Hai | Hal Sashti 2024
महत्वपूर्ण जानकारी
- हल षष्ठी, हर छठ, बलराम जयंती 2024
- शनिवार, 24 अगस्त 2024
- षष्ठी तिथि आरंभ- 24 अगस्त 2024 सुबह 07:51 बजे
- षष्ठी तिथि समाप्त – 25 अगस्त 2024 सुबह 05:30 बजे
ऊब छठ व्रत 2024 का शुभ मुहूर्त – Ub Chhath 2023 ka Shubh Muhurat
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि आरंभ- 24 अगस्त 2024 सुबह 07:51 बजे. यह तिथि अगले दिन यानी 25 अगस्त 2024 को रात्रि 8.55 बजे तक रहेगी. ऊब छठ या हल षष्ठी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं व कन्याओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है. इस व्रत में हल से जोते हुए बागों या खेतों के फल और अन्न खाना वर्जित माना गया है. इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है.
हल छठ व्रत पूजन विधि
- हल छठ व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता.
- इस व्रत में वही चीजें खाई जाती हैं जो तालाब या मैदान में पैदा होती हैं. जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल खाकर आदि.
- इस व्रत में गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
- हल छठ व्रत में भैंस का दूध, दही और घी का प्रयोग किया जाता है.
- इस व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवाल पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं.
- जिसके बाद गणेश और माता गौरा की पूजा करते हैं.
- महिलाएं घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं और हल षष्ठी की कथा सुनती हैं. उसके बाद प्रणाम करके पूजा समाप्त करती हैं.
हल षष्ठी कथा
एक गर्भवती ग्वालिन के प्रसव का समय समीप था। उसे प्रसव पीड़ा होने लगी थी। उसका दही-मक्खन बेचने के लिए रखा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो दही-मक्खन बिक नहीं पायेगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया।
वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया। उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया।
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया। कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए।
ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपने दूध-दही के बारे में बताया और उसके फलस्वरूप मिले दंड का के बारे भी बताया। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर, उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया।
इसे भी पढ़े :