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कड़कनाथ मुर्गे की है मार्केट में इतनी डिमांड

दोस्तों इस दुनिया में हम बहुत तरह के लोग देखे होंगे. लेकिन यदि हम खाने पीने की बात करें, तो इसमें मुख्यत: दो तरह के लोग पाए जाते हैं. एक तो शाकाहारी जो केवल सादा भोजन खाना पसंद करते हैं. दूसरे मांसाहारी, जिन्हें मांसाहार भोजन खाने का शौक होता है.

हमनें आमतौर पर सामान्य मुर्गे का मांस देखा हैं, लेकिन अब लोगों के बीच कड़कनाथ मुर्गा (Kadaknath Chicken Breed) भी एकाएक मशहूर हो चुका है. कड़कनाथ मुर्गे का चिकन अब भारत के ‘फाइव स्टार’ होटलों तक में भी ग्राहकों को परोसा जाने लगा है. इसलिए आइए आज हम आपको कड़कनाथ मुर्गे के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी देने वाले है.

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‘कड़कनाथ मुर्गा’ (Kadaknath Chicken Breed)

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अमुमन मुर्गे जहाँ सफेद और भुरे रंग के होते हैं, वहीं ‘कड़कनाथ मुर्गा’ (Kadaknath Chicken Breed) बेहद ही काले रंग का होता है. यदि आपने अभी तक कड़कनाथ मुर्गा नहीं देखा है तो इन्हें आप तस्वीरों में देख सकते हैं कि ये किस तरह का होता है. आपकों बता दें कि, इस प्रजाति की ख़ास बात ये है कि ये प्रजाती अभी तक केवल भारत में ही पाई जाती है.

क्यों है ‘कड़कनाथ मुर्गे’ की ज़्यादा मांग?

कड़कनाथ मुर्गे की मांग हाल के दिनों में भारत में एकाएक बढ़ी है. इसके पीछे का कारण यह है कि, लोगों को इसका बना चिकन का स्वाद ख़ूब पसंद आ रहा है. इसी वज़ह से आज ‘कड़कनाथ मुर्गे’ का चिकन देश के कई फाइव स्टार होटलों तक में परोसा जाने लगा है. लॉकडाउन के बाद से फाइव स्टार में जाने वाले अमीर लोगों की ये मुर्गा पहली पसंद बन चुका है.

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कड़कनाथ मुर्गे के काले रंग की वज़ह से इसे ‘कालीमासी’ मुर्गा भी कहा जाता है. आमतौर पर सफेद मुर्गों में जहाँ प्रोटीन केवल 18 से 20 फीसदी तक पाया जाता है, तो वहीं कड़कनाथ मुर्गे में 25 फीसदी तक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है. इतना ही नहीं कड़कनाथ मुर्गा खाने में दूसरे मुर्गों के मुकाबले ज़्यादा स्वादिष्ठ, पोष्ठिक और सेहद के लिए ज़रूरी माने जाने वाले तमाम गुणों से भी भरपूर होता है.

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आदिवासियों के बीच भी ‘कड़कनाथ मुर्गे’ के कई मायने

भारत के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आमतौर पर कड़कनाथ मुर्गे की तीन प्रमुख प्रजातियाँ पाई जाती है. जैसे- जेट ब्लैक, गोल्डन ब्लैक और पेसिल्ड ब्लैक शामिल हैं. कड़कनाथ मुर्गे का वज़न करीब 1.8 से लेकर 2.0 किलो तक हो सकता है. दशकों पहले मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के आदिवासी समुदाय के लोग इनका पालन पोषण करते थे. क्योंकि आदिवासी लोग इसे बेहद पवित्र मानते थे. इसलिए हर साल दीवाली के बाद होने वाली पूजा पर देवी के सामने कड़कनाथ मुर्गे की बलि देकर इसे खाने का रिवाज रहा है. धीरे-धीरे इसकी पहचान देश के दूसरे भागों में भी बनने लगी.

दूसरे मुर्गो से ज़्यादा है इसकी कीमत

बाजार में जहाँ दूसरे मुर्गे बेहद कम क़ीमत में भी उपलब्ध हो जाता है, तो वहीं कड़कनाथ की क़ीमत वर्तमान में 900 से लेकर 1500 रुपए किलो तक होती है. मुर्गे की ऐसी प्रजाति दुनिया में और कहीं नहीं मिलती है. गौरतलब है कि, आज भारत में मुर्गों की मूल रूप से 4 प्रकार की शुद्ध नस्लें पाई जाती हैं. जिनमें से प्रमुख हैं असील, चिटगोंग, कड़कनाथ और बुसरा मुर्गा.

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KAMLESH VERMA

दैनिक भास्कर और पत्रिका जैसे राष्ट्रीय अखबार में बतौर रिपोर्टर सात वर्ष का अनुभव रखने वाले कमलेश वर्मा बिहार से ताल्लुक रखते हैं. बातें करने और लिखने के शौक़ीन कमलेश ने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से अपना ग्रेजुएशन और दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स किया है. कमलेश वर्तमान में साऊदी अरब से लौटे हैं। खाड़ी देश से संबंधित मदद के लिए इनसे संपर्क किया जा सकता हैं।

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