10 जनवरी को है माघ मास की संकष्टी (लम्बोदर) चतुर्थी, ​जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और कथा

Sankashti Chaturthi Vrat : नमस्ते दोस्तों माघ मास की चतुर्थी तिथि को संकष्ठी चतुर्थी व्रत महिलाओं द्वारा रखा जाता है। इस दिन सुहागिनें महिलाएं पुत्र की सलामती के लिए व्रत का पालन रखती हैं। इस बार संकष्टी चतुर्थी (सकट चौथ) 10 जनवरी 2023 को होगी। इस तिथि के दिन तिलकूट का प्रसाद बनाकर भगवान गणेश को भोग सर्मपित किया जाता है। इस दिन तिल के लड्डू भी प्रसाद के रुप में बनाए जाते हैं। इस दिन सुहागिनें गणेश जी की पूजा कर भगवान को भोग लगाकर कथा सुनती हैं। Sankashti Lambodar Chaturthi Vrat

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इस दिन सुहागिनें महिलाएं रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही गणेश जी का व्रत संपन्न करती है। कई स्थानों पर तिलकूट का पहाड़ बनाकर काटे जाने की परंपरा है। सकट चौथ व्रत के दिन गणेश जी के संकटमाशक का पाठ करना इस दिन सर्वोत्तम होता है। लोक किदवंति है कि इस दिन भगवान गणेश जी की कम से कम 12 नामों का जाप किया जाना चाहिए। ये हैं भगवान गणेश के 12 नाम – सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।

सकट चौथ के दिन भगवान गजानंद का पूजन करने से ग्रहों की अशुभता दूर होने के साथ ही शांति मिलती है।  ज्योतिषों की मानें तो भगवान  श्री गणेश का पूजन बुध, राहु और केतु ग्रहों की शांति से संबंधित होती है। सकट चौथ के दिन भगवान गणेश की मूर्ति बनाकर स्थापित करनी चाहिए। इस दिन भगवान गणेश को पीले वस्त्र पहनाएं। जिसके बाद विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा और आरती करें।

शुभ मुहूर्त-

  • सकट चौथ व्रत तिथि- जनवरी 10, 2022 (मंगलवार)
  • चन्द्रोदय समय – 20:40
  • तिथि प्रारम्भ – जनवरी 10, 2023 को 20:24 बजे
  • तिथि समाप्त – जनवरी 11, 2023 को 18:24 बजे।

इसके अलावा ॐ गं गणपतये नमः” मन्त्र से 17 बार गणेश जी को निम्न मन्त्र से दूर्वा अर्पित करने से समस्त कष्ट दूर होते हैं।

सकट चौथ व्रत पूजा विधि-

  • सबसे पहले अल सुबह स्नान ध्यान करके भगवान गणेश की पूजा करें।
  • जिसके बाद सूर्यास्त के बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • गणेश जी की मूर्ति के पास एक कलश में जल भर कर रखें।
  • धूप-दीप, नैवेद्य, तिल, लड्डू, शकरकंद, अमरूद, गुड़ और घी अर्पित करें।
  • तिलकूट का बकरा भी कहीं-कहीं बनाया जाता है।
  • पूजन के बाद तिल से बने बकरे की गर्दन घर का कोई सदस्य काटता है।
  • शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
  • प्रसाद में श्रीगणेश को तिल और गुड़ का भोग लगाना उत्तम माना गया है।
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प्रतिकात्मक तस्वीर सोर्स गूगल

सकट चौथ व्रत कथा-

पौराणिक लोक कथाओं में सुनने में मिलता है कि, सकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टला था। जिसके कारण इस व्रत का नाम सकट चौथ पड़ा। इसे पीछे ये कथा है,  कि माता पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।

गणेश जी अपनी माता की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। इसी दौरान समय भगवान शंकर माता पार्वती से मिलने के लिए पहुंचे, लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।

स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन एक ओर कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें ।

इस पर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।

एक अन्य कथा भी है प्रचलित-

एक प्राचीन कथा है कि किसी शहर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। जिसके बेहद ही दुखी होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राज पंडित को उसी समय दरबार में बुलाकर कारण पूछा। राज पंडित ने बताया कि, ”हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।” राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई।

बुढि़या के एक ही बेटा था जो उसके जीवन का एक मात्र सहारा था, राजा के आदेश पर सोच विचार कर दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ”मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।” तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ”भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।”

सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।

सकट चौथ व्रत महत्व-

सकट चौथ का व्रत के दिन श्री गणेश का पूजन किए जाने की परंपरा है। कहा जाता है कि, गणेश की सकट चतुर्थी के दिन विधि-विधान से पूजा करने से संतान निरोगी और दीर्घायु होती है। इतना ही नहीं पूजन करने से ग्रहों की अशुभता दूर होने की भी मान्यता है। मान्यता है कि सकट चौथ व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पूरा माना जाता है। अर्घ्य में शहद, रोली, चंदन और रोली मिश्रित दूध से देना चाहिए। कुछ जगहों पर महिलाएं व्रत तोड़ने के बाद सबसे पहले शकरकंद खाती हैं। और प्रार्थना करती हैं कि जिस तरह भगवान गणेश की रक्षा हुई भगवान सभी पुत्रों की रक्षा करे और आयु बढाए।